खबर सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में लीड है, यहां पढ़िये – केंद्र सरकार पर झूठ बोलने का आरोप और बचाव में केंद्र सरकार के वकील की राजनीति व आक्रामकता देखिये
संजय कुमार सिंह
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यूट्यूब पर आरोप लगाने वाले सभी लोगों को जेल नहीं भेजा जा सकता है। अदालतों में सरकार की ओर से जो मामले हैं यह उसका एक सच है। दूसरा सच यह भी है कि यूट्यूब और दूसरे सोशल साइट से तमाम वीडियो और पोस्ट हटवा दिये जा रहे हैं अकाउंट बंद और निलंबित किये जा रहे हैं। सरकार ने सख्त कानून बनाये हैं फिर भी जिनके वीडियो हटवाये जा रहे हैं या जिनके अकाउंट निलंबित किये जा रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है, सूचना और जवाब देने का मौका तो नहीं ही है। बस, एक तरफा कार्रवाई और वह भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रोकना सुनिश्चित करने वाली – अपराध (अगर कोई हुआ हो) तो कार्रवाई नहीं होती है लेकिन वीडियो-पोस्ट हटवाये जा रहे हैं। ऐसे में हेडलाइन मैनेजमेंट का आलम यह है कि शेयर बाजार की पूंजी 400 लाख करोड़ हुई तो महत्वपूर्ण खबर है लेकिन घरेलू बचत न्यूनतम और कर्ज अधिकतम है तो खबर गोल है। सरकारी नीतियों का असर सामान्य परिवारों पर है लेकिन प्रचार ‘सब चंगा सी’ का है।
आज के अखबारों के लिए चुनावी लीड सुप्रीम कोर्ट ने दी है और इससे 10 साल के मोदी राज में सरकार के ‘काम’ के साथ अदालतों की दशा-दिशा का भी पता चलता है। चुनाव के इस समय में प्रधानमंत्री ने जब सरकारी एजेंसियों को विपक्षी दलों के खिलाफ छुट्टा छोड़ दिया है और खुद सरकारी खर्चे पर घूम-घूम पर अपनी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं। अपनी प्रशंसा में झूठ बोलें, सरकारी एजेंसी और उसकी कार्रवाई का दुरुपयोग करें तो न सिर्फ चुनाव आयोग को देखना चाहिये बल्कि मीडिया को भी सच बताना चाहिये। पर देश के ‘पहले शक्तिशाली’ प्रधानमंत्री ने अगर अपनी पसंद का चुनाव आयोग बना लिया है तो मीडिया भी सच बताने से न सिर्फ बच रहा है बल्कि उनके झूठ का प्रचार भी कर रहा है। विस्तार में जाने से पहले आपको इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड का शीर्षक बताना जरूरी है।
इस खबर का फ्लैग शीर्षक है – सूखा सहायता पर कर्नाटक की अपील। मुख्य शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट ने कहा : कृपया (केंद्र-राज्य में) कोई कलह न हो, राज्य अदालत में आ रहे हैं”। उपशीर्षक है, “केंद्र गलत सूचना दे रहा है, देरी के लिए राज्य पर आरोप लगा रहा है, बेहद निन्दनीय … झूठ का खुलासा करूंगा : सिद्धारमैया।” अनंतकृष्णन जी की बाइलाइन वाली इस खबर की शुरुआती लाइनें इस प्रकार हैं, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि “कलह” से बचें और यह दर्ज किया कि विभिन्न राज्य सरकारें धन के भुगतान के मामले में अदालतों की शरण ले रही हैं। न्यायमूर्ति बीआर गवई तथा संदीप मेहता की पीठ कर्नाटक सरकार की अपील सुन रही थी। इसमें केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि सूखा प्रबंध के लिए नेशनल डिजास्टर रेसपांस फंड (एनडीआरएफ) से वित्तीय सहायता जारी करने के निर्देश दिये जायें। राज्य सरकार के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और केंद्र के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोपों का आदान-प्रदान किया तो न्यायमूर्ति गवई ने कहा, कृपया लड़ें नहीं।
कर्नाटक सरकार ने केंद्र पर सूखा प्रबंधन के लिए वित्तीय सहायता नहीं देने का आरोप लगाया है। सरकार की तरफ से सिब्बल ने पीठ को बताया कि नियमों के अनुसार केंद्र को अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम (आईएमसीटी) की रिपोर्ट प्राप्त होने के एक महीने के भीतर एनडीआरएफ सहायता प्रदान करने पर अंतिम निर्णय लेना है। कर्नाटक के लिए, यह अवधि दिसंबर 2023 में समाप्त हो गई, लेकिन उन्होंने कहा, आगे कुछ नहीं हुआ। इसपर मेहता ने कहा कि अगर राज्य के किसी व्यक्ति ने अदालत का दरवाजा खटखटाने के बजाय केंद्र से बात की होती तो मामला सुलझ सकता था। