पुष्य मित्र-
पत्रकारिता के पेशे में कई किस्म की दुश्वारियां हैं। मुश्किलें हैं। यह चुनौती का काम है ही। आप अच्छे और सच्चे पत्रकार हैं तो आपको हर जगह जूझना है। संस्थान में। सरकार और प्रशासन से। स्थानीय दबंगों से। कट्टरपंथियों से। यह इस पेशे का इन्बिल्ट हिस्सा है। यह कोई दस से छह वाली ऐसी नौकरी नहीं है जिसमें छह अंकों वाले पैकेज आसानी से ऑफ़र होते हैं। इसलिये जो भी सोच समझकर इस पेशे में आते हैं उन्हें पता होना चाहिये कि यह पेशा ऐसा ही है।
यहां आप तभी अमीर बन सकते हैं जब आप सच से आंखें मूंद और झूठ को बेचने की कला जानते हैं। वरना आपका जीवन संघर्ष और चुनौतियों के बीच ही गुजरना है। इस पेशे में 17-18 साल गुजारे। ज्यादातर वक़्त इन्हीं संघर्ष में गुजरा। मगर कभी एक पल के लिये ऐसा नहीं लगा कि यह पेशा खराब है। इसे चुनकर गलती कर बैठे। कभी पत्रकारिता को छोड़ने का विचार नहीं आया। तीन साल पहले जब नौकरी छोड़ी तब भी पत्रकारिता को ही चुना। ढाई साल इसी तरह गुजरे। फिर जब नौकरी की तो पत्रकारिता की ही की।
मुझे पत्रकारिता करते हुए कभी अफसोस नहीं होता कि यह गलत पेशा है। मैं इसे सबसे अधिक पसंद करता हूं। इसलिये इस पेशे में हूं। इसलिये जब रामायनी ने इस पेशे को चुनने की बात कही तो अच्छा लगा। मगर अपने ही बहुत प्रिय पत्रकार साथियों को जब इस पेशे को लेकर निराश देखता हूं तो मन उदास हो जाता है।
कोई भी पेशा सिर्फ अपने सुरक्षित भविष्य के लिये नहीं होता। कुछ पेशे ऐसे होते हैं जिनका काम पीढियों के भविष्य को सुरक्षित रखना होता है। मेरे लिये पत्रकारिता का पेशा यही है।