हेडलाइन मैनेजमेंट का कमाल – कूचबिहार में भी प्रधानमंत्री ने सभा की लेकिन प्रधानमंत्री और उनके भाषण को छोड़कर ‘विषय’ को महत्व देने का हेडलाइन मैनेजमेंट समझिये
संजय कुमार सिंह
आज हिन्दी के मेरे दोनों अखबारों की लीड एक है। इसके अलावा छह अखबारों में सबकी लीड और सेकेंड लीड अलग है। अच्छी खबरें न हों तो ऐसा होता है लेकिन हिन्दी के अखबारों में जो खबर लीड है वह संदेशखली यानी पश्चिम बंगाल की है। अमर उजाला का शीर्षक है, “संदेशखाली में जो हुआ उसके लिए 100 फीसदी राज्य सरकार जिम्मेदार : हाईकोर्ट”। उपशीर्षक है, अदालत ने कहा – “आंख बंद कर लेने से दुनिया में अंधेरा नहीं हो जाता”। नवोदय टाइम्स का शीर्षक है, “एक प्रतिशत भी आरोप सही हुए तो होगी बेहद शर्मनाक स्थिति”। मुझे नहीं लगता किसी राज्य सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट की यह टिप्पणी इतनी गंभीर है। वैसे तो अखबारों में इस तरह का अंतर या समानता कोई खास बात नहीं है लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार हेडलाइन मैनेजमेंट करती है और सरकारी विज्ञापनों के लालच में अखबार भी ऐसा कर रहे हैं तो मुझे लगता है कि इसे रेखांकित किया जाना चाहिये। कहने की जरूरत नहीं है कि पेगासस के जमाने में रोज फोन करके निर्देश नहीं दिये जाते होंगे ना ही पूछना संभव है तो एक जनरल इंस्ट्रक्शन या समान्य निर्देश होगा कि भाजपा का प्रचार करना है या उसकी अच्छी सेवा होनी चाहिये। आज के अखबारों में यही दिख रहा है। मैं खबरें बता दूं आप खेल समझ जायेंगे और खेल शीर्षक में भी होता है।
मैं ऐसे मामले दर्ज करता जा रहा हूं। ताकि कभी जरूरत हो तो याद किया जा सके कि इमरजेंसी और बिहार प्रेस बिल (दोनों कांग्रेस शासन में आये थे) का विरोध करने वाले मीडिया ने केंद्र की भाजपा सरकार की कैसी सेवा की। हिन्दी के अखबार में बंगाल की खबर का लीड होना और वह भी इस शीर्षक से, मुझे नहीं लगता है कि सामान्य है। वह भी तब जब हम जानते हैं कि कलकत्ता हाईकोर्ट के एक जज भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। ठीक है कि यह मामला दूसरे जज साब का है और जरूरी नहीं है कि वे भाजपा के समर्थक हों पर संदेशखाली में भाजपा चुनाव लड़ रही है और मुद्दा यही है। दैनिक जागरण की एक खबर के अनुसार, भाजपा ने संदेशखाली की रहने वाली रेखा पात्र को बशीरहाट से लोकसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब संदेशखाली की पीड़िताओं से मिलने बंगाल गये थे तो जिनसे मिले उनमें रेखा पात्र भी थीं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक इसके बाद खुद प्रधानमंत्री ने रेखा के नाम पर मुहर लगाई। खबरों के अनुसार रेखा ने ही सबसे पहले संदेशखाली की महिलाओं की आवाज बुलंद की थी।
टीवी9हिन्दी की एक खबर के अनुसार उम्मीदवार बनाने के बाद प्रधानमंत्री ने रेखा पात्र को फोन करके कहा, आप शक्ति स्वरूपा हैं…अखबारों में खबर छपी थी कि प्रधानमंत्री ने रेखा से फोन पर बात की और चुनाव तैयारियों से संबंधित चर्चा की। कहने की जरूरत नहीं है कि यह काम भाजपा अध्यक्ष करते और देश के प्रधानमंत्री के करने में भारी अंतर है पर अब यह मुद्दा नहीं रह गया है। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव आयोग से इसकी शिकायत की है और कहा है कि उम्मीदवारों से प्रधानमंत्री की फोन पर बातचीत एक कैमपेन स्टंट है जिसे मीडिया में फैलाया गया है और भाजपा के ऑफिशियल इंस्टाग्राम हैंडल पर भी अपलोड किया गया है। लेकिन इससे जो फायदा होना था वह हो चुका। उसे वापस नहीं किया जा सकता है। ऐसे में आज संदेशखली की खबर को प्रधानमंत्री की बिहार की चुनावी सभा से ज्यादा महत्व देने का मतलब आप समझ सकते हैं। यह अलग बात है कि इस चुनाव सभा में उन्होंने जो कहा वह अब वोट दिलाऊ या चुनाव जिताऊ नहीं लगता है।