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले याचिका के समय पर भी सवाल उठाया और अदालत से नोटिस जारी नहीं करने का आग्रह किया। इसपर अदालत ने कहा कि कई राज्य धन के वितरण से संबंधित मामलों में केंद्र से राहत पाने के लिए उससे संपर्क कर रहे हैं। मेहता ने जवाब दिया: “मैं यह नहीं कहना चाहता कि क्यों, लेकिन यह एक बढ़ती प्रवृत्ति है…”। मेहता और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी मामले पर निर्देशों के साथ अदालत में वापस आने पर सहमत हुए।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए पोस्ट किया। कहने की जरूरत नहीं है कि मामला गंभीर है, नया है और केंद्र सरकार का अनूठा व्यवहार है जो पहले नहीं होता था और चुनाव से पहले जनता को मालूम होना चाहिये। खासकर इसलिए कि प्रधानमंत्री अपनी और अपनी सरकार की प्रशंसा में कांग्रेस व विपक्षी दलों के खिलाफ घूम-घूम कर झूठ बोल रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में भी मामले को राजनीतिक बना दिया गया। इस पर राजनीतिक जवाब भी आना ही था। खबर के अनुसार, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक बयान में कहा है, केंद्र पर सुप्रीम कोर्ट को “झूठी जानकारी” देने का आरोप लगाया। “आज की सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि सूखा राहत में देरी के लिए कर्नाटक सरकार दोषी है, इसके पीछे राजनीतिक मकसद का संकेत भी दिया गया है। यह बेहद निंदनीय है,”। इसके बाद मैंने और राजस्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर अपील की थी। हमारे उपमुख्यमंत्री ने भी केंद्रीय वित्त मंत्री से अलग से मुलाकात की थी। इसके बावजूद, केंद्रीय वित्त मंत्री और गृह मंत्री बेशर्मी से झूठा दावा करते रहे कि कर्नाटक सरकार ने अपना अनुरोध प्रस्तुत करने में देर कर दी है। आज केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने भी यह झूठ दोहराया।”
यह खबर आज मेरे किसी और अखबार में लीड तो नहीं ही है, कई अखबारों में पहले पन्ने पर भी नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम में टॉप पर जरूर है। लेकिन उसे यह लीड बनाने लायक महत्वपूर्ण नहीं लगी। यहां “सब चंगा सी” बताने वाली खबर लीड है। शीर्षक है, “सेनसेक्स की नई उपलब्धि : बाजार पूंजी 400 लाख करोड़ रुपये हुआ”। कहने की जरूरत नहीं है कि पूंजी बाजार की अलग दुनिया है और सरकार जैसी हो, इलेक्टोरल बांड वाली भी हो तो धंधे-दुकाने चलेंगे ही और जब घाटा उठाने वाली कंपनियां ‘दान’ दे रही हैं मुनाफे से ज्यादा चंदा दिया गया है तो इस उपलब्धि के बहुत मायने नहीं हैं। बेशक, लीड बनाने से लोगों को लगेगा कि इस सरकार में यह उपलब्धि हासिल हुई। लोग हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट को शायद भूल जायें। हो सकता है उस समय जिन्हें घाटा हुआ हो वे खुश भी हों या उनके घाटे की भरपाई हो गई हो। हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले पन्ने की बात करूं तो यहां और दूसरे अखबारों में भी, एक और बड़ी खबर डबल कॉलम में है। इसका शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के शराब ‘घोटाले‘ में ईडी के मामले को खारिज किया”। केंद्र सरकार जब विपक्षी सरकारों को ईडी के जरिये लपेटने में लगी है तब छत्तीसगढ़ में भाजपा से चुनाव हार चुकी सरकार के खिलाफ ईडी का मामला सुप्रीम कोर्ट में खारिज किया जाना मायने रखता दिल्ली के शराब घोटाले से इसका संबंध हो या नहीं दिल्ली के पाठकों के लिए इस ‘खबर’ का मतलब है। पहले पन्ने की खबरों का चयन अगर मानवीय तौर पर हो तो इसे पहले पन्ने पर रखने और नहीं रखने (बेशक, दूसरे खबरों के संदर्भ में भी) का मतलब आप समझ सकते हैं।
