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सुख-दुख

श्रद्धांजलि : यकीन नहीं हो रहा कि मनोज श्रीवास्तव हम लोगों के बीच में नहीं हैं

Yashwant Singh : जब मैंने लखनऊ से अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत की तो जिन कुछ पत्रकारों का सानिध्य, संग, स्नेह, मार्गदर्शन मिला उनमें से एक मनोज श्रीवास्तव जी भी हैं. पर इनके आज अचानक चले जाने की सूचना से मन धक से कर के रह गया. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार साथियों ने मुझे फोन पर सुबकते हुए मनोज के निधन की सूचना दी. मनोज श्रीवास्तव शख्स ही ऐसे थे कि वे सभी के प्रिय थे. तभी तो वे लखनऊ की अच्छी खासी पत्रकारिता को त्यागकर बनारस रहने के लिए तबादला लेकर चले गए थे.

<p>Yashwant Singh : जब मैंने लखनऊ से अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत की तो जिन कुछ पत्रकारों का सानिध्य, संग, स्नेह, मार्गदर्शन मिला उनमें से एक मनोज श्रीवास्तव जी भी हैं. पर इनके आज अचानक चले जाने की सूचना से मन धक से कर के रह गया. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार साथियों ने मुझे फोन पर सुबकते हुए मनोज के निधन की सूचना दी. मनोज श्रीवास्तव शख्स ही ऐसे थे कि वे सभी के प्रिय थे. तभी तो वे लखनऊ की अच्छी खासी पत्रकारिता को त्यागकर बनारस रहने के लिए तबादला लेकर चले गए थे.</p>

Yashwant Singh : जब मैंने लखनऊ से अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत की तो जिन कुछ पत्रकारों का सानिध्य, संग, स्नेह, मार्गदर्शन मिला उनमें से एक मनोज श्रीवास्तव जी भी हैं. पर इनके आज अचानक चले जाने की सूचना से मन धक से कर के रह गया. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार साथियों ने मुझे फोन पर सुबकते हुए मनोज के निधन की सूचना दी. मनोज श्रीवास्तव शख्स ही ऐसे थे कि वे सभी के प्रिय थे. तभी तो वे लखनऊ की अच्छी खासी पत्रकारिता को त्यागकर बनारस रहने के लिए तबादला लेकर चले गए थे.

अपनी पिछली कुछ लखनऊ यात्राओं में मैंने मनोज जी के संग कई घंटे प्रेस क्लब में गुजारे थे. उनके गीत सुने, उनके-अपने जीवन के अनुभव-संस्मरण साझा हुए. क्या पता था कि ये मुलाकात आखिरी मुलाकात में तब्दील होने जा रही है. मनोज श्रीवास्तव के जाने से अब ऐसा लगने लगा है कि अपने आसपास के लोग, अपने समय के लोग, अपने साथी-संगी लोगों के जाने की बारी आ गई है. कब कौन कहां कैसे चला जाए, कुछ नहीं पता.. मनोज भाई, आपके साथ तो अभी बनारस की गलियों में घूमना था… मस्ती करनी थी.. बतियाना था.. गाना था… पर आप अचानक ऐसे सब संगी साथियों को छोड़कर चले जाओगे, यकीन नहीं हो रहा… बेहद भारी मन से श्रद्धांजलि दे रहा क्योंकि यकीन अब तक नहीं हो रहा कि आप नहीं हो हम सभी के बीच. 

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(भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.)

Golesh Swami : dosto mera sabse pyara dost manoj shrivastava mujhe akela chodkar chala gaya. manoj mere saath amar ujala mai tha. mai 2003 mai hindustan aa gaya lekin meri aur monoj ki dosti nahi tuti. hum dono har dukh shuk ki baate karte the. aise dost jeewan mai kam hi milte hai. pichle hafte hi to ham mile the. maine pooch tha ab kab aoge to kahne laga deewali par mulakat hogi. par yeh nahi malum tha ki tumhare shareer se tumhari aatma gayab hogi. aise jeewant aadmi ko khamosh dekhna wakai kashtkaari hai.alwida dost. lekin dost tumhari kami hamesha khalegi.

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(लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार गोलेश स्वामी के फेसबुक वॉल से.)

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