स्वामी जी का संदेश आया। हम अगले ही दिन चल दिये। संगम में दो रातें इनकी कुटिया में बिताई थी। वहाँ से लौटकर एक पोस्ट लिखा था यहाँ। वे बोले थे गोवर्धन आना यशवंत। श्रीपीठ आश्रम में कल उनके साथ रात दिन रहे। परिक्रमा मार्ग पर राधा कुंड के पास है ये आश्रम। ये जो रंग एकादशी रंग पंचमी टाइप कुछ होता है, इसी दरमियान स्वामी जी यहाँ रहते हैं और लोगों के आने जाने मिलने जुलने वालों का ताँता लगा रहता है।
स्वामी ज्ञानानंद परमहंस ज़्यादा वक्त विंध्याचल रहते हैं। वहीं मुख्य आश्रम और प्रधान मंदिर है। मऊ के एक ब्राह्मण परिवार के स्वामी जी बचपन में ही घरबार छोड़कर साधु बन गये थे। वेद शास्त्र बहुत पढ़े लिखे हैं। देश के इस से उस कोने तक पैदल यात्रा की। इनकी सिद्धि ये है कि इतना सरल इतना सज्जन संत मैंने आजतक नहीं देखा। मथुरा वृंदावन के पत्रकारों को पता है कि इनके शिष्यों में आज कुछ लोग देश के सबसे ताकतवर लोगों में हैं। मैं नाम नहीं लिखूँगा क्योंकि बहुत से लोग ताकतवर शिष्यों के नाम जानकार चौंक जाएँगे। पर इसका तनिक एहसास स्वामी जी से मुलाक़ात के दौरान नहीं होता कि ये वही हैं जिनको फॉलो बड़े बड़े लोग करते हैं। वे ब्रांडिंग और पोस्टरबाज़ी से दूर रहने वाले संत हैं।
इनकी जवानी के दिनों की लिखी एक किताब दिखी। आगे पीछे के पेज का फोटो खींच लिया। इनके एक शिष्य कल थाईलैण्ड से आये हुए थे। माइनिंग का कारोबार है। ये भी मऊ के मूल निवासी हैं। ठाकुर साहब हैं। इनके साथ हम तीन मिलकर रात बारह बजे तक घूमे परिक्रमा मार्ग पर। ई रिक्शा ने परिक्रमा आसान कर दी है। पर सरकारों और अफ़सरों ने परिक्रमा मार्ग की दुर्गति कर रखी है। गंदगी, अंधेरा, कुत्ते, साँड़-गायें…! जाने कब परिक्रमा मार्ग के दिन फिरेंगे।
स्वामी जी ने कहा यशवंत जब मैं गोवर्धन आऊँ तो तुम भी चले आया करो।
जी स्वामी जी। मैंने ये भी कहा- विंध्याचल वाले आपके आश्रम कभी नहीं गया हूँ। वहाँ आऊँगा।
वे चहक कर बोले- आना। वहाँ की गैया देखना। साक्षात देव तुल्य नज़र आयेंगी। ये गैया यहाँ गोवर्धन वाली हों या विंध्याचल वाली, बिलकुल नहीं बोलतीं। एक बार भी उनकी आवाज़ सुनाई न पड़ी होगी। वे मुझसे दूर रहकर भी बात करती हैं। मुझसे कह देती हैं वे कि उन्हें क्या दिक़्क़त है या उन्हें क्या चाहिए।
स्वामी ज्ञानानंद का गाय प्रेम सच में अदभुत हैं। उनके लिए ये गायें ईश्वर से कनेक्ट होने का माध्यम हैं। वे गौशाला चल दिये मुझे लेकर। सबसे मिल जुलकर लौटे। मैंने भी सब पर हाथ फेरा।
स्वामी जी के साथ कल की मुलाक़ात के कुछ फुटकर वीडियो को कम्पाइल कर ऑनलाइन अपलोड कर दिया हूँ। न मिले तो मुझसे इनबॉक्स में माँग लीजिएगा। आप भी देखिये। दिव्य और रहस्यमय अनुभूति मेरी बढ़ती जा रही है।
जब जीवन को सहज धारा की तरह प्रवाहित होने के लिए छोड़ दिया हूँ तो देखता हूँ कि जो कुछ घटित हो रहा है, उसमें अपन को आनंद आ रहा है।
मेरी इच्छाएँ विराट में विलोपित हो चुकी हैं। जो कुछ सूक्ष्म खेल विराट दिखावे, उसमें हम विराट के पदचिन्ह पा जाते हैं और आनंदित हो जाते हैं।