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सुख-दुख

फोटो जर्नलिस्ट की जेब में अतीक अहमद ने जबरन लिफाफा डाल दिया था!

SK Yadav-

My last Photo coverage of Ateeq Ahmed:
यूं तो इलाहाबाद में फोटोपत्रकार होने के नाते न्यूज़ कवरेज के दौरान अतीक अहमद से दर्जनों बार आमना-सामना और मुलाकात हुई। लेकिन 27 जून 2016 को जब दिल्ली की एक पत्रिका ओपन मैगजीन के लिए अतीक अहमद की फोटो खींचने उनके आवास पर जाना हुआ तो मेरी वह मुलाकात अंतिम साबित हुई। उन दिनों रमजान चल रहा था, दिल्ली से मेरे पास ओपन मैगजीन से फोन आया कि वह उत्तर प्रदेश के माफियाओं पर कवर स्टोरी कर रहे हैं इस सिलसिले में उन्होंने अतीक अहमद का इंटरव्यू ले लिया है और मुझे उनकी कुछ तस्वीरें खींचकर भेजना है। मैगजीन से मुझे अतीक का नंबर दिया गया और यह भी बताया गया फोटोग्राफी के लिए उनसे बात हो चुकी है आप उन्हें फोन करके समय तय कर लीजिए।

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मैंने दिए गए नंबर पर फोन किया और अतीक अहमद से बात हुई। तब अखबार वाले भी आम इलाहाबादियों की तरह उन्हें भाई या अतीक भाई कहकर ही संबोधित करते थे। फोन पर उनका जवाब था यादव जी कल रख लेओ। मैंने उनसे कहा कि दिन में 11:00 बजे के आसपास आपके चकिया कार्यालय में कार्यकर्ताओं और मिलने जुलने वालों की भीड़ के बीच उनसे मिलते-जुलते हुए मैं आपकी तस्वीर खींचना चाहता हूं।

अतीक का जवाब था कि यादव जी रोजा चल रहा है दफ्तर वफ्तर चल नै रहा। दिन में हम लोग आराम करते हैं आप शाम 5:00 बजे घर पर रख लेव ।

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शाम 5 बजे मैं कैमरे के साथ चकिया स्थित अतीक अहमद के आवास पहुंचा। बड़ा गेट बंद था साइड में छोटे गेट पर एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा हुआ था। उसने मेरे आने का कारण पूछा और दरवाजे पर ही रुकने के लिए बोलकर अंदर गया। थोड़ी देर बाद उसने मुझे अंदर बुलाया। गेट से अंदर जाने पर काफी बड़ा खुला क्षेत्र है, बाई तरफ शेड में करीब आधा दर्जन एक से एक शानदार कार खड़ी हुई थी, वहीं पर टहलते हुए अतीक के छोटे भाई पूर्व विधायक अशरफ मिले, उनके पूछने पर मैंने बताया कि अतीक भाई से 5 बजे का अपॉइंटमेंट है, मुझे कुछ फोटो ग्राफी करनी है। उन्होंने कहा वह तो कहीं निकले हुए हैं , फिर उन्होंने फोन पर बात कर मुझसे बैठने के लिए कहा।

सामने दालान था और उससे लगा हुआ एक बड़ा कमरा था, उस कमरे के हालात देखकर मुझे कैमरा बाहर निकालने का मन करने लगा। दरअसल उस कमरे में बाकायदा स्थाई रूप से स्टैंड लगा कर लाइन से दर्जनों असलहे इस तरह रखे हुए थे जैसे पीएसी की गारद में असलहे लाइन से रखे होते हैं। कमरे के बाहर एक कुर्सी पर एक हट्टा कट्टा आदमी बैठा था और आसपास 4-6 लोग टहल रहे थे. यूं तो मैं खुद को बहुत साहसी फोटोजर्नलिस्ट मानता था और खतरों से खेलने में डर नहीं लगता था, लेकिन पता नहीं क्यों मेरी हिम्मत इस एक्सक्लूसिव तस्वीर को खींचने की नहीं हुई। जब मैं किसी मीडिया हाउस से जुड़ा रहता था तो अंदर असीम ताकत महसूस करता था, लेकिन इन दिनों मैं फ्रीलांसिंग कर रहा था, यह भी एक कारण साहस में कमी का हो सकता है।