संदेशखाली की ही बात करूं तो अमर उजाला (और दूसरे अखबारों ने भी) आज लिखा है, पीएम मोदी भी बोले – दोषियों की जिन्दगी जेल में कटेगी। कहने की जरूरत नहीं है कि संदेशखाली को भाजपा ने जबरन मुद्दा बनाया है। मुझे हमेशा से लगता रहा है कि यौन शोषण की जो खबरें, जितनी मात्रा में छपी हैं और जिस तरह की शिकायतें हैं वह सब एक सभ्य समाज में संभव ही नहीं है। ठीक है कि पुलिस आंख मूंद सकती है लेकिन पीड़ित और दूसरे लोगों ने शिकायत क्यों नहीं की, जो खबरें अब छप रही हैं वो तभी क्यों नहीं छपवाई गई। संभव है आज देश में जो हाल है वही बंगाल में भी हो और खबर छपने से भी कुछ नहीं होता या खबर छपती ही नहीं – पर यह भी तो शिकायत में कहा जाना चाहिये। दूसरी ओर, आज छपी खबर में कहा गया है और यह हाईकोर्ट की टिप्पणी है, जो नवोदय टाइम्स का शीर्षक भी है। अगर एक प्रतिशत आरोप के सही होने की ही ‘उम्मीद’ है तो पक्का कुछ नहीं है और भले यह शर्मनाक स्थिति हो लेकिन इससे पश्चिम बंगाल की छवि खराब हो जायेगी। यानी अभी हुई नहीं है। पर खबरें याद कीजिये। प्रधानमंत्री तो प्रचार कर ही रहे हैं।
कोलकाता के अखबार द टेलीग्राफ में हाईकोर्ट की यह टिप्पणी सेकेंड लीड है। शीर्षक है, “झेलो, टीएमसी : संदेशखाली की नैतिक जिम्मेदारी”। कहने की जरूरत नहीं है कि मामला सच भी हो तो ऐसा ही है। ऐसा ही बनाया जा रहा है और दोषियों को सजा से ज्यादा महत्वपूर्ण टीएमसी की जिम्मेदारी को प्रचारित करना ही लग रहा है। द टेलीग्राफ ने अपनी खबर में लिखा है, (हाईकोर्ट के) मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के अनुसार, बंगाल महिलाओं की सुरक्षा में नंबर एक पर है और अगर एक भी हलफनामा सही साबित होता है, तो आंकड़े गिर जाते हैं, सार्वजनिक छवि गिर जाती है, राय खराब होती है। यदि यह गिर कर बिखर जाए, तो इसे ठीक नहीं किया जा सकता है।” जाहिर है, यहां (हाईकोर्ट की चिन्ता) कुछ और है जबकि हमारे अखबारों ने कुछ और बताने-दिखाने की कोशिश की है।
यही नहीं, इस खबर को ज्यादा महत्व देने, तृणमूल कांग्रेस को बदनाम करने के लिए दोनों हिन्दी अखबारों ने प्रधानमंत्री की चुनावी सभा की खबर छोड़ दी है। कम से कम पहले पन्ने पर तो नहीं है। नवोदय टाइम्स में यह खबर दूसरे पहले पन्ने पर है, “आज का भारत घर में घुसकर मारता है : मोदी” शीर्षक से है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को आज लीड बनाया है। शीर्षक है, “मोदी ने चुनाव अभियान में पूर्वी जोर की शुरुआत की”। घुसकर मारने का दावा 2019 में पुलवामा के बाद किया गया था। पर पुलवामा में जो घुसकर मार गया उसका पता पांच साल में नहीं लगा और तबके राज्यपाल सत्यपाल मलिक बता चुके हैं कि हमारी यानी सरकार की गलती से हुआ। फिर भी, इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर कांग्रेस की आलोचना की और कहा, अब भारत घर में घुसकर मारता है। कहने की जरूरत नहीं है कि चीन में भारत घुसा हुआ है और गांवों के नाम बदल दिये हैं पर भारत बयान और खबरों से आगे नहीं बढ़ पाया है। आज ही इंडियन एक्सप्रेस की लीड से पता चलता है कि 21 दिसंबर 2023 को कश्मीर के पुंछ में एक आतंकवादी वारदात हुई थी (अब घुसकर मारता है के बावजूद)।
