मनीष सिंह-
तेरा पीएम नही हूँ मैं..
ईवीएम के साथ एक नई, और अलग समस्या पैदा हुई है। जिस पर किसी का ध्यान नही जाता। हाल में ईवीएम पर एक पोस्ट लिखी, जिसे मयूर जानी ने 4PM चैनल पर पढा। अच्छा लगा, क्योकि यह मेरा पसंदीदा चैनल है। इतना कि हाल में उनके चैनल को 1100 का चन्दा दिया था। ताकि जर्नलिज्म मेरी मेहनत, मेरे पसीने पर पले।
यूँ तो बाकी चैनल भी मेरे, आपके पसीने पर पलते हैं, लेकिन वो पैसा सरकार लूटकर, उन चैनल्स को देती है, जिनकी आवाज घर मे गूंजने देना, अशुभ है। सीधे अपने पसन्द को चैनल की मदद करना, सस्ता है। और सच्ची खबरें भी मिल जाती हैं।
बहरहाल, उस पोस्ट में ईवीएम के सम्बंध में एक जरुरी तत्व छूट गया था। मयूर जानी, और आपको बताना चाहता हूँ कि जब मतपत्र से चुनाव होते थे, तो हर बूथ से बैलट बॉक्स आता था। काउंटिंग के वक्त, सारे डब्बे खोले जाते। मतपत्र एक जगह गिरा दिये जाते। फिर कर्मचारी उन्हें मिक्स करके, 50-50 के बंडल बनाते। काउंटिंग के आधे दिन यही काम चलता था। पूरे लोकसभा या विधानसभा के जब सारे डब्बे खोल, मिक्स बंडल बन जाते, तो काउंटिंग टेबल भेजा जाता। वहां पार्टियों के एजेंटों के सामने, कैंडिडेटवार गिना जाता।
हर वोट नंगी आंखों से चेक होता। काउंटिंग शीट में एंट्री होती, टोटल होता। यह धीमी प्रक्रिया थी। एक एक राउंड दो- तीन घण्टे चलता। परिणाम, रूझान शाम तक, या अगले दिन आते। ईवीएम ने नतीजे तेज कर दिये। मशीन उठाओ, बटन दबाओ। मशीन पहले टोटल वोट बताएगी। फिर कैंडिडेटवार बताएगी।
एक एक बूथ का अलग बताएगी। आखिर आप मतपत्र मिक्स कर सकते हैं, मशीन नही। तो इसमे एक नई चीज हुई। वह बूथ, वह मोहल्ला, वह गांव, वह बस्ती.. वहां भाजपा के कितने वोट हुए, कांग्रेस के कितने एकदम साफ है। हर पार्टी, हर कैंडिडेट जानता है कि उसे कहां समर्थन मिला, कहां मार पड़ी। एक एक बूथ का पक्का हिसाब। बूथ, याने मोहल्ला, या गांव। अब आपको पता है कि कौन सा इलाका, आपको वोट करता है। वहां जनसँख्या के जाति, धर्म के विश्लेषण से आप जान जाएंगे कि कौन सी कम्युनिटी आपको वोट करती है।
कौन सी नही करती है, यह भी साफ साफ पता चलेगा। ये डेटा, 2 काम करता है। पहला, तो चुनावी रणनीति बनाने में हेल्प करता है। याने मशीनों के आने से, चुनाव बड़ा ही उच्च कोटि का वैज्ञानिक कर्म बन गया है। इससे डाटा वाले बाबू लोगो की चांदी हो गयी। प्रशांत किशोर और सुनील क़ानूगोलू जैसे सैकड़ों लोग, अरबो कूट लिए। उनकी लक्ष्मी, दरअसल ईवीएम की कृपा है। पर ठीक है। लेकिन दूसरा असर, जनता के लिए भयंकर समस्या पैदा करता है।
नेता दो तरह के होते है-
1- फलां क्षेत्र से वोट नही मिलता, उधर ज्यादा काम करना है।
2- अथवा, फलां गांव वाले विरोधी हैं, उधर काम ही क्यों करना।
और दुर्भाग्य से, भारतवर्ष में दूसरे किस्म के कुंठित नेता ज्यादा है। नतीजा, जिधर से वोट नही मिलता, उधर विकास के काम नही होते। सड़क, बिजली पानी का रोना लेकर जाईये। नेता कड़क कर बोलेगा – मुझे वोट दिया था क्या? नहीं न, तो भाड़ में जाओ।
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में आप 35-40% लोगो के समर्थन से हड्डी तोड़ बहुमत पा जाते हैं। तो हमारा नेता, 62% बूथ को इग्नोर कर सकता है। उसे सामूहिक सजा दे सकता है। उसे थाने, तहसील में न्याय से महरूम कर सकता है। नाली, बिजली, सड़क, पानी रोक त्रस्त कर सकता है। लेकिन यह भी तो सोचिये, कि किसी प्रायोजित दंगे में, किसी इलाके में एक्टिविटी ज्यादा, किसी मे कम क्यो होती है।
दंगाई भला अपना टारगेट के इलाके कैसे तय करते है? मत का प्रकटन, चुनाव संहिता का उल्लंघन है। मशीन, अपने रिजल्ट से, इलाकावार वोटिंग बिहेवियर को प्रकट करती है। संसूचित करती है, जिंदगियां खतरे में डालती है। जनप्रतिनिधियों को अवसर देती है कि वे चयनित इलाके साध लें। दूसरे इलाके, दूसरी कौम, दूसरी जाति, भाड़ में जाये। उन्हें टिकट नही देंगे, प्रतिनिधित्व नही देंगे, अवसर नही देंगे। उनकी सत्ता जिस खास इलाके से बनती है, बस उसके हित, उसकी धौंस, उसके लाभ के बेजा काम करेंगे।
ईवीएम प्रभावशाली लोगों को अनाधिकृत अवसर देती है कि वे अपने सुनिश्चित वोटरों के ही प्रतिनिधि बनें। तो उन्ही के नेता, उनके विधायक, मंत्री, सीएम और पीएम बनकर रहें। बूथ लेवल से यह पार्शियलिटी शुरू होकर शीर्ष तक जाती है। समाज के विभाजित होने का एक यह कारण भी है। नेता, विधायक, सीएम पीएम अब अपने हर मतदाता, प्रत्येक प्रदेशवासी, प्रत्येक देशवासी का खैरख्वाह नही है।
सबका अभिभावक, गार्जियन नही। वो ईवीएम की मदद से आपका इलाका पहचानता है। वह पूरी बेशर्मी से आपको कपड़ो से भी पहचानता है। इसलिए हमेशा जता देता है- आई एम नॉट योर पीएम..