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वहीं सामने मुझे कुर्सी पर बिठा दिया गया और प्रतीक्षा करने को कहा गया। एक घंटा बीत गया लेकिन अतीक नहीं आए। इस बीच सूरज की रोशनी फोटोग्राफी के लिहाज से चिंताजनक हो रही थी। मेरे सामने लंबे चौड़े दालान में दरी चटाई बिछाई जाने लगी,यह इफ्तारी की तैयारी थी। सामने ही एक बड़े किचन में दो-तीन लोग इफ्तरी के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने में व्यस्त थे। मैंने देखा कि रोजा खोलने के लिए खजूर, तरह-तरह के पकोड़े, कटे हुए फल, बेल का शरबत और भी कई तरह के शरबत, दही बड़े बगैरा काफी तादाद में सामान तैयार किया गया था। थोड़े देर में धीरे-धीरे काफी लोग वहां आ गए, 50-60 लोगों के बैठने और रोजा खोलने का इंतजाम वहां मुकम्मल हो गया था। गाड़ियों का काफिला आता है और अतीक अहमद उपस्थित होते हैं। मैं अपना कैमरा तैयार करके मुखातिब होता हूं। वह मुझसे कहते हैं सॉरी यादव जी थोड़ा लेट हो गए। मैंने उनसे बोला कि आपका रोजा खोलने का समय हो रहा है मुझे 5 मिनट दे दीजिए मैं अपना काम करके निकल जाऊं।

अतीक बोले यादव जी पहले आप मेरे साथ इफ्तारी करेंगे उसके बाद फोटोग्राफी होगी। मैंने कहा सूरज की रोशनी बमुश्किल 10 मिनट बची है। लेकिन वह अंदर चले गए हाथ मुंह धोने। उनकी फौज के साथ बैठकर रोजा खोलने में मुझे थोड़ी असहजता महसूस हो रही थी। लेकिन हम पत्रकारों के लिए इस तरह के मामले में आमतौर से ना करने में दिक्कत होती है। और उस पर से अतीक अहमद को ना कहना!

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उन्होंने मुझे अपने बगल बिठाया, उनके छोटे भाई अशरफ सामने की पंगत में आमने-सामने बैठे थे। कुछ बच्चे भी बैठे थे जिन्हें मैं पहचानता नहीं था। रोजा खोलने में वक्त था तो मैंने कहा कि मैं कुछ तस्वीरें खींच लेता हूं। उन्होंने कहा यार यादव जी पहले रोजा खोलो फिर खींचो । मैंने कहा यही तो तस्वीर है खींचने दीजिए। मैं उठा और कैमरा तैयार करके फोटो खींचने लगा। अतीक ने कहा रुक जाओ और वह किसी का इंतजार करने लगे। इस बीच एक हैंडसम नौजवान उनके बगल आकर बैठ गया। अतीक ने मुझे इशारा किया कि इनके साथ फोटो खींचिए। पता चला कि वह उनके बड़े बेटे उमर थे। उमर के बगल एक और छोटा बच्चा बैठा था।

मैंने कई एंगल से कुछ तस्वीरें खींची और उनके आग्रह पर साथ बैठकर खजूर खाकर मैंने भी रोजा खोला। रोजा खोलने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और अतीक उठ कर नमाज पढ़ने जाने लगे, मैंने कहा मेरे फोटो का क्या होगा? वह बोले नमाज पढ़ कर आता हूं। मेरे दिमाग में उनकी एक ऐसी तस्वीर थी जो अतीक अहमद के शानदार ड्राइंग रूम में एक बड़े माफिया डॉन की पर्सनैलिटी को जस्टिफाई करती हुई हो। इसलिए मैंने प्रतीक्षा करना ठीक समझा।

