सरकार अग्निपथ योजना पर जवाब नहीं दे रही है लेकिन प्रधानमंत्री कांग्रेस के घोषणा पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप होने का अस्पष्ट आरोप दोहरा रहे हैं, अखबार फिर भी छाप रहे हैं
संजय कुमार सिंह
आज शुरुआत कुछ शीर्षक से करता हूं। 1. 370 हटने के दर्द में टुकड़े-टुकड़े गैंग की भाषा बोलने लगी कांग्रेस : मोदी (अमर उजाला की लीड का शीर्षक है।) 2. भ्रष्ट नेताओं को बचाना चाहती है टीएमसी : मोदी (नवोदय टाइम्स में लीड का शीर्षक है) अब द टेलीग्राफ का एक शीर्षक देखिये, मोदी आतंकवाद, राम नाम के बाद अब टुकड़े-टुकड़े पर आये (आगे के लिए इस जगह पर नजर रखें)। आज का चौथा शीर्षक द हिन्दू की एक खबर का है। हिन्दी में यह शीर्षक कुछ इस प्रकार होगा, भूपतिनगर में एनआईए अधिकारियों पर हमले को लेकर मोदी, ममता में तू-तू, मैं-मैं। द हिन्दू की खबर के साथ हाइलाइट किये हुए दो अंश इस प्रकार हैं – (1) तृणमूल (पार्टी) चाहती है कि भ्रष्ट नेता और लुटेरों को आतंक फैलाने का खुला लाइसेंस हो। यही कारण है कि केंद्रीय एजेंसियां यहां पहुंचती हैं तो उनपर हमला होता है – नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री (2) वे हमारे उम्मीदवारों और बूथ स्तर के नेता को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रहे हैं …. राम नवमी करीब है और अब अगर पटाखा भी फूट जाये तो जांच का काम एनआईए अपने हाथों में ले लेगा – ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल।
एनआईए की जांच पर याद आया कि बैंगलोर के मशहूर रामेश्वरम कैफ में विस्फोट की जांच एनआईए कर रही है। सीसीटीवी से विस्फोटक रखकर जाने वाले का सुराग मिला और उसे पकड़ा गया तो उसका मुस्लिम नाम बताया गया। आगे की जांच में एक भाजपा नेता का नाम आया तो एनआईए ने विज्ञप्ति जारी कर रहा कि अभियुक्तों से संबंधित जानकारी जांच में बाधा के साथ संबंधित व्यक्ति की सुरक्षा के लिए भी जोखिम हो सकता है। आप जानते हैं कि पुलिस हिरासत में अभियुक्तों की पिटाई ही नहीं हत्या भी आम है और डबल इंजन वाले उत्तर प्रदेश में तो घटनाएं वैसे ही घटी हैं जैसे पहले बताई जा चुकी थी। मैंने पहले लिखा है कि हिन्दी के अखबारों ने बंगाल के संदेशखाली की खबर को प्रधानमंत्री की जमुई की सभा से ज्यादा महत्व दिया था। आप जानते हैं कि अखबार ऐसा नरेन्द्र मोदी, भाजपा और संघ परिवार के प्रचार में करते हैं। हिन्दी के इन अखबारों के ऐसे शीर्षक में आपको नरेन्द्र मोदी की महानता लग सकती है। सच यह है कि प्रधानमंत्री के ऐसे दावों, अनैतिक आरोपों और झूठ से लोगों के लिए सच समझना, बताना सब मुश्किल हुआ है। दबाव में अखबार अगर जवाब छापने भी लगें तो उसके लिए पहले संबंधित लोगों को जवाब देना होगा जबकि उन्हीं संसाधनों से ढंग के दूसरे काम किये जा सकते हैं।
