उत्तर प्रदेश का सियासी पारा धीरे-धीरे चढ़ता जा रहा है। 2017 फतह करने के लिये तमाम सियासतदां एयरकंडिशन ड्राइंग रूम से निकल कर सड़क पर पसीना बहा रहे हैं। डिजिटल इंडिया और नये दौर की राजनीति में भले ही धरने-प्रदर्शनों का रंग फीका पड़ चुका हो, लेकिन आज भी इसकी बानगी दिख जाती है। पुराने, जिन्हें घाघ नेता की संज्ञा दी जाती है, आज भी अपनी सियासत चमकाने के लिये धरना-प्रदर्शन को अपना अचूक हथियार मानते हैं।
चुनाव का साल करीब आते देख यह नेता सक्रिय हो गए हैं। सूबे का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा ? बसपा राज लौटेगा ? मोदी का जादू चलेगा ? राहुल गांधी जनता का दिल जीतेंगे ? इन सवालों का जवाब तलाशने के लिये जनता भले ही माथापच्ची नहीं कर रही हो लेकिन राजनैतिक पंडित और कलमकार अभी से जोड़-घटाने में लग गये हैं। कोई कहता है, माया राज की वापसी होगी। किसी को लगता है कि भाजपा का सत्ता के लिये वनवास खत्म होगा। ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जिनका मानना है कि युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बेदाग छवि जनता को रास आ रही है। अखिलेश को लेकर जो लोग आश्वस्त हैं, उन्हें लगता है कि पिछले करीब दो दशकों में कोई ऐसा नेता सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठा है जिसकी छवि इतनी साफ-सुथरी रही हो। वहीं यह लोग सपा फिर सत्ता में आयेगी, इसको लेकर आशंकित इस लिये हैं क्योंकि समाजवादी पार्टी के अराजक नेता और कार्यकर्ता जनता के लिये मुसीबत बने हुए हैं।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तमाम नसीहतें काम नहीं आ रही हैं। पार्टी के दबंग नेता और कार्यकर्ता उत्पात मचाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे हैं तो ऐसे मंत्रियों/नेताओं की भी कमी नहीं है जिनके श्रीमुख से निकलने वाले कड़वे बोल सामाजिक सौहार्द बिगाड़ रहे हैं। युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बेदाग छवि पर उनकी पार्टी के नेताओं की दबंगई और बदजुबानी भारी पड़ रही है।
शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता होगा, जब सपाइयों की गुंडागर्दी और बदजुबानी के किस्से समाचार पत्रों की सुर्खियों में न आते हों। कभी डाक्टरों की पिटाई तो कभी पुलिस वालों से मारपीट। महिलाओं से अभद्रता, व्यापारियों से अवैध वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने की कोशिश, तबादलों में दलाली, ठेकेदारी के लिये मारकाट आदि की खबरों में सपा नेताओं के चेहरे चमकते रहते हैं। समाजवाद से दूर-दूर तक नाता नहीं रखने वाले कथित समाजवादी नेताओं के लिये आलाकमान की कोई भी नसीहत या फटकार मायने नहीं रखती है। ऐसा हो भी क्यों न ? उन्हें पता है कि आलाकमान फटकार और नसीहत जिनती भी दे लेकिन अनुशासनहीनता या फिर गुंडागर्दी के लिये अभी तक किसी को कड़ी सजा नहीं दी गई है तो उसे कैसे मिल सकती है। सपा के दागी/दबंग नेताओं को सीएम अखिलेश यादव के इस कथन की बिल्कुल भी चिंता नहीं है कि उन्होंने जनता का भरोसा जीत लिया तो कई बार बनेगी सपा सरकार।
इसे महज इतिफाक नहीं कहा जा सकता है कि जिस दिन सपा के युवा नेता और मुख्यमंत्री अपने कार्यकर्ताओं को जनता का दिल जीतने की नसीहत देते हैं, उसी के दूसरे दिन फर्रूखाबाद में पुलिस लाइन के गेट पर सिपाही का कालर पकड़े सपा विधायक रामेश्वर यादव के पुत्र एवं चीनी मिल उपाध्यक्ष सुबोध यादव की तस्वीर छप जाती है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से मिलने की जद्दोजहद में सपाइयों ने जहानगंज के थानाध्यक्ष व सिपाहियों को पीट दिया। एक सपा नेता ने तो थानाध्यक्ष पर डंडे तक से वार किया। इससे दोनों गिर पड़े। थानाध्यक्ष की मदद के लिये जो सिपाही आगे आये वह भी सपा नेताओं की अराजकता के शिकार हो गये।
ऐसा नहीं है कि इस घटना के बारे में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को पता नहीं चला होगा, मगर कार्रवाई किसी के खिलाफ नहीं हुई। रिपोर्ट जरूर दर्ज हो गई। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तो अनेक बार सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को हद में रहने की हिदायत दे चुके हैं। वह इस बात से चिंतित नजर आते हैं कि कई विधायक और पार्टी के बड़े कार्यकर्ता ठेका-पट्टी में लगे हैं। समय-समय पर मुलायम अपने मंत्रियों और विधायकों को आगाह करते रहते हैं कि वह काम करें और चापलूसी से बाज आये, लेकिन उन्हीं की पार्टी के एक जिलाध्यक्ष नेताजी के हेलिकाप्टर पर चढ़ाने से पूर्व उनको अपना चेहरा दिखाने के लिये पुलिस तक से मारपीट करने में गुरेज नहीं करते हैं।