आज की ऐसी खबरों के बीच टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड अरुणाचल प्रदेश की खबर है। शीर्षक है, “अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा था, है और रहेगा : प्रधानमंत्री”। इंट्रो है, “समय पर सरकार की भूमिका ने मणिपुर में स्थिति को बेहतर किया”। असल में, अरुणाचल सीमा पर चीनी गतिविधियों के कारण मामला चर्चा में रहा है। इस पर प्रधानमंत्री के बयान की अपेक्षा थी। आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री से सवाल पूछे नहीं जाते हैं। जवाब वे देते नहीं और प्रेस कांफ्रेंस किया ही नहीं है। ऐसे में असम ट्रिब्यून से इंटरव्यू में अरुणाचल के साथ मणिपुर पर सवाल और उसका जवाब निश्चित रूप से दुर्लभ है और टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे लीड बनाया है तो कारण यही होगा। वैसे भी, इस इंटरव्यू में दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर सवाल-जवाब है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड के शीर्षक और इंट्रो में दोनों बातें बता दी हैं। मणिपुर में पिछले साल मई में शुरू हुई हिंसा पर प्रधानमंत्री की टिप्पणी है, संघर्ष का हल करने के लिए हमलोगों ने अपने सर्वोत्तम संसाधनों और पूरी प्रशासनिक मशीनरी को लगा दिया। उन्होंने कहा जब संघर्ष चरम पर था तब गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर में रहे और संघर्ष को सुलझाने में मदद के लिए अलग-अलग ग्रुप के साथ 15 से अधिक बैठके कीं। यह अलग बात है कि मणिपुर में 24 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हैं और उनके राहत शिविर से ही मतदान करने की व्यवस्था की गई है और राज्य की दो लोकसभा सीटों के लिए 19 और 26 अप्रैल को दो चरणों में मतदान होने हैं। कई नागरिक समाज समूह और प्रभावित लोग संघर्षग्रस्त राज्य में चुनावों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते रहे हैं। राज्य के 50 प्रतिशत मतदान केंद्रों को संवेदनशील चिन्हित किया गया है। विस्थापितों को मतदान की सुविधा प्रदान करने के लिए 94 विशेष मतदान केंद्र स्थापित किये जायेंगे।
देश में अदालतों की दशा दिशा बताने वाली एक और खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में है। इसके अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हाईकोर्ट के जजों को समय पर फैसला देना चाहिये तो कई जजों ने मामले छोड़ने का विकल्प चुना। मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखा था ताकि उन मामलों का डाटा एकत्र किया जा सके जिसमें फैसला तीन महीने से ज्यादा रिजर्व रहा है। मुख्य न्यायाधीशों ने डाटा इकट्ठा करना शुरू किया तो कई जजों ने मामले को फिर से सुनवाई के लिए रिलीज कर दिया। सीजेआई ने कहा कि हाईकोर्ट के एक जज ने 10 महीने तक मामला रिजर्व रखा और फिर से सुनवाई के लिए अपने रोस्टर से रिलीज कर दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार एनआईए की छापामारी के बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने ईसी से दखल देने के लिए कहा। इसके लिए पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के पूर्ण बेंच से मुलाकात की। द हिन्दू में यह खबर तीन कॉलम में फोटो के साथ है। फोटो कैप्शन पहले बता देता हूं, पुलिस ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन को नई दिल्ली में चुनाव आयोग के दफ्तर के बाहर रोक लिया। खबर का शीर्षक है, तृणमूल के नेताओं को प्रदर्शन के दौरान चुनाव आयोग के पास रोक लिया गया। कहने की जरूरत नहीं है कि टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर से लगता है कि तृणमूल नेताओं ने चुनाव आयोग के अधिकारियों (फुल बेंच लिखा है मतलब तीनों आयक्तों) से मुलाकात कर भाजपा द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग रोकने की मांग की। खबर के अनुसार पार्टी ने यह कार्रवाई तब की जब सीबीआई ने तीन साल पुराने चुनावी हिंसा के मामले में टीएमसी के 30 कार्यकर्ताओं को नोटिस दिया।
द हिन्दू की खबर बताती है कि दिल्ली पुलिस ने चुनाव आयोग कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के कुछ ही मिनट बाद तृणमूल नेताओं को रोक लिया गया। वे भाजपा और एनआईए के बीच अपवित्र गठबंधन की शिकायत करने आये थे। खबर में एनआईए का पक्ष भी है और इस तरह भाजपा इस आरोप का जवाब देने से भी मुक्त कर दी गई है। अखबार ने इसके बाद बताया है कि पार्टी ने चुनाव आयोग को ज्ञापन देकर क्या मांग की है। मुझे दोनों खबरों की प्रस्तुति से मिलने वाले संदेश में भारी अंतर लगता है और मैं यहां इसी को रेखांकित करता हूं। पाठक चाहें तो दोनों खबरों या अखबारों का मिलान कर सकते हैं। इस मामले में द टेलीग्राफ की खबर का शीर्षक है सरकारी एजेंसियों (सीबीआई, ईडी, एनआईए और आईटी या आयकर) के प्रमुखों को बाहर करने की मांग पर तृणमूल का धरना। कलकत्ता डेटलाइन की इस खबर में बताया गया है कि पार्टी ने दिल्ली में चुनाव आयोग से इस असाधारण मांग पर धरना दिया था। तृणमूल कांग्रेस का तर्क है कि ऐसा करने से केंद्र सरकार चुनाव प्रक्रिया के दौरान इन एजेंसियों का दुरुपयोग नहीं कर पायेगी।
