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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के एक पत्रकार ने सीएम शिवराज को भरपूर तेल लगाने वाला लेख लिखा

मध्य प्रदेश के मनोज कुमार नामक एक पत्रकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भरपूर तेल लगाते हुए आलेख लिखा है. यह आलेख यहां इसलिए प्रकाशित किया जा रहा है ताकि पता चल सके कि कोई पत्रकार अपनी कलम को कितना पतित कर सकता है. पत्रकारिता का धर्म सत्ता की नीतियों में बुराई खोजना है. सत्ता में जाने वाले लोगों को अच्छा काम करने के लिए ही बहुमत जनता देती है. मीडिया को ये अधिकार दिया जाता है कि वह तलाश करे कि किन किन क्षेत्रों में खराब काम हो रहा है या नीतियों में कहां कहां गड़बड़ी है.

<p>मध्य प्रदेश के मनोज कुमार नामक एक पत्रकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भरपूर तेल लगाते हुए आलेख लिखा है. यह आलेख यहां इसलिए प्रकाशित किया जा रहा है ताकि पता चल सके कि कोई पत्रकार अपनी कलम को कितना पतित कर सकता है. पत्रकारिता का धर्म सत्ता की नीतियों में बुराई खोजना है. सत्ता में जाने वाले लोगों को अच्छा काम करने के लिए ही बहुमत जनता देती है. मीडिया को ये अधिकार दिया जाता है कि वह तलाश करे कि किन किन क्षेत्रों में खराब काम हो रहा है या नीतियों में कहां कहां गड़बड़ी है.</p>

मध्य प्रदेश के मनोज कुमार नामक एक पत्रकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भरपूर तेल लगाते हुए आलेख लिखा है. यह आलेख यहां इसलिए प्रकाशित किया जा रहा है ताकि पता चल सके कि कोई पत्रकार अपनी कलम को कितना पतित कर सकता है. पत्रकारिता का धर्म सत्ता की नीतियों में बुराई खोजना है. सत्ता में जाने वाले लोगों को अच्छा काम करने के लिए ही बहुमत जनता देती है. मीडिया को ये अधिकार दिया जाता है कि वह तलाश करे कि किन किन क्षेत्रों में खराब काम हो रहा है या नीतियों में कहां कहां गड़बड़ी है.

पर इसके उलट जब पत्रकार रुपये के चंद टुकड़ों के लिए सत्ता शासन की तारीफें लिखने लगें तो समझ जाइए कि मीडिया का आखिरी पतन हो चुका है. इस मनोज कुमार नामक पत्रकार पर लानत है. अगर इन्हें तारीफ ही लिखना था तो दोनों पक्ष लिखते, क्या कमियां रहीं और क्या अच्छाइयां रहीं. व्यापमं जैसे महाखूनी घोटाले के जनक शवराज उर्फ शिवराज की इस किस्म की चापलूसी करना पत्रकार बिरादरी की नाक कटाना है. पढ़िए इस चमचे किस्म के पत्रकार का लिखा लेख, जो खुद को वरिष्ठ पत्रकार बताता फिरता है. भोपाल में बड़ी संख्या में ऐसे पत्रकार हैं जो सरकारी रुपयों के टुकड़ों की खातिर सरकार के विरोध में कलम चलाना भूल चुके हैं. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

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शिवराज सिंह सरकार के दमदार दस वर्ष

मनोज कुमार

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शिवराजसिंह की ख्याति देश के लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में है, यह बात सर्वविदित है लेकिन शिवराजसिंह चौहान की लोकप्रियता क्यों है, इस पर विचार करना जरूरी होता है। उनके पक्ष में सबसे पहले तो यह बात जाती है कि उन्होंने मध्यप्रदेश को स्थायी सरकार और निर्विवाद नेतृत्व दिया, इस पर कोई दो मत नहीं है। किसी भी प्रदेश के विकास के लिए यह जरूरी होता है कि सरकारें स्थायी हों। हालांकि मध्यप्रदेश में गैर-कांग्रेसी सरकारों का अनुभव आयाराम-गयाराम था और 2003 में भाजपा की सरकार बनने के बाद भी यही आलम था लेकिन दो वर्ष बाद जब शिवराजसिंह की ताजपोशी हुई तो शिवराज सरकार ने स्थायित्व दिया। शिवराजसिंह चौहान किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से नहीं है लिहाजा उनकी कार्यशैली आरंभ से ही आम आदमी को जोडऩे वाली रही है। उन्होंने दस का दम दिखाते हुए जिन पांच योजनाओं को व्यवहारिक रूप में प्रदेश में क्रियान्वित किया, उससे न केवल मध्यप्रदेश के नागरिकों को लाभ मिला। अपितु देश के अनेक राज्य मध्यप्रदेश के अनुगामी बने। इस तरह के अवसर बिरले ही होते हैं जब कोई अन्य राज्य, दूसरे राज्यों की एक नहीं बल्कि एकाधिक योजनाओं को अपने राज्यों में लागू करें। मध्यप्रदेश के लिए यह गौरव की बात है कि शिवराज सरकार द्वारा आरंभ की गई योजना को स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल तारीफ की बल्कि उसे विस्तार देते हुए केन्द्र की योजना में शामिल किया।

