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मजीठिया : ‘हिंदुस्‍तान’ अखबार के बाकी बचे सा‍थी न करें ऐसा 80 फीसदी नुकसान वाला समझौता!

साथियों, जैसा कि हम पहले भी आपको बता चुके हैं कि मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपने हक की मांग करने वाले हिंदुस्‍तान के 16 कर्मचारियों ने काफी बड़ी रकम का नुकसान उठा कर संस्‍थान के साथ समझौता किया है। इस खबर की उस समय पूर्ण रुप से पुष्टि नहीं हो पाई थी। अब हमारे पास कुछ और सूचना आई है जिसके अनुसार इन कर्मियों की संख्‍या 16 नहीं 12 है और इनमें से 6 ने यह समझौता किया है। बाकि बचे कर्मियों से प्रबंधन लगातार संपर्क में है और आजकल में उनका भी समझौता सिरे चढ़ सकता है। समझौता करने से पहले वे सा‍थी इन प्रश्‍नों पर जरुर गौर करें।

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साथियों, जैसा कि हम पहले भी आपको बता चुके हैं कि मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपने हक की मांग करने वाले हिंदुस्‍तान के 16 कर्मचारियों ने काफी बड़ी रकम का नुकसान उठा कर संस्‍थान के साथ समझौता किया है। इस खबर की उस समय पूर्ण रुप से पुष्टि नहीं हो पाई थी। अब हमारे पास कुछ और सूचना आई है जिसके अनुसार इन कर्मियों की संख्‍या 16 नहीं 12 है और इनमें से 6 ने यह समझौता किया है। बाकि बचे कर्मियों से प्रबंधन लगातार संपर्क में है और आजकल में उनका भी समझौता सिरे चढ़ सकता है। समझौता करने से पहले वे सा‍थी इन प्रश्‍नों पर जरुर गौर करें।

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1. अवमानना के झेमले से बाहर निकलने के लिए छटपटा रही कंपनी के साथ 80 फीसदी से अधिक की राशि का नुकसान झेल कर यह समझौता करना क्‍या ठीक होगा?

2. क्‍या सुप्रीम कोर्ट की फाइनल हियरिंग तक इंतजार नहीं किया जा सकता है, जिसके बाद वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार आपका जायज हक अपने-आप संस्‍थान को देना पड़ेगा?

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3. बर्खास्‍त कर्मियों का वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतनमान और नौकरी पर वापसी की शर्त लगाना क्‍या उचित नहीं होगा?

4. यदि बर्खास्‍त कर्मी वापस नौकरी नहीं करना चाहते तो क्‍या वे अपने बचे हुए कार्यकाल के आधार पर वीआरएस आदि की मांग नहीं कर सकते?

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हमें एक अपुष्‍ट जानकारी और मिली है कि कंपनी ने जिन छह लोगों से समझौता किया है उन्‍हें कुछ रकम चेक से दी है और बाकि नकद। ऐसे ही कंपनी अब बाकि बचे कर्मियों से अलग-अलग वार्ता कर समझौते का दवाब बना रही है। हमारा इन साथियों से अनुरोध है कि समझौते में यदि आपका जायज हक आपका मिल रहा है तो ठीक है। नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने तक इंतजार करने में कोई बुराई नहीं है क्‍योंकि अब इसके लिए ज्‍यादा लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

यदि कंपनी कुछ ज्‍यादा ही दवाब बनाने की कोशिश कर रही है तो वार्ता एकसाथ करें नाकि अलग-अलग। एकजुटता आपको कई फायदे दिलावा सकती है। यदि ऐसा न संभव हो तो सुप्रीम कोर्ट की 19 जुलाई को होने वाली सुनवाई से पहले इनसे हो रही वार्ता के क्रम को तोड़ दें या कुछ समय के लिए उनकी पहुंच से दूर हो जाएं। हमारा मानना है जब पका पकाया फल आपको मिलने वाला है तो उसे कच्‍चे में ही तोड़ लेना किसी भी तरीके से फायदे का सौदा नहीं है।

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हिंदुस्‍तान के कुछ साथियों से बातचीत के आधार पर एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

मूल खबर…

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0 Comments

  1. dksaerma

    June 27, 2016 at 1:14 pm

    मजीठिया पर अखबार मालिकों ने नया तरकीब खोज लिया है। कोर्ट से बचने के लिए माफिया मालिकों ने कर्मचारियों से कहा है कि उन्हें बढ़ा हुआ वेतन एकाउंट में भेजा जाएगा लेकिन वह राशि कार्यालय को वापस देना होगा। अब अखबारी मजदूरों को समझ में नहीं आ रहा है वह करे क्या। क्योंकि नौकरी बचाने के लिए यह करना पड़ेगा और कोई सबूत भी नहीं बचेगा ताकि कोर्ट में अपील कर सके।

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