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सियासत

‘संदेशखाली’ क्षेत्रीय नहीं, एक राष्ट्रीय मुद्दा है!

बिमल राय-

हाल ही में एक पोस्ट में हेडलाइन मैनेजमेंट का कमाल बताते हुए भाई संजय कुमार सिंह जी ने कुछ अखबारों के शीर्षकों की समीक्षा की। अमर उजाला ने संदेशखाली पर हाईकोर्ट की टिप्पणी को लीड बनाया, तो इसे हेडलाइन मैनेजमेंट वाली तोहमत से दूर रखना ठीक होता। जाने-अनजाने में उन्होंने संदेशखाली से जुड़ी जघन्य कहानियों से क्षुब्ध अदालत और मानवाधिकारों के प्रति सजग लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।

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संदेशखाली में महिलाओं पर अत्याचार की सिर्फ 50 प्रतिशत घटनाएं ही नेशनल मीडिया में आयी हैं, बांग्ला के छोटे-छोटे यूट्यूब चैनल और कुछ दूसरे चैनल व बांग्ला अखबार पूरा सच दिखा रहे हैं। बताइये, देश में किस पार्टी का कार्यालय आधी रात को खुला रहता है? पहले इलाके की सुंदरी महिलाओं का चुनाव और फिर उन्हें पीठा बनाने के नाम पर बुलाना, फिर उन्हें सुबह छोड़ देना, यह देश के किस हिस्से में होता है? पीडित महिलाएं, एक दो नहीं हैं, दर्जनों हैं। सच तो यह है कि बंगाल एक तरह से देश का कोढ़ बन चुका है। देश के इस हिस्से का घाव पूरे शरीर को कैसे स्वस्थ रख सकता है?

दुकानदारों से अवैध वसूली करने, इलाके को विपक्ष शून्य करने के लिए हमले चलाने जैसी दर्जनों शिकायतों का निपटारा करने वाला कोई नहीं था। पुलिस के पास जाने पर वह हाथ बंधे होने की मजबूरी बताती थी और शाहजहां के गिरोह से मिलकर समझौता करने का अमूल्य सुझाव देती थी। यही नहीं, संवेदनहीन पुलिस उन महिलाओं की पहचान भी बता देती थी, जो थाने तक पहुंचती थीं, जिसके बाद उत्पीड़न का एक नया सिलसिला शुरू होता था।

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जेलियाखाली की महिलाओं ने हाल में 2003 के पंचायत चुनावों की एक दर्दनाक कथा सुनायी कि किस तरह शाहजहां के गुर्गों ने इस शर्त पर हैंडपंप लगवाने का आश्वासन दिया कि वे गीता पर हाथ रखकर तृणमूल को ही वोट देने की शपथ लें। इन महिलाओं ने शपथ ली, पर इनका वोट गुर्गों ने डाल दिया। हैंडपंप आज तक नहीं लगे हैं।

14 फरवरी को संदेशखाली मामले पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्वत:संज्ञान लिया था और पूरे इलाके में जारी निषेधाज्ञा खारिज कर दी थी। खूब कोशिश हुई कि लोगों को वहां पहुंचने से रोका जाये। उसी दिन सुकांत को रोककर पुलिस प्रशासन ने उनका विशेषाधिकार हनन किया। कलकत्ता हाई कोर्ट ने साफ कहा कि पुलिस प्रशासन ग्रामीण महिलाओं के विरोध को कुचलने के लिए हर तरह की कोशिशें करने के बदले अपराध में शामिल अपराधियों की तलाश करे। मालूम हो कि कई सौ करोड़ के राशन घोटाले के सिलसिले में छापा मारने गयी प्रवर्तन निदेशालय की टीम पर शाहजहां के गुर्गो ने हमला किया था और तभी से उसे 55 दिन तक फरार बताया गया।

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सच में वह पुलिस संरक्षण में था। वह अपने इलाके की जनता के नाम वीडियो संदेश जारी कर रहा था, उसका प्रमुख गुर्गा शिबू हाजरा मीडिया को इंटरव्यू दे रहा था, पर दोनों ममता की पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहे थे। सबको याद होगा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने विधानसभा चुनावों के बाद चुनावी हिंसा की जांच के बाद कहा था कि बंगाल में कानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का कानून चलता है। अब सवाल है कि जिस राज्य की महिला सीएम ही संवेदनहीनता की हद पार कर दें तो पुलिस संदेश पढ़ने में देर नहीं कर सकती। ममता खुद पुलिस मंत्री हैं।