शिवराज सरकार की जिन पांच योजनाओं की हम चर्चा करने जा रहे हैं उनमें सबसे पहले हम उस योजना पर बात करेंगे जिसे केन्द्र सरकार ने भी स्वीकार किया है। समूची दुनिया में लिंगानुपात बिगड़ रहा है। भारत के कई राज्य जिसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है, उसमें लिंगानुुपात की बिगड़ती स्थिति चिंताजनक है। इस चिंता से दो-चार होते हुए शिवराजसिंह चौहान ने बेटी बचाओ योजना का श्रीगणेश किया। भ्रूण हत्या को रोकने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने की मंशा के साथ यह योजना मध्यप्रदेश में प्रभावी ढंग से कार्य कर रही है। निजी अस्पतालों में गैर-कानूनी ढंग से भू्रण गिराने की अमानवीय कार्यवाही पर सरकार की पैनी नजर होने के कारण इन अपराधों में गिरावट आयी है। बेटों की मानसिकता पाले परिजनों को भी यह संदेश दिया गया है कि बेटा-बेटी एक समान, न करो इनका अपमान। हालांकि रूढि़वादी लोगों का मन बदलना आसान नहीं है लेकिन शिवराजसिंह सरकार की कोशिशों का परिणाम रहा कि पहले तो स्थिति सुधरी। शिवराजसिंह सरकार की इस योजना ने देश के कई राज्यों के साथ केन्द्र सरकार को भी भा गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेटी बचाओ अभियान को बेटी पढ़ाओ जोडक़र विस्तार दे दिया है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री की इस पहल से शिवराजसिंह सरकार को उसकी योजना का माइलेज मिला है।

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शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश में बेटियों एवं महिलाओं को सुरक्षित करने तथा उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में पहल की शुरुआत कर दी थी। इस कड़ी में उन्होंने लाडली लक्ष्मी योजना का आरंभ किया था। योजना के आरंभ में 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद बिटिया को एक लाख रुपये की राशि प्रदान करने की आश्वस्ति थी। बाद में इस योजना में सुधार कर सहज और व्यापक बनाया गया। इस योजना का लाभ लेने वालों के लिए एकमात्र शर्त थी कि हितग्राही इकलौती बिटिया के माता-पिता हों। इस योजना से ग्रामीण स्तरों पर बिटिया को बोझ मानने वाले परिवारों की सोच बदली और बिटिया की शिक्षा के प्रति उनका रूझान बदला।

शिवराजसिंह चौहान एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं अत: वे जानते हैं कि एक मुख्यमंत्री इन परिवारों  की पहुंच से कितना दूर होते हैं, तिस पर मुख्यमंत्री निवास तो जैसे आम आदमी के लिए कोई स्वप्नलोक से कम नहीं होता है। इस स्वप्नलोक के दरवाजे खोलने का निश्चिय किया और मुख्यमंत्री पंचायत के नाम से आरंभ की गई योजना ने शिवराजसिंह के बारे में यह धारणा पुख्ता कर दी कि वे सचमुच में आम आदमी के मुख्यमंत्री है। विविध वर्गों के लिए वे लगातार पंचायत करते रहे। सबके लिए मुख्यमंत्री निवास का दरवाजा खोल दिया। गांव के कोटवार से लेकर किसान और युवा वर्ग से लेकर महिला पंचायत कर उन्होंने संदेश दिया कि हर वर्ग के लिए शिवराजसिंह चौहान के दरवाजे खुले हैं। पहले पहल तो इन पंचायतों का विरोधियों ने माखौल उड़ाया लेकिन पंचायत के फैसले लागू होने के बाद और आम आदमी में सकरात्मक संदेश देने के बाद सब खामोश हो गए।

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मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान महिला एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास के पक्षधर हैं और यही कारण है कि वे महिलाओं को हमेशा से सशक्त बनाने की दिशा में सक्रिय रहे हैं। उनका मानना है कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक है कि सत्ता में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाए। बिना सत्ता में भागीदारी महिलाओं को सशक्त नहीं किया जा सकता और इसलिए शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया। गांव से लेकर शहर की सत्ता में अब महिलाओं की लीडरशिप दिखने लगी है। शिवराजसिंह सरकार के प्रयासों और प्रोत्साहन का परिणाम है कि मध्यप्रदेश की कई पंचायतें महिला पंचायतें बन गई हैं। पंच से लेकर सरपंच तक सभी पदों पर महिलाएं निर्वाचित हैं। यही नहीं, कल तक पति सरपंच की परम्परा को महिलाओं ने ही ध्वस्त कर सत्ता अपने हाथों में ले ली है। इस बात की पड़ताल करने के लिए जब आप गांव की तरफ जाएंगे तो आपको हर तरफ नए दौर की, नई लीडरों से आपका परिचय होगा। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह कदम सार्थक एवं परिणामोन्नमुखी बना है।