ठीक है कि चुनाव प्रचार में उन्होंने ये आरोप लगाये हैं और जरूरी नहीं है कि जुमले सच ही हों। स्विस बैंक में रखे काले धन को लेकर 2014 में हुए धोखे के बाद आपके लिए यह सामान्य हो सकता है। लेकिन आप देख चुके हैं कि सभी चोरों के नाम मोदी क्यों होते हैं – कहने या पूछने के लिये राहुल गांधी की संसद की सदस्यता जा चुकी है। मित्र से उपहार लेने (और पासवर्ड साझा करने के लिए भी) महुआ मोइत्रा की सदस्यता जा चुकी है। ईडी सीबीआई की जांच चल रही है दिल्ली के कथित एक्साइज घोटाले में इलेक्टोरल बांड से पैसे किसी पार्टी को गये हैं और रिश्वत लेने की जांच सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं की हो रही है। और तो और पहली बार देश का कोई मुख्यमंत्री जेल में बंद है वह भी चुनाव के समय पर ना सुप्रीम कोर्ट और ना चुनाव आयोग ने इसमें किसी कार्रवाई की जरूरत समझी है। मुख्यमंत्री को जेल में रखकर उसके खिलाफ सबूत ढूंढ़े जा रहे हैं और जिसके खिलाफ सबूत है वह जांच करवा रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का प्रचार कर रहा है। क्या-क्या कर चुके होने के बाद भी भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई और कैसे कैसों को भाजपा में शामिल करने के बाद जांच बंद हो गई या ठंडे बस्ते में पड़ी है उसकी सूची इतनी बड़ी है कि अभी चर्चा करना ही बेकार है। दूसरी ओर निर्वाचित विधायक, पूर्व मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री महीनों से जेल में हैं और कपड़ों से पहचानने वाले के तरीके से आग लगाने वाले नहीं हैं।
अव्वल तो ऐसा होना नहीं चाहिये और हो तो अखबारों को बताना चाहिये। अभियान चलाना चाहिये पर प्रधानमंत्री कह रहे हैं और अखबार छाप रहे हैं (हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का शीर्षक था) मैं मिशन पर हूं, विपक्ष कमीशन के पीछे :मोदी। यह इलेक्टोरल बांड से कई हजार करोड़ की वसूली और लोकतंत्र का यह हाल किये जाने के बाद है कि इससे संबंधित कांग्रेस का विज्ञापन अखबारों ने नहीं छापा। अखबारों से कम से कम यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिये कि एकतरफा खबरें नहीं देंगे। पर आप देख रहे हैं कि 2014 के बाद से देश में मीडिया की क्या हालत है। और तो और केंद्र सरकार द्वारा एफडीआई नियमों में बदलाव के बाद बीबीसी इंडिया ने अपना कामकाज नई कंपनी को सौंप दिया है। असल में गुजरात पर फिल्म के बाद केंद्रीय एजेंसियों ने बीबीसी के खिलाफ कार्रवाई की थी और यह उसी आलोक में किया गया लगता है। बीबीसी के चार पूर्व कर्मचारियों ने कलेक्टिव न्यूज़रूम स्थापित किया है। यह 10 अप्रैल से काम शुरू करेगा। यह पूरी तरह से भारतीय आधार वाली कंपनी है, जो बीबीसी की डिजिटल सेवाओं के लिए अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, मराठी, पंजाबी, तमिल और तेलुगु में कंटेंट तैयार करेगी। बीबीसी ने इसमें शेयर खरीदने की अनुमति मांगी है। बीबीसी के लिए यह दुनिया में पहला है।
