नेट निष्पक्षता का प्रश्न आजकल मीडिया की गंभीर चर्चाओं में है। फेसबुक, ट्विटर आदि पर लगातार टिप्पणियां पोस्ट हो रही हैं। पिछले दिनो दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (डीजेए) के तत्वधान में आयोजित परिचर्चा में भी यह मुद्दा छाया रहा। आज भी सोशल माध्यमों, लेखों, टिप्पणियों, वार्ताओं में ये मुद्दा छाया हुआ है। अब तो वरिष्ठ पत्रकार तरुण विजय ने भी 28 अप्रैल को राज्यसभा में नेट न्यूट्रैलिटी का मुद्दा उठा दिया।
वेब दुनिया के संपादक जयदीप कार्णिक ने ट्राई की वर्तमान भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हुए सरकार से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने की मांग की। उन्होंने कहा कि नेट निष्पक्षता की वर्तमान बहस सर्विस प्रोवाइडरों के द्वारा अपने अपने हित में संचालित कराने की कोशिश हो रही है। जबकि इसमें उपभोक्ता की आवाज को गंभीरता के साथ सुने जाने की जरूरत है। नेट की निष्पक्षता को खत्म करना आम लोगों के हितों पर कुठाराघात होगा। डीजेए के अध्यक्ष अनिल पांडे तथा महासचिव आनंद राणा ने इस पर जल्द ही एक बड़ी बहस कराने का आश्वासन प्रतिभागियों को दिया। इस बीच टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) द्वारा नेट निष्पक्षता के लगभग एक लाख समर्थकों के ई-मेल पते आदि उजागर कर देने का कई एक पत्रकारों ने विरोध किया है।
वरिष्ठ पत्रकार तरुण विजय का सदन में कहना था कि भारत को इंटरनेट की स्वतंत्रता का हब बनाया जाना चाहिए। नेट न्यूट्रैलिटी का मतलब है कि सरकार और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को सभी डेटा को सामान रूप से देखना चाहिए। इसके तहत किसी भी दो साइटों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाए और किसी भी वेबसाइट का पक्ष नहीं लिया जाए। नेट न्यूट्रैलिटी को सामान तरीके से लागू किया जाए। नेट न्यूट्रैलिटी का मतलब है कि सरकार और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स इंटरनेट पर सभी डेटा को एकसमान मानेंगे, इसलिए कॉन्टेंट, प्लेटफॉर्म, साइट, ऐप्लीकेशन या मोड ऑफ कम्युनिकेशन के कारण यूजर्स पर अलग-अलग चार्जेज नहीं लगाए जाएंगे। सरकार इंटरनेट पर सभी डेटा तक निर्बाध और बिना भेदभाव के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे। भारत को संविधान के तहत ही इंटरनेट स्वतंत्रता का हब बनना चाहिए।
हिन्दुस्तान के सीनियर एसोशिएट एडीटर हरजिंदर का मानना है कि जब तक हमारा इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर रद्दी है और उसकी चाल कछुए को भी मात देती है, तब तक न तो नेट निष्पक्षता हमारी संभावनाओं को किसी आसमान पर ले जाएगी और न ही गरीबों को गिनी-चुनी सेवाओं का दान ही उनके लिए बहुत ज्यादा काम आएगा। नेट निष्पक्षता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अभी अच्छी बात यह है कि नेट सेवाएं देने वाली तकरीबन सभी कंपनियां इसकी कसमें खा रही हैं। इसमें वे मोबाइल ऑपरेटर भी शामिल हैं, जो कुछ ही समय पहले तक कुछ खास सेवाओं के लिए ज्यादा कीमत वसूलने की तैयारी कर रहे थे, वही अब कुछ खास सेवाएं मुफ्त में देने के ‘परोपकारी’ मिशन में जुट गए हैं। ये सारे विरोधाभास बताते हैं कि नेट निष्पक्षता पर मंडराने वाले न तो खतरे ही कम हुए हैं, और न अवसर। अभी हमारी सबसे बड़ी जरूरत यह है कि देश में सबसे पहले इंटरनेट के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूती और विस्तार, दोनों दिया जाए।
वरिष्ठ पत्रकार विनय कुमार पाण्डेय का मानना है कि फ़ोन कंपनियों के अनुसार यह सही है, बहुत से लोगों के अनुसार गलत। हम जो कुछ भी इंटरनेट पर देखते, सुनते, लिखते, पढ़ते या कहते हैं, उसमें टेलिकॉम कंपनियों का कोई योगदान नहीं होता। अलग अलग वेब साइट टेलिकॉम कंपनियों ने नहीं बनाई है। उन्होंने सिर्फ़ पहले से ही उपस्थित फ्रिक्वेन्सी को लेकर हमें उसपर इंटरनेट की सुविधा दी है। उसके लिए हम उन्हें पैसे दे रहे हैं। हम जितना डाटा इस्तेमाल करते हैं, वह हमसे उतना पैसा लेती हैं। अब वो चाहते हैं कि किसी और की बनाई हुई सुविधाओं से उन्हें मुनाफ़ा मिले। यह गलत है। यह अभी लागू नहीं हुआ है। ट्राई ने अपने वेब साइट पर हम सभी से अपने सुझाव देने को कहा है। समस्या यह है कि उन्होंने 118 पन्ने, छोटे अक्षर में अपने वेब साइट पर डाला है। अब हम सभी से कहा जा रहा है, की उसे पढ़िए, एवं उनके 20 प्रश्नों का उत्तर दीजिए। अब पहली बात तो यह है की कोई 118 पन्ने नहीं पढ़ेगा, दूसरी बात कि बिना पढ़े आप उन 20 प्रश्नों के उत्तर कैसे दे सकते हैं। मतलब यह एक ऐसा तरीका है जिससे बहुत कम लोग इसका विरोध करेंगे, और फिर यह नियम लागू कर दिया जाएगा। जब लोग कहेंगे कि यह क्यों हुआ? तो जवाब मिलेगा कि आप लोगों ने अपनी राय ही नहीं दी।