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सियासत

बिना योजना मोदीजी ने फिर भगदड़ मचा दिया… अबकी किसान, आदिवासी और बेरोजगार भुगतेंगे!

हमारे शहर कोंडागांव (छत्तीसगढ़) में लाक डॉउन तोड़ने के अपराध में नगरपालिका ने पहली कानूनी कार्यवाही करते हुए एक दुकानदार पर दो हजार रुपये का जुर्माना किया गया। बाकायदा रसीद भी काटी गई। हम सभी को लगा कि यह अच्छी और जरूरी कार्यवाही थी। लोगों ने इस कार्यवाही की तारीफ भी की। सुनने में यह घटना बेहद सामान्य लग सकती है, पर अगर संपूर्ण देश की कृषि के संदर्भ में इसके निहितार्थ देखे जाएं तो यह घटना सामान्य नहीं है।

जिस दुकान पर जुर्माने की कार्यवाही की गई, दरअसल वह एक छोटा सा किसान-केंद्र था। खाद, बीज, दवाई, कृषि यंत्रों की छोटी सी दुकान। यहां पास के गांव के कुछ किसान खाद-दवाई, बीज आदि लेने आए थे। निश्चित रूप से ये किसान दुकानदार के पुराने ग्राहक तथा परिचित रहे होंगे और उन किसानों के अनुरोध पर ही इतनी सुबह दुकानदार ने दुकान खोलकर उन्हें बीज खाद दवाई देने का जोखिम उठाया होगा।

अब आते हैं हम माननीय प्रधानमंत्री जी की इक्कीस दिवसीय लाक आउट की घोषणा पर। हम प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी समेत समस्त सरकारों की हर घोषणा का न केवल समर्थन करते हैं, बल्कि उनका शत् प्रतिशत पालन भी करते हैं। किंतु हमारा यह मानना है कि इस लाक-आऊट के संदर्भ में निश्चित रूप से कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जिन पर देशहित में ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है।

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मुझे नहीं पता मेरी ये पोस्ट देश के उन करोड़ों किसान भाइयों तक पहुंच पाएगी अथवा नहीं जो कि इन 21 दिनों में सीधे-सीधे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले हैं। हमारे ज्यादातर किसान भाई इंटरनेट, सोशल मीडिया पर कहीं नहीं हैं। समाचार पत्र आने वाले दिनों में निकलेंगे या नहीं और निकले भी तो हम तक पहुंचेंगे अथवा नहीं, इसको लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। ये समाचार पत्र भी कोरोना-वायरस की छुआछूत से कितने सुरक्षित होंगे अथवा नहीं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कोरोना महामारी की भयावहता तथा इससे जुड़े खतरों से कोई भी पढ़ा-लिखा समझदार व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता लेकिन इससे सर्वविध समुचित बचाव के साथ ही देश के गांवों, किसानों के जीवन से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन वाली अपनी घोषणा में किसानों के बारे में कुछ नहीं कहा। किसान इस देश के हर एक व्यक्ति की थाली में भोजन पहुंचाते हैं। किसान लगभग साठ प्रतिशत जनसंख्या को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देते हैं। रोजगार के मूलाधार कृषि तथा इससे जुड़े किसानों को लेकर मोदीजी का एक शब्द भी न बोलना निराश कर गया। किसान होने के नाते मेरे कुछ सवाल हैं-

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क्या इन इक्कीस दिनों में देश के गांवों के किसान तथा उनके परिजन अपने खुद के घर से लगी बाड़ी में तथा अपने खेतों में अपनी फसलों की देखभाल करने भी ना जाएं तथा खेतों में भी काम काज पूर्णतः बंद रखें?

क्या साल भर खून पसीना एक कर की गई कड़ी मेहनत से कटने को तैयार खड़ी फसल को काटने, खलिहान में सुरक्षित लाकर रखने के लिए भी किसान (कोरोनावायरस से बचाव की सभी जरूरी सावधानियों और सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए भी) घर से बाहर ना निकले? इस बीच अगर बारिश, पानी, बीमारियों, जानवरों से उन फसलों का नुकसान होता है तो क्या देश की जनता कोरोना वायरस से मरने के बजाय आगे फिर भूख से तिल तिल कर न मरेगी?

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एक कहावत है कि दुनिया में सब चीजें बेशक इंतजार कर सकती हैं सिवाय खेती के” तो जिन फसलों को लगाने की तैयारी किसानों ने कर रखी है उन खेतों का तथा और बीज और पौधों का क्या होगा। किसानों को खाद बीज दवाई कैसे मिलेगी। इस बीच फसलों की सिंचाई की क्या व्यवस्था रहेगी? क्या यह सब देश के लिए जरूरी नहीं है?