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थोड़ी देर बाद नमाज पढ़कर अतीक वापस आए और बोले बताओ यादव जी क्या करना है। मैंने उनसे उनके ड्राइंग रूम में चलने का आग्रह किया। वह बोले यार आजकल रोजा चल रहा है यहीं कहीं खींच लेओ। फिर वही सटे एक छोटे कमरे में गए जिसमें एक बिस्तर लगा था कुछ अलमारियां थी। मैंने कहा यहां मजा नहीं आएगा। वह बोले जो है यही खींच लो। मैंने कुछ उनकी पर्सनैलिटी तस्वीर उतारी। और कैमरा पैक करने लगा। अतीक अहमद ने कहा कि आप तो यही आस पास रहते है? मैंने कहा जी मैं डॉक्टर काटजू रोड (काल्विन रोड) पर रहता हूं। बोले यादव जी कभी कोई जरूरत हो तो बताना। मैंने कहा जरूर।

इस बीच उन्होंने एक लिफाफा मेरे शर्ट की जेब में डालने की कोशिश की। मैं समझ गया वह कुछ पैसे देने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने अपने पॉकेट पर हाथ लगा लिया और उन्हें कहा कि इन सब की जरूरत नहीं है। अतीक ने सख्ती दिखाई और कहा कि रख लो। मैंने कहा इस असाइनमेंट के लिए मैगजीन मुझे ठीक-ठाक पैसे देगी। उन्होंने मुझे आंखें दिखाते हुए कहा छोटे भाई हो और रख लो और लिफाफा मेरी जेब में ठूंस दिया। इसके बाद मेरी हिम्मत उन्हें रोकने की नहीं हुई।

मैं वहां से निकला लेकिन आत्मग्लानि से भरा हुआ। मुझे काफी कोफ्त हो रही थी कि मैंने लिफाफा कैसे ले लिया! अभी कुछ दिन पहले ही तो विश्वविद्यालय में अपने मीडिया के छात्रों को एथिकल कोड आफ कंडक्ट इन फोटोजर्नलिज्म चैप्टर पढ़ाते समय स्पष्ट रूप से व्याख्या करके आया था कि कवरेज के लिए ना तो किसी को पैसा देना है ना किसी से पैसा लेना है पत्रकारों के लिए यह पाप के समान है। खुद भी अपने लंबे पत्रकारिता के कैरियर में इन चीजों से दूरी बनाए रखी थी बल्कि पत्रकारों के उस गुट को लीड करता था जो पत्रकारिता में दलाली और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते थे। मैंने रास्ते में दिखने वाले पहले भिखारी को लिफाफा थमाया और वहां से सरपट वापस हो लिया।
ओपन मैगजीन ने अपनी इस कवर स्टोरी में उत्तर प्रदेश के कई बाहुबलियों की खबर छापी थी जिसमें लगातार पांच बार विधायक रहे और नेहरू जी की कांस्टीट्यूएंसी से सांसद रहे बाहुबली अतीक अहमद के भी राजनीति और अपराध की लंबी दास्तान लिखी गई थी।

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इस घटना के कुछ महीने के बाद ही इलाहाबाद के नैनी स्थित SHUATS विश्वविद्यालय में किसी छात्र की पैरवी में परिसर में पहुंचकर अतीक अहमद द्वारा गुंडागर्दी के मामले ने काफी तूल पकड़ा और हाईकोर्ट के आदेश पर फरवरी 2017 को अखिलेश यादव सरकार की पुलिस ने अतीक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस बार अतीक जब जेल गए तो फिर आजाद नहीं हो सके और 15 अप्रैल 2023 को रमजान के दौरान ही काल्विन हॉस्पिटल में उनकी और उनके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई। अखबारों की रिपोर्ट के मुताबिक दो दिन पहले उनके बेटे असद की एनकाउंटर में मौत के बाद वह बेहद गमजदा थे और सिर्फ कुछ घूंट चाय पीकर रोजा खोला था। उनकी अंतिम इफ्तारी यही थी।
इफ्तारी पर घटना याद आ गई और सोचा आप सबके साथ शेयर कर दूं।

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1 Comment

1 Comment

  1. Ashok Sharma

    April 23, 2023 at 9:23 pm

    ईमानदार तरीके से लिखित भावपूर्ण, समृद्ध विज़ुअल तथा विश्वसनीय ब्यौरा।

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