इसकी जांच के सिलसिले में सेना ने कुछ लोगों को उठाया था जिनकी हिरासत में यातना से मौत हो गई थी। अब पता चला है कि इसमें उसके 7-8 लोग दोषी हैं और इनमें अफसर भी हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि मारता होगा घुसकर भारत पर वह नागरिकों को भी मारता है और यह जमाने से चला आ रहा है अब तो विपक्षी नेताओं को फंसाया भी जाता है। भाजपा में शामिल होने के लिए दबाव भी डाला जाता है। आप जानते हैं कि इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार जो भाजपा में शामिल हो जाते हैं उनका मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। फिर भी इंडियन एक्सप्रेस में आज ही खबर है कि उस खबर पर एक अधिकारी ने कहा है और अखबार ने उसे भी छापा है कि ईडी कानूनी सलाह और सबूत के आधार पर काम करता है दल बदलने के आधार पर नहीं। अखबार ने ईडी की सारी बातें बिन्दुवार छापी हैं और हर बिन्दु के बाद लिखा है कि यह तो खबर में लिखा हुआ है। कहते थे और यह पहले भी होता था। विकास कुछ ज्यादा हुआ हो तो कह नहीं सकता। नामुमकिन मुमकिन जैसा कुछ नहीं है।
आज के अखबारों में भाजपाई राजनीति और रणनीति से जुड़ी एक और दिलचस्प खबर है, अरविन्द केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करने वाली अपील दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज की। पहले भी की थी और अब यह कुछ अलग होगा। पर खबर यही है इस मामले में निर्णय़ केजरीवाल पर ही छोड़ दिया गया है। आप समझ सकते हैं कि गिरफ्तारी का प्रावधान नहीं होने के बावजूद गिरफ्तार किये जाने के बाद अदालत में इस तरह की अपील और उसपर फैसले के क्या मायने हैं।
आइये, अब आज की कुछ प्रमुख खबरें और उनके शीर्षक देख लें
हिन्दुस्तान टाइम्स
1. दिल्ली हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री को बर्खास्त करने की अपील खारिज क
2.मोदी ने चुनाव अभियान में पूर्वी जोर की शुरुआत की
3. समय से पहले खरीद शुरू करने से गेहूं का स्टॉक बढ़ना तया
इंडियन एक्सप्रेस
1. पूछताछ के दौरान पुंछ के तीन व्यक्तियों की मौत, सेना यातना देने के मामले की जांच कर रही है
2. इस मुश्किल से बचे 10 लोगों में ज्यादातर तीन महीने बाद, अब भी सामान्य नहीं हैं, काम नहीं कर सकते
3. कक्षा 12 की नई राजनीति की किताब का अयोध्या खंड संशोधित किया गया, बाबरी मस्जिद के तीन संदर्भ हटाये गये।
द हिन्दू
1. जन्म पंजीकरण के लिए सरकार माता-पिता के धर्म दर्ज करेगी अभी सिर्फ परिवार का धर्म दर्ज किया जाता है।
2. 2022-24 में 55 कंपनियों ने 7.5 प्रतिशत की सीमा से ज्यादा इलेक्टोरल बांड दान दिया
3. दक्षिण में उपस्थिति बनाएंगे – गडकरी
4. श्रीलंका ने कहा, कच्चातिवु के हल हो चुके म्दा र ज्यादा वार्ता की जरूरत नहीं
टाइम्स ऑफ इंडिया
1. चुनाव भविष्य के लिए हैं, पर युवाओं की दिलचस्पी नहीं है? इस खबर के अनुसार 19-20 साल के 40 प्रतिशत से भी कम मतदाताओं ने मतदान के लिए अपना पंजीकरण कराया है।
2. एलजी ऑफिस ने केंद्र से कहा : आप सरकार झूठे मामले दर्ज करा रही है। एलजी की छवि खराब करने अदालतों को प्रभावित करने की कोशिश। सरकार ने कहा है, बाबू सुनते नहीं हैं, एलजी शांत हैं। कोर्ट अंतिम उपाय हैं। आप समझ सकते हैं कि दिल्ली में सरकार का क्या हाल है। एलजी खुद अदालत से प्राप्त राहत के कारण पद पर हैं तब। ऐसे में मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी कितनी जायज है यह मुद्दा फिर भी नहीं है।