आज भी मोदी ने जो कहा है उसका जवाब ममता बनर्जी ने दिया है। इन दिनों अमूमन नरेन्द्र मोदी ही छाये रहते हैं जवाब या तो होता ही नहीं है या छोटा सा होता है। आज टेलीग्राफ में दोनों खबरों के शीर्षक से आप समझ जायेंगे कि आपको एकतरफा खबरें दी जा रही हैं और उसमें भी कई बार गलत व झूठी खबरें होती हैं। ऊपर आप देख चुके हैं कि आज अमर उजाला की लीड का सही (या आवश्यक) संदर्भ द टेलीग्राफ में है। नवोदय टाइम्स में मोदी के आरोप का जवाब भी द टेलीग्राफ में है। उधर मोदी जी अपनी गाये जा रहे हैं। वे कांग्रेस के घोषणा पत्र की आलोचना तो कर रहे हैं पर यह नहीं बता रहे हैं कि भाजपा का घोषणा पत्र क्या है या कब आयेगा। द टेलीग्राफ में आज टीएमसी पर मोदी के आरोप पर ममता बनर्जी का जवाब लीड है। टीएमसी ने भाजपा और सरकारी एजेंसी एनआईए के बीच साठ-गांठ का आरोप लगाया है। यही नहीं, पार्टी ने गुप्त बैठकों और रिश्वत खोरी का भी आरोप लगाया है। एक खबर बताती है कि एनआईए अधिकारियों पर उत्पीड़न का मामला भी है। इसी तरह, टुकड़े-टुकड़े गैंग की भाषा बोलने के जवाब में द टेलीग्राफ का शीर्षक है, मोदी आतंकवाद के बाद, राम नाम और अब टुकड़े-टुकड़े पर आ गये। आगे के लिए इस स्थान को देखते रहें। लिखने का मतलब यही है कि उन्होंने रास्ता चुन लिया है और अखबार बताता रहेगा।
द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने की अपनी तीसरी खबर से बताया है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र पर मोदी की टिप्पणी का जवाब दिया है। कांग्रेस जवाब की इस खबर पर आने से पहले बताऊं कि कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र समय पर पेश कर दिया है और इतना बढ़िया है कि अमूमन कांग्रेस की खबरें नहीं छापने वाले अखबारों ने भी इसे लीड बनाया था। अमर उजाला अपवाद है लेकिन मोदी ने घोषणा पत्र पर टिप्पणी की तो कल उसे लीड बना दिया था। यही नहीं, आज नवोदय टाइम्स ने उसे (उसी शीर्षक को) तीन कॉलम में तान दिया है। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में अग्निपथ योजना खत्म करने की बात की है और बताया है कि जिस युवा को राइफल के साथ सीमा पर होना चाहिये था वह हैदराबाद के एक होटल में वेटर है। कांग्रेस के पूर्व सैनिक विभाग के प्रमुख कर्नल रोहित चौधरी ने युवक रंजीत की कहानी लिखी है और उसका फोटो भी एक्स पर साझा किया है। लेकिन भाजपा इसपर बोलने, इसका जवाब देने की बजाय घोषणा पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप होने का अस्पष्ट आरोप लगाया है। कांग्रेस के एतराज के बाद नरेन्द्र मोदी को अपना आरोप दोहराना नहीं चाहिये और दोहरा रहे हैं तो अखबारों को तवज्जो नहीं देना चाहिये पर अखबार वह सब कर रहे हैं जो नहीं करना चाहिये और जो करना चाहिये वह नहीं कर रहे हैं।
अमर उजाला में लीड का उपशीर्षक है, बोले – कश्मीर मां भारती का मस्तक, चार जून के बाद भ्रष्टाचारियों के खिलाफ और तेज होगी कार्रवाई। कहने की जरूरत नहीं है कि नरेन्द्र मोदी यह मानकर चल रहे हैं कि चार जून के बाद वही रहेंगे और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई (जो और जैसी चल रही है) तेज करेंगे। पर मुद्दा यह है कि ईवीएम के मामले में सरकार या चुनाव आयोग ने कुछ किया नहीं, मामला सुप्रीम कोर्ट में है और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति मोदी ने अपनी पसंद से की है और चुनाव आयोग का हाल सबको पता है उसमें उनकी जीत का यह दावा चुनाव