लखनऊ के रहने वाले दुर्गेश गुप्ता ने फर्स्ट क्राई विनायक इंटरप्राइजेज से 20 अक्टूबर 2021 को 400 रूपये का कुछ सामान खरीदा था. दुर्गेश को सामान के साथ कैरी बैग के लिए भी 17 रूपये अलग से देने पड़े. जिसपर कंपनी का नाम और लोगो छपा था. मतलब कंपनी अपने नाम का प्रचार कस्टुमर के खर्चे पर कर रही है.
इस मसले को लेकर दुर्गेश ने एक परिवाद संख्या- 1724.2023, उपभोक्ता फोरम में दाखिल कर दिया.
इस अपील की सुनवाई राज्य आयोग के न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष एवं श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा की गयी. न्यायमूर्ति अध्यक्ष महोदय द्वारा इस मामले में आदेश पारित करते हुए विपक्षी को आदेश दिया गया कि वह हर्जाना के रूप में 02.00 लाख रू अपीलार्थी/परिवादी को अदा करे और क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/- रू अदा करे.
लेकिन मामले में राज्य आयोग की पीठ के सह सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह ने न्यायमूर्ति अध्यक्ष महोदय के उपरोक्त निर्णय से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए अपना अलग निर्णय दिया और उनके द्वारा हर्जाना के रूप में धनराशि को बढ़ाकर 03.00 लाख रू किया गया और वाद व्यय के लिए 20,000/- रू दिये जाने का आदेश दिया. चूँकि पीठ के दोनों सदस्यों के बीच मतभेद हो गया और ऐसी स्थिति में नियमानुसार यह मामला तीसरे सदस्य को भेजा जायेगा, जो यह तय करेंगे कि उक्त आदेशों में से कौनसा उपयुक्त है.
सह सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह ने यह पाया कि बड़ी-बड़ी कम्पनीयॉं जो अपने उत्पाद के प्रचार के लिए लाखों-करोड़ों रूपये खर्च करती हैं वे उपभोक्ताओं के माध्यम से अपने उत्पाद का प्रचार करती हैं और बदले में कोई भी धनराशि प्रदान नहीं की जाती है. कैरी बैग पर कम्पनी का नाम और लोगो छपा होना प्रचार सामग्री की श्रेणी में आता है. इसी कारण विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिये गये निर्णय के अनुतोष को बढ़ाया गया. पढ़ें आदेश…