3. संदेशखाली पर प्रधानमंत्री ने कहा – टीएमसी ने महिलाओं को निराश किया। इससे याद आता है कि भाजपा, दिल्ली पुलिस या ब्रजभूषण सिंह अथवा संपूर्ण संघ परिवार ने 10 साल में देश को निराश किया या नहीं। हालांकि वह अलग मुद्दा है।
द टेलीग्राफ
1. ‘घर में घुसकर मारता है’ से रोक नहीं पाये (फ्लैग) मोदी आतंकवाद के प्रयोग पर उतर ही आये (मुख्य शीर्षक)
2. “झेलो, टीएमसी : संदेशखाली की नैतिक जिम्मेदारी”।
किडनी रैकेट का खुलासा और उसकी खबर
अमर उजाला और नवोदय टाइम्स के शीर्षक की बात ऊपर हो चुकी है। यहां अमर उजाला में पहले पन्ने पर छपी एक खबर की चर्चा जरूरी है। किडनी रैकेट का खुलासा तीन बांग्लादेशी हिरासत में। उपशीर्षक है, गुरुग्राम : बांग्लादेश से रांची जयपुर तक जुड़े हैं तार। इस खबर से जो बातें स्पष्ट हैं या जो नहीं हैं वह यह कि मुद्दा किडनी खरीदने का है तो भारतीय कानून का उल्लंघन हुआ है। पर देने और लेने वाले अगर विदेशी हैं तो वे रिश्तेदार हैं कि नहीं इसकी पुष्टि के नाम पर जांच परेशान करना भी है और अतिथि देवो भवः के देश में वह ग्राहक भी है, देश को पैसे भी देता है मरीज तो है ही। वह विपक्ष का मुख्यमंत्री बिल्कुल नहीं है कि गिरफ्तार कर उसी के फोन में सबूत ढूंढ़ेंगे और प्रचार करेंगे कि पासवर्ड नहीं बता रहा है और उस कंपनी से तकनीकी सहयोग माना जाये जो अपने ग्राहकों को राज्य प्रायोजित हैकिंग से सतर्क कर चुका है।
कायदे से इस मामले में उनका बयान पर्याप्त होना चाहिये अगर कोई पूर्व शर्त या सूचना हो तो बात अलग है। अपराध और कानून का उल्लंघन हुआ है तो अस्पताल ने किया है और उसी की जिम्मेदारी है कि विदेशी ग्राहक देश के कानून का उल्लंघन नहीं कर पायें। भारतीय ग्राहकों के मामले में भी कानून का पालन करना अस्पताल की ही जिम्मेदारी है। दस्तावेजों पर यकीन न हो तो पुलिस को सूचना देकर ट्रांसप्लांट कर देने से बात नहीं बनेगी। पुलिस को सूचना देने के बाद हरी झंडी का इंतजार करना पड़ेगा और उसके बिना यह सुनिश्चित नहीं होगा कि किडनी खरीदा नहीं जा रहा है। इस खबर में अगर मरीज और किडनी देने वाला विदेशी है तो कानून लागू होता है या नहीं और लागू होता है तो उसका पालन अस्पताल की जिम्मेदारी थी। अस्पताल पर कार्रवाई किये बगैर मरीज की तलाश में छापा मारा और जु़ड़े तार का पता लगाना कानून की नजर में चाहे जितना जरूरी हो अतिथि का अपराध साबित हुए बगैर परेशान नहीं किया जाना चाहिये और उसके खिलाफ जांच का मतलब तभी है जब उसे (या सबको) पहले बताया गया हो कि खरीदना गैर कानूनी है दान देने वाले का रिश्तेदार होना जरूरी है। मुझे लगता है कि इस मामले में न सिर्फ पुलिस की कार्रवाई ठीक नहीं है बल्कि खबर भी ठीक से नहीं लिखी गई है। बांग्लादेश से डोनर और मरीज लाते थे शीर्षक से एक और खबर है। मुझे लगता है कि इसमें कुछ गलत नहीं है अगर वे रिश्तेदार हैं और अगर नहीं हैं तो भारत सरकार को बांग्लादेश सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कहना चाहिये या वीजा देने से पहले सोचना चाहिये। अवैध रूप से भारत आने वालों के खिलाफ दूसरी कार्रवाई की जाये वह ज्यादा जरूरी है। मेडिकल टूरिज्म से भारत को अच्छा पैसा मिलता है और सरकार की लापरवाही या गलतनीतियों के कारण यह व्यवसाय भी प्रभावित न होने लगे। वसूली करने वाली पार्टी के बारे में वैसे भी भरोसा करना मुश्किल है।