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान बचपन से धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं और उन्हें विरासत में सर्वधर्म समभाव की सीख मिली है। मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी वे इस बात के हामी हैं कि एक मुख्यमंत्री के नाते, एक भारतीय होने के नाते उनका दायित्व है कि वे अपने जीवन में, अपने कार्य व्यवहार में सर्वधर्म समभाव को अपनाएं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री निवास बीते दस सालों से सर्वधर्म-समभाव का साक्षी बना हुआ है। होली-दीवाली, ईद-क्रिसमस के साथ ही अन्य सभी धर्मों के पर्व मनाने की परम्परा डाली है। जिस तरह प्रदेश के आखिरी छोर पर बैठे अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को मुख्यमंत्री निवास आकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के साथ भोजन का अवसर मिला, वैसे ही मुख्यमंत्री के साथ विभिन्न धर्म और वर्ग के लोगों के साथ मुख्यमंत्री उत्साह से उत्सव का आयोजन करते हैं, जो सभी के लिए उत्साह का कारण बनता है।

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किसानों के हितचिंतक शिवराजसिंह सरकार उनके हर सुख-दुख में साथ है। प्रकृति कभी ओला बरसा कर तो कभी सूखे से किसानों की परीक्षा ले रही है तो वह साथ में शिवराजसिंह सरकार की भी परीक्षा ले रही है कि वह अन्नदाता की रक्षा कैसे करते हैं। चुनौती का सामना करने का माद्दा रखने वाले शिवराजसिंह ने पीठ नहीं दिखायी और न ही आपदा से भागे बल्कि वे किसानों के साथ हो लिए। हर वक्त उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। अन्नदाता की सभी समस्याओं का समाधान भले ही ना हुआ हो लेकिन उसे सरकार के कंधों का भरोसा है।

दस साल के अपने कार्यकाल में लोकसभा, विधानसभा, नगर और पंचायत चुनावों में विजय पताका फहराने वाले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हमेशा से विनम्र बने रहे। वे विनम्रता से जीत का आलिंगन करते रहे और यही कारण है कि हर जीत के बाद दूसरी जीत उनकी झोली में गिरता गया। वे इस जीत का श्रेय स्ववं लेने के बजाय प्रदेश की जनता और पार्टी को देते रहे। स्वयं को प्रदेश और पार्टी का सेवक मानने वाले शिवराजसिंह लगातार दस वर्ष का कार्यकाल पूरे करने वाले गैर-कांग्रेसी सरकार के पहले मुख्यमंत्री हैं। उनकी सादगी उनकी पहचान है। बोली में कबीर के वचनों सा मीठापन, लिबास आम आदमी का, यही शिवराजसिंह चौहान की पहचान है। अपनी इन्हीं सादगी से वे प्रदेश में दस का दम दिखा गए हैं।

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लेखक मनोज कुमार से संपर्क 09300469918 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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0 Comments

  1. ashutosh sharma

    November 27, 2015 at 9:55 am

    यह तो होना है, कांग्रेस के जमाने में नियुक्त कई जनसंपर्क अधिकारी, कांग्रेस स्टाइल में ही पत्रकारों को ग्रिप में रखे हुए हैं। भले ही मामला दिल्ली का हो या फिर भोपाल का। लेकिन समस्या यह है कि इन नेता टाइप अफसरों के चंगुल में घटिया और दलाल टाइप के ही पत्रकार आते हैं। मुख्य धारा पत्रकारिता में संलग्न कोई भी पत्रकार इन्हें घास नहीं डालता। ये अफसर टाइप नेता किसी भी स्तर पर मीडिया में सरकार को बचा नहीं पाते। व्यापम मामला दिल्ली के समाचार पत्रों ने जमकर उछाला। हाल ही में हुई रतलाम लोकसभा चुनाव में हार को दिल्ली के अखबारों ने शिवराज की व्यक्तिगत हार बताया। लेकिन सरकार का पक्ष रखने के लिए नियुक्त करोड़ों का खर्च करवा रहे, दिल्ली में पदस्थ जनसंपर्क के अधिकारी अपने कमरों में भजिए खाते रहे।

  2. rajaram shukla

    November 27, 2015 at 3:48 am

    ठीक कहा यशवंत जी, कई बंगलों के चक्कर में, कई वेबसाइट, जो कि बीवियों के नाम से चला रहे हैं, से सरकारी कमाई के चक्कर में, तबादला उद्योग में लिप्त, ये पत्रकार पूरी तरह से बिके हुए हैं। न जाने कितने पत्रकार बंगलों में सालों से डटे हुए हैं। कई बीवियों के नाम से वेबसाइट चलाकर हर महीने लाखों रुपए सरकार से वसूल कर रहे हैं। सही कहा, मध्य प्रदेश के अधिकांश पत्रकार, खासतौर पर भोपाल निवासी सरकार की गोद में बैठे हुए हैं और शवराज उनका पालन पोषण कर रहे हैं।

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