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राष्ट्रीय सहारा अखबार के निष्क्रिय ब्यूरो चीफों को बदलने का काम शुरू

लॉक डाउन में जहाँ एक ओर अखबारों के प्रकाशन और वितरण में लगातार कमी आ रही है वही दूसरी ओर राष्ट्रीय सहारा अपनी सक्रियता बरकार रखे हुए है. जहाँ कई अखबारों के जिलों के संस्करण बन्द हो गये हैं या बंद होने के कगार पर हैं, ऐसे समय में सहारा न सिर्फ सक्रिय है बल्कि जिलों के संवाददाताओ को बदलने में भी गुरेज नहीं कर रहा है.

अभी हाल ही में राष्ट्रीय सहारा के सुल्तानपुर जिला संवाददाता को हटाकर उसकी जगह नई नियुक्ति कर दी गई. सूत्रों की मानें तो बदलाव की इस प्रक्रिया में कई अन्य जिले भी शामिल हैं. सीतापुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ जैसे जिलों में भी देर-सबेर बदलाव की बयार बह सकती है. बताया जाता है कि इन जिलों पर सहारा के उच्चाधिकारियों की पैनी नज़र बनी हुई है. इन जिलों के संवाददाताओं पर कभी भी तलवार चल सकती है.

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अपनी तैनाती के बाद से ही सहारा के नए सीईओ उपेंद्र राय ने जिस तरह से जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत काम करना शुरू किया है उससे यह तो स्पष्ठ है कि निष्क्रिय लोगों की सहारा में उपस्थिति बहुत दिनों तक नहीं बनी रह सकती है. अब देखना दिलचस्प होगा कि बाकी निष्क्रिय और विवादित जिलों में बदलाव की आंधी कब आती है.

रायबरेली में निष्क्रियता चरम पर

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पीड़ित दीपक द्वारा की गई शिकायत की कॉपी देखें

राष्ट्रीय सहारा के रायबरेली आफिस में निष्क्रियता चरम पर है. एक ही खबर दो दो बार छापी जा रही है, वह भी घटना के दसियों-बीसियों दिन बाद. अखबार का रेवेन्यू और सरकुलेशन दोनों गिरा पड़ा है. अगर किसी पीड़ित व्यक्ति ने अखबार के संवाददाता की करतूत की शिकायत कर दी तो इसे ढंकने छुपाने का खेल शुरू हो जाता है और कुछ भी अनाप शनाप जवाब भेज दिया जाता है.

लखनऊ यूनिट के रायबरेली जिले में शिकायतकर्ता दीपक ने 30 अप्रैल को संपादक को भेजे अपने लिखित शिकायत पत्र में यह बताया कि किस तरह अनुचित तरीके से एक मामूली ख़बर को 19 दिन बाद छाप कर उसकी और उसके परिवार की छवि को धूमिल करने की कोशिश की गयी.

दीपक के पत्र पर 19 दिनों बाद लिखी छपी ख़बर पर संपादक की ओर से संज्ञान लिया गया और रायबरेली के जिला संवाददाता से स्पस्टीकरण भी मांगा गया. स्पस्टीकरण का जो जवाब भेजा गया, वह बेहद असंतोषजनक और चलताऊ था. पर इसी जवाब को सही मानकर चुप्पी साध ली गई. नतीजतन पीड़ित दीपक के खिलाफ फिर एक प्रायोजित प्रार्थना पत्र लेकर सहारा में 5 मई को वही ख़बर दुबारा छाप दी गयी. इससे समझा जा सकता है कि कई जिला आफिसों में अराजकता का आलम क्या है.

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दूसरी बार छापी गई खबर

पीडि़त दीपक द्वारा की गई शिकायत का जवाब ये भेजा गया


पूरे प्रकरण को समझने के लिए इसे भी पढ़ें-

किस लालच में 19 दिन बाद छप गयी मामूली ख़बर?

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