की निष्पक्षता को संदिग्ध बनाता है और उम्मीदवार तो दावा कर ही सकता है क्या अखबारों को उसे छापना चाहिये? क्या इससे चुनाव परिणामों पर असर नहीं पड़ेगा। मतदाता चुनाव परिणाम को लेकर हताश-निराश नहीं होंगे, वोट देने का उनका उत्साह कम नहीं होगा? इसके अलावा, मोदी जी तो हमेशा जीतने का दावा करते रहे हैं क्या हर बार जीत जाते हैं? कभी किसी अखबार ने चुनाव नतीजे के बाद पहले के दावों के संबंध में कभी कुछ पूछा है? वैसे आप कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने कहा है तो छापने में क्या नुकसान है। अब वे सेवक थोड़े हैं।
महाराष्ट्र में बाबुओं को संरक्षण
मुझे लगता है कि दोनों तरफ की खबर छप रही हों और उसमें 19-20 हो तो कोई नुकसान नहीं है लेकिन सरकार के खिलाफ खबरें छपे ही नहीं और सिर्फ उसका प्रचार छपे तो गड़बड़ है। आज ही जब यह छपा है कि चार जून के बाद भ्रष्टाचारियों (जो मोदी की नजर में हैं) के खिलाफ कार्रवाई तेज होगी तो इंडियन एक्सप्रेस ने छापा है कि महाराष्ट्र में पिछले छह वर्षों में भ्रष्टाचार विरोधी इकाई ने जिन मामलों की जांच के लिए अनुमति मांगी उनमें से दो तिहाई लंबित हैं। यह भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम में केंद्र सरकार द्वारा 2018 में किये गये एक प्रमुख संशोधन के कारण है। खबर के अनुसार वित्तीय अनियमितता के मामलों की जांच के लिए 547 आवेदन दिये गये हैं और सिर्फ 51 में अनुमति मिली है। अधिकारियों के खिलाफ जांच नहीं हो रही है और मुख्यमंत्री जेल में हैं। अधिकारियों को सेवा विस्तार देने का बेशर्म रिकार्ड आप जानते हैं और फिर यह दावा इसीलिए किया जाता है कि वे प्रेस कांफ्रेंस करते नहीं है, अखबार उनके दावे छाप देते हैं और इस तरह के तथ्य नहीं के बराबर प्रचारित-प्रसारित होते हैं। इसके लिए पैसे चाहिये – विपक्षी दलों के बैंक खाते फ्रीज हैं और आम आदमी पार्टी पर यह आरोप लगा दिया गया है कि उसने रिश्वत के पैसे लेकर चुनाव में खर्च कर दिये। चार जून के बाद जब कार्रवाई तेज होगी तो संभव है कर्ज को भी रिश्वत मान लिया जाये या कर्ज देने की उदारता को ही भ्रष्टाचार से जोड़ दिया जाये।
प्याज निर्यात से कमाई
इन खबरों के बीच आज द हिन्दू में प्याज के निर्यात में घोटाले की शंका बताने वाली एक महत्वपूर्ण खबर छपी है। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार को प्रचारक अखबारों पर पूरा भरोसा है और वह जानती है कि उसकी छवि खराब करने वाली खबरें आम जनता तक पहुंचेगी ही नहीं इसलिए वह कमाने और कमवाने का मौका अंतिम समय में भी नहीं छोड़ रही है। विपक्षी दलों के खाते बंद करके उसने इसकी पुख्ता व्यवस्था की है। खबर के अनुसार प्याज के निर्यात पर रोक बढ़ाये जाने के बीच में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे कुछ देशों को बहुत मामूली कीमत पर प्याज भेचने की इजाजत दी गई है। दुनिया भर में जब प्याज की कीमत बढ़ी हुई है तो इस छूट का लाभ चुने हुए निर्यातकों को होगा। खबर के अनुसार 12-15 रुपये किलो के भाव प्याज खरीद कर 120 रुपए किलो बेचा जा रहा है।