हमारा मानना है कि इसमें प्रधानमंत्री द्वारा कही गई सोशल डिस्टेंसिंग” की बात को ध्यान में रखते हुए भी भली भांति किसान भाई समस्त कार्य संपन्न कर सकते हैं। संपूर्ण देश में लाक-डाऊन करने के लिए नोटबंदी की तर्ज पर रात 8:00 बजे उदबोधन करके रात 12:00 बजे से लागू करने के बजाय यदि यह कार्य जनता को विश्वास में लेकर हर स्तर पर पर्याप्त तैयारी करके समुचित तरीके से की जाती तो ज्यादा अच्छा रहता। इस तरह अचानक घोषणा करने से लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग के सारे निर्देशों को ताक पर रखकर जल्दबाजी में सामानों की खरीदारी करना शुरू किया और बाजार को भीड़ से भर दिया। इससे पिछले 4-5 दिनों की जनता कर्फ्यू व सोशल डिस्टेंसिंग से हासिल हुई सफलता अब पूरी तरह मिट्टी में मिल गई।

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बैंकों से भारी ऋण लेकर जिन किसानों ने फूलों, मसालों औषधि पौधों की पोली हाउस, नेट हाउस, नर्सरियां तथा पौध गृह स्थापित किए हैं, इन पौधों में रोज खाद, पानी, देखभाल किया जाना बेहद जरूरी होता है। पानी न दिए जाने पर बेशक इनकी पूरी फसलें चौपट होनी तय है। इनके लिए भी कोई सुरक्षित विकल्प क्यों नहीं सुझाया जा सकता है।

क्या इस अवधि में सुरक्षा, बचाव की ऐहतियात बरतने के साथ ही खाद-बीज दवाई की आपूर्ति जारी नहीं रखी जा सकती? कम से कम किसान तथा किसानों के परिजनों को आपस में समुचित दूरी बनाते हुए खेतों में कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है। इसी तरह पाली हाउस और सभी नर्सरियों के छोटे पौधे जो कि बिना पानी के अभाव में शीघ्र ही मर जाते हैं, की सिंचाई और देखरेख की भी व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकती है।

कृषि से संबंधित इन सभी बिंदुओं के संदर्भ में सरकार द्वारा तत्काल देशहित में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए जाने चाहिए।

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बस्तर तथा ऐसे ही अन्य वन क्षेत्रों में रहने वाली जनजातीय समुदायों के लिए महुआ, आम, इमली, तेंदूपत्ता एकत्र करने का यह प्रमुख समय है। साल भर में यही कुछ दिनों का समय होता है, जब ये परिवार घरों से निकल कर अपने साल भर तक परिवार को चलाने के लायक रोजगार अपने इन परंपरागत अन्नदाता जंगलों से प्राप्त कर पाते हैं। जिन गांव में बाहर से शहरों से कोई भी व्यक्ति नहीं आया है, कम से कम उनकी पहचान कर, उन वनवासियों के लिए कोई उचित समाधान दिया जाना उचित होगा।

राज्य सरकारें शहरों में रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों, ठेला, खोमचे वालों को राशन तथा नगद राहत राशि आदि सहायता देने की बातें तो कर रही है किंतु गांव में रहने वाले अपंजीकृत कृषि मजदूर जो रोज कुआं खोद खोदकर पानी पीते हैं उनके रोजगार को लेकर क्या समाधान होगा, यह भी सोचना जरूरी है।

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कुल मिलाकर इस समय की महती आवश्यकता है कि सरकार कोरोना वायरस से बचाव हेतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सभी सुरक्षा तथा बचाव के निर्देशों का अधिकतम कड़ाई से पालन करवाते हुए उपरोक्त बिंदुओं पर क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार ऐसे व्यावहारिक समाधान निकाले जिससे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

जनता को इसके बारे में भली-भांति जागरूक करके, उसे विश्वास में लेकर, यह सब बड़ी आसानी से क्या जा सकता है क्योंकि हम सबका लक्ष्य है कोरोना महामारी से हमारे देश में जनहानि न होने पाए। साथ ही देश को इस अवधि की बंदी से होनेवाली गंभीर दीर्घकालिक हानियों से भी बचाया जाय।

लेखक राजाराम त्रिपाठी इस देश के जाने-माने प्रगतिशील किसान और निर्यातक हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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