15 फरवरी को विधानसभा में उन्होंने एक तरह से शाहजहां का बचाव किया और दोष लगाया भाजपा और आरएसएस पर। यह भी कहा कि भाजपा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने हाथ मिला लिया है। सरकार को बदनाम करने के लिए बाहर से महिलाओं को लाया गया था। रेखा पात्र के हिंदी बोलने पर ममता ने उन्हें बाहरी बता दिया। वैसे वे हिंदीभाषियों को बाहरी ही मानती हैं। अब बशीरहाट से भाजपा ने उसे ही प्रत्याशी बनाया है और ये महिलाएं हार-जीत की चिंता किये बिना सड़कों पर उतर चुकी हैं।

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जून 2019 में भी 3 भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले में शेख शाहजहां का नाम आया था, पर उस समय भी ममता ने उसका बचाव किया था। वाम जमाने में शेख शाहजहां की औकात एक स्थानीय रंगबाज की थी, पर ममता की शरण में आने के बाद उसके रसूख के साथ-साथ उसकी संपत्ति भी तेजी से बढ़ी। ईडी के मुताबिक आज वह कई सौ करोड़ का मालिक है। ऐसा लगता है कि सच को निर्लज्ज भाव से नकारने की इस कला में ममता के मंत्री से लेकर संतरी तक सिद्धहस्त चुके हैं।

शिक्षा घोटाले में पार्थ चटर्जी, पशु तस्करी घोटाले में अणुव्रत मंडल, राशन घोटाले में जेल में बंद मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक सहित काले कारनामे करने वाले दर्जनों अभियुक्तों का ममता ने हर बार बचाव किया। याद करें, राजीव कुमार वही आईपीएस अधिकारी हैं, जिनको शारदा चिटफंड मामले में सीबीआई की संभावित गिरफ्तारी से बचाने के लिए ममता सड़क पर धरने पर बैठ गयी थीं। उन्हें ममता ने राज्य पुलिस महानिदेशक बना दिया था, पर आचार सहिता लागू होते ही चुनाव आयोग ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।

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कानून की किताब की एक लाइन- अपराध साबित होने तक हर कोई निर्दोष है- की ओट में हर धतकरम को ढंका जा रहा है। चुनावी हिंसा शुरू हो चुकी है। यहां विपक्षी दलों के नेताओं पर हमलों को उन दलों के बीच की आपसी कलह का नतीजा बताया जाता है। विपक्षी नेताओं को जनसभाएं करने के लिए हर बार हाईकोर्ट जाना पडता है। दर्जनों मामलों में हाईकोर्ट की फटकार का भी इन पर कोई असर नहीं होता।

कानून और प्रशासन की छाती पर दरी बिछाकर शेख शाहजहां नाम का जुल्मी कबीलाई सरदार अपनी हुकूमत चला रहा था। खुलासे होने पर पुलिस प्रभावित इलाकों में घूम-घूम कर लोगों खासकर महिलाओं से मीडिया के सामने मुंह नहीं खोलने की हिदायत दे रही थी। तमाम धमकियों के बावजूद वे कई दिनों तक मीडिया से मुंह ढंककर ही सही, अपनी आपबीती सुनाती रहीं। लोकसभा में यहां के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली सुंदरी सांसद नुसरत जहां को इलाके की महिलाओं के आंसू पोंछने चाहिए थे, पर वे 14 फरवरी को इंस्टाग्राम पर वेलेंटाइन डे मनाती देखी गयीं।

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संदेशखाली मामले में ईडी टीम पर जानलेवा हमला करवाने वाले शेख शाहजहां को 55 दिन तक पकड़ा नहीं गया, यह तुष्टिकरण की पराकाष्ठा थी। वैसे कुछ साल पहले ईद मिलन समारोह में सीएम ममता ने जब मंच से कह दिया कि दुधारू गाय की लात भी सही जाती है, जो इसमें छिपाने लायक कुछ रह नहीं जाता। अभी 4 अप्रैल को उत्तर बंगाल में चुनाव सभा में ममता ने लोगों से कहा कि वे दंगा न करें, दंगा न होने दें। रामनवमी से पहले यह संदेश जारी करने की क्या जरूरत थी? क्या यह दंगे की याद दिलाकर उकसाना नहीं है?

6 अप्रैल को एनआईए की टीम पर हमला भी उकसावे का नतीजा थी। 2022 की बात है। पूर्वी मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर में एक स्थानीय तृणमूल नेता के घर में बम बनाये जा रहे थे, तभी विस्फोट हुआ और 3 लोगों के चीथड़े उड़ गये। दो घायल फरार हो गये थे। एनआईए को तभी से इनकी तलाश थी। एनआईए को जांच की जिम्मा भी कलकत्ता हाईकोर्ट ने दिया था। बीते 5 अप्रैल को ममता ने इसे पटाखा विस्फोट बताया और कहा कि चुनावी मौसम में भाजपा तृणमूल के लोगों को पकड़वा रही है। क्या ममता नहीं चाहतीं कि उनके “शहीद” हुए कार्यकर्ताओं को न्याय मिले? बंगाल का नाम डूब रहा है, ईश्वर रक्षा करे।

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