दि हिन्दू में इंडियन एक्सप्रेस वाली खबर तो है ही जो हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम छपी है वह यहां लीड के बराबर में दो कॉलम में छपा है। इसके अलावा एक और खबर है जो दक्षिण भारत की होने के कारण दिल्ली के दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं होगी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के समय 2008-09 के भ्रष्टाचार के इस मामले के ट्रायल पर स्टे दिया है तो इसके राजनीतिक मायने हैं। दूसरी ओर यह आदेश इसलिए आया है कि ट्रायल कोर्ट के विशेष न्यायाधीश ने इस मामले में कार्यवाही को टालने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि हाईकोर्ट ने इस मामले को 31 जुलाई 2024 तक पूरा करने का समय दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी है। मामला तमिलनाडु के मंत्री आई पेरियासामी का है और ट्रायल कोर्ट ने मंत्री को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट के जज, जस्टिस आनंद वेंकटेश की एकल-न्यायाधीश पीठ ने स्वत: संज्ञान के माध्यम से ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया था। लाइव लॉ के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को स्थगित करने के लिए ट्रायल कोर्ट में आवेदन करने की स्वतंत्रता दी थी लेकिन उसी आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया तो मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है: “यह अदालत उसी फैसले की योग्यता की जांच कर रही है… इन परिस्थितियों में हमारा विचार है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा आदेशित मुकदमा आगे नहीं बढ़ना चाहिए, जबकि यह अदालत आरोपी द्वारा चुनौती पर विचार कर रही है। तदनुसार, कार्यवाही जारी है, सुनवाई की अगली तारीख तक रोक लगा दी गई।”
द टेलीग्राफ ने अपनी लीड से यह बताने की कोशिश की है कि तमाम महत्वपूर्ण चिन्ताओं को दबाकर इस समय सदी पुराने मुद्दे चर्चा में है। मुख्य शीर्षक है, 2024 की गर्मी में जिन्ना के नाम पर झूठे हमले। लीड के साथ एक और खबर का शीर्षक है, मुद्दा महत्वपूर्ण है, मोदी नहीं : तेजस्वी। यहां सुप्रीम कोर्ट वाली खबर सिंगल कॉलम में है। द हिन्दू की लीड सरकारी बाजा बजाने वाली नहीं है। इसके अनुसार दिसंबर 2023 में घरेलू कर्ज बढ़कर नई उंचाइयों पर पहुंच गया है। एक अनुसंधान की रिपोर्ट के अनुसार कर्ज का स्तर जीडीपी का 40 प्रतिशत हो गया है जो अभी तक का सबसे ज्यादा है जबकि शुद्ध वित्तीय बचत के गिरकर जीडीपी के 5% के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाने की संभावना है। अमर उजाला में आज लीड तो पहले चरण के चुनाव की खबर है लेकिन लीड के साथ तीन कॉलम में टॉप छपी खबर का शीर्षक है, “विपक्ष का भ्रष्टाचार रोका तो लाठी से सिर फोड़ने की धमकी देने लगे : मोदी”। पीएम – बोले मैंने लूट का लाइसेंस ही कर दिया खत्म। यह खबर रायपुर / जगदलपुर डेटलाइन से है और इसके नीचे छत्तीसगढ़ शराब घोटाले की खबर इतनी ही बड़ी और इससे बड़े फौन्ट में शीर्षक के साथ है। यहां इस खबर के साथ एक खास जानकारी प्रमुखता से दी गई है, एएसजी ने नई शिकायत दर्ज करने के दिये संकेत। नवोदय टाइम्स की लीड है, चुनावी लड़ाई कड़वी हुई। इसके साथ पहला शीर्षक है, कांग्रेस करेला, शक्कर में घोल लो तभी कड़वी ही रहेगी : मोदी। दूसरी खबर का शीर्षक है, पीएम मोदी के वैचारिक पूर्वजों ने मुस्लिम लीग का साथ दिया था : खरगे। यहां गौरतलब यह भी है कि शेयर बाजार की पूंजी 400 लाख करोड़ हुई तो महत्वपूर्ण खबर है लेकिन घरेलू बचत न्यूनतम और कर्ज अधिकतम है तो खबर गोल है।