बहरहाल, समाजवादी पार्टी की जीत की खबर आते ही सपा नेताओं का तांडव शुरू हो गया था। सबसे पहले सपाइयों के हुड़दंग का शिकार बसपा नेता और कार्यकर्ता बने। कई जगह से बसपाइयों के साथ मारपीट की खबरें आईं। अखिलेश के शपथ ग्रहण समारोह के बाद मंच पर उत्पात मचाते सपाइयों की तस्वीरें आज भी लोगों के दिलो-दिमाग पर छाई हुई हैं। स्टेशन पर घोड़ा दौड़ाने वाले विधायक जी को भी लोग नहीं भूले हैं। दरअसल, सपा नेता पुलिस और सरकारी कर्मचारियों को अपनी जागीर समझते हैं। ऐसा नहीं है कि अन्य दल इससे अछूते हैं, परंतु इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को कहीं भी गुंडागर्दी करते नहीं देखा गया है। कुछ हद तक इस तरह की वारदातें बढ़ने के पीछे पार्टी के बड़े नेता भी जिम्मेदार हैं।
जब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव कहेंगे कि कुछ अधिकारी सरकार के खिलाफ षड़यंत्र रच रहे हैं। सपा महासचिव रामगोपाल यादव आरोप लगायेंगे कि कुछ अधिकारी पिछली सरकार का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मीडिया के सामने यह तो स्वीकारेंगे कि एक बड़े अधिकारी के रिश्वत मांगने का वीडियो उनके पास है, लेकिन वह उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करते है। आजम खां बोलते हैं कि ज्यादातर अफसर कामचोर हैं। शिवपाल यादव सुझाव देते हैं कि अधिकारी कमीशन तो लें लेकिन कम लें। जब वह नेता जिनके कंधों पर पार्टी का पूरा दारोमदार है इस तरह की बयानबाजी करेंगे तो फिर हुड़दंग करने वाले सपाइयों के हौसले तो बुलंद होंगे ही।
समाजवादी पार्टी को सत्ता हासिल किये तीन वर्षों से अधिक का समय हो गया है। इस दौरान कई बार प्रदेश के कुछ नौकरशाहों, बड़े अधिकारियों, पुलिस वालों, सपा के मंत्रियों, विधायकों, नेताओं, कार्यकर्ताओं के कारण अखिलेश सरकार को शर्मशार होना पड़ा। सपा के मंत्रियों, विधायकों और नेताओं की हठधर्मी के कारण जहां सरकार की छवि पर असर पड़ा, वहीं नौकरशाहों आदि के अडि़यल रवैये के कारण कई विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ा। कानून व्यवस्था पर उंगली उठी। अच्छा होता अगर सपा का शीर्ष नेतृत्व यादव सिंह जैसे कुछ भ्रष्ट अफसरों को चिह्नित करके उनके खिलाफ कार्रवाई करता। कुछ भ्रष्ट मंत्रियों की छुट्टी करता। उदंडी विधायकों और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की पूरी छूट पुलिस को देता। यही नहीं, आजम खां जैसे नेताओं के भी पर कतरने चाहिए जो अपने विभाग के कामकाज की जगह हर समय कोसने-काटने की राजनीति करते रहते हैं। आजम के खिलाफ अगर अनुशासनात्मक कार्रवाई होती है तो इससे मुस्लिम जनमानस नाराज नहीं होगा। वहीं बहुसख्यकों के बीच एक अच्छा संदेश जायेगा।
सपा आलाकमान को बसपा सुप्रीमो मायावती से भी सबक लेना चाहिए था। सत्ता में रहते मायावती के बारे में अक्सर यह कहा जाता था कि वह पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मुलाकात नहीं करती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि मायावती अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के बारे में कोई जानकारी नहीं रखती थीं। वह संगठन और सरकार में बैठे नेताओं की पूरी जासूसी कराती थीं। यह काम उनके कुछ विश्वसनीय अधिकारी किया करते थे। एक और बात। मायावती सरकार फोंटी के परिवार और जेपी ग्रुप से नजदीकी के चलते काफी बदनाम हुईं थीं, जिसका उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा था। अब इसी तरह के आरोप अखिलेश सरकार पर भी लग रहे हैं। कल तक जो परिवार और ग्रुप मायावती के ‘नाक के बाल’ बने थे, आज वह अखिलेश के बगलगीर हैं। खनन और आबकारी व्यवसाय पहले से अधिक मजबूत हो गया है। आबकारी राजस्व में जबर्दस्त कमी आई है, जो शुभ संकेत नहीं है। विकास के मोर्चे पर ठीकठाक आगे बढ़ रही अखिलेश सरकार को अन्य बिन्दुओं पर भी ध्यान देना ही होगा, वरना यह चूक 2017 में भारी पड़ सकती है। सपा के समाने समस्या यह है कि उसे बाहर से कम भीतर से ज्यादा चुनौती मिल रही है।
लेखक अजय कुमार से संपर्क : 9335566111, ई-मेल – ajaimayanews@gmail.com