राजस्थान के एक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा रेप पीड़िता को कपड़े उतारकर चोटें दिखाने का मामला तूल पकड़ रहा है. हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ 27 मई तक फोर्सली कार्रवाई पर रोक लगा दी है. साथ ही हाईकोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के भी मामले को सनसनीखेज न बनाने के निर्देश दिए है.
जस्टिस अनिल कुमार उपमन की पीठ ने राजस्थान न्यायिक सेवा अधिकारी संघ द्वारा दायर याचिका पर मजिस्ट्रेट की कार्रवाई रोकने का यह आदेश पारित किया.
इसके अलावा न्यायालय ने राज्य सरकार, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव, राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी, एसपी करौली और पीड़िता को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 27 मई को होनी है.
मामले में याचिका देने वाली एसोसिएशन के वकील दीपक चौहान ने हाईकोर्ट का ध्यान घटना से संबंधित समाचार पत्रों में पब्लिश लेखों पर दिलाया. चौहान ने कहा कि इस मुद्दे को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ प्रिंट मीडिया में भी बेहद सनसनीखेज तरीके से कवर किया जा रहा है, जिससे आमजन की नजर में न्यायपालिका की छवि खराब हो रही है.
इसके बाद न्यायालय ने कहा कि, “इस तरह के लेखों की विषयवस्तु और तथ्य से आंखें नहीं मूंद सकते. कथित घटना की रिपोर्टिंग देशभर की मीडिया में हो रही है और न्यायपालिका की छवि दांव पर लगी है.
मामले में जांच चल रही है और अभी कई कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाना बाकी है, इसलिए प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता पर कोई टिप्पणी किए बिना न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा है कि मीडिया में इस मामले की कवरेज पर उचित अंकुश लगाया जाना चाहिए.”
आगे न्यायालय ने मामला लंबित रहने तक मीडिया को निर्देश दिया कि, इसका कवरेज सनसनीखेज तरीके से न किया जाए..क्योंकि इससे लोगों के बीच न्यायपालिका की छवि बदनाम हो रही है.
क्या है पूरा मामला?
पिछले महीने की 30 मार्च को एक कथित रेप पीड़िता ने शिकायत दर्ज कराई कि संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उसके शरीर के घाव देखने के लिए..कपड़े उतारने को कहा था. पीड़िता ने कपड़े उतारने से इनकार किया और न्यायालय में बयान दर्ज कराने के बाद, पीड़िता ने उक्त मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत कर दी. शिकायत के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 (ए) और 354 (बी) के अलावा एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(डब्ल्यू), 3(2)(वीए) तथा 3(2)(सप्तम) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.