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उत्तर प्रदेश

पत्रकार पर रंगदारी की FIR में PM-CM का नाम लेकर जमानत खारिज, पर इसका जवाब कौन देगा?

लाहाबाद हाई कोर्ट से पत्रकार अमित मौर्या की जमानत याचिका खारिज हो गई है. उनकी जमानत याचिका प्रधानमंत्री और यूपी के सीएम योगी के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणा फैलाने को लेकर खारिज की गई है. अमित मौर्या पर आरोप है कि उन्होंने पूर्वांचल ट्रक ओनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष से पैसे मांगे, साथ ही उसकी छवि खराब करने वाला लेख छापने की भी धमकी दी.

मौर्या की जमानत खारिजा करते हुए न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने कहा, लाभ लेने या धमकी के जरिए लोगों का उत्पीड़न करने के लिए मीडिया के क्षेत्र में अपने पद का दुरुपयोग करने से पत्रकारिता की निष्ठा खराब होती है. इस तरह के कृत्य से ना केवल मीडिया से लोगों का भरोसा घटता है, बल्कि लोकतांत्रिक सिद्धांत भी कमजोर होते हैं.

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पत्रकार अमित मौर्या पर वाराणसी के थाना लालपुर में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. जिसकी जमानत अर्जी 13 मार्च 2024 को खारिज कर दी गई.

अब इसके पीछे की जो क्रोनोलॉजी है उसे समझिए. पीड़ित की तरफ से मामले में कुछ सवाल उठाए जा रहे हैं उन्हें नीचे पढ़िए…

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  1. सोचिये कम्प्लेन रंगदारी की और जज महोदया फैसला सुना रही हैं कि यह सीएम-पीएम पर अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं. अगर भाषा अभद्र है तो मानहानि होनी चाहिए. वह भी सरकार की तरफ से और अगर मामला रंगदारी का है तो फिर उस पर बहस होनी चाहिए थी, जो हुई ही नहीं.
  2. चार्जशीट में लिखा गया है कि शिकायतकर्ता का कहना है कि एक व्यक्ति इकहरे बदन का सुबह आया और अखबार बाँटते हुए रंगदारी की मांग की. एक व्यक्ति न कि अमित मौर्या, और दूसरा इकहरे बदन का जबकि अमित तिहरे बदन का है.
  3. आरोपी ने कहा कि मेरे सीसीटीवी फुटेज में है… मगर डिजिटल साक्ष्य पर बहस ही नहीं हुई जबकि फुटेज में मिलान होने पर दूध का दूध पानी का पानी हो जाता.
  4. तीसरा उसने एफआईआर के वक्त गवाह का जिक्र नहीं किया. अब दो गवाह डाला है. कि मेरे यहाँ सुबह 6:30 पर मीटिंग के लिए आये थे.
  5. पहली बात इतनी सुबह कौन सी मीटिंग… और दूसरी बात की अगर आये होंगे तो सीसीटीवी में दोनों गवाह होंगे न.

मतलब कल को कोई भी किसी के खिलाफ, किसी भी तरह का मुकदमा दर्ज कराएगा और कह देगा कि इसने मोदी-योगी को गाली दी. बदनामी की, तो आधे से ज्यादा पत्रकार भाई-बहन जेल में ही दिखेंगे. वैसे भी किसी के खिलाफ कुछ लिखने छापने वालों से खुश भी आखिर कौन और क्यों रहेगा. लेकिन अदालत को इस मामले में तसल्लीबख्श जांच कराकर नजीर पेश करनी थी. बावजूद इसके कोर्ट ने मोदी-योगी की माला जपते हुए पत्रकार को जमानत देने से इनकार कर दिया, जोकि किसी भी रूप में न्याय तो नहीं ही कहा जा सकता है… जैसा पीड़ित अपनी सफाई में 5 सवाल पूछ रहा है.

देखें बेल रिजेक्शन की कॉपी…

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