: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में आयोजित सेमिनार में मीडिया और आध्यात्मिकता के बिंदुओं पर हुई विस्तार से बात : देश भर के चर्चित विद्वानों व वक्ताओं ने लिया भाग, कई पुस्तकों का हुआ लोकार्पण : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में पिछले दिनों आध्यात्मिकता जैसे गंभीर, जरूरी व व्यापक फलक तथा सरोकार वाले विषय को केंद्र में रखकर एक विशिष्ट सेमिनार का आयेाजन हुआ. ‘आध्यात्मिकता, मीडिया और सामाजिक बदलाव’ विषय पर आयोजित इस सेमिनार में देश भर से कई चर्चित विद्वतजनों, विशेषज्ञों व मीडिया विश्लेषकों ने भाग लिया. विषय के अनुसार वक्ताओं ने अपने विचारों को साझा किया और सबने अपने-अपने वक्तव्यों के जरिये इस विषय के दायरे का विस्तार करते हुए बहस के नये आयाम खोले. आध्यात्मिकता जैसे विषय पर चर्चा के साथ ही मीडिया के दायित्वों व उसके बदलते स्वरूप पर भी गहराई से बात हुई.
सभी बातों का मूल सार यह रहा कि आध्यात्मिका का गहरा सरोकार जीवन मूल्यों से है और मीडिया का दायित्व जीवन मूल्यों को बेहतर बनाकर समाज को सुंदर बनाना है. लेकिन यह दोनो तब संभव है, जब समाज सजग हो, जिम्मेवार हो और अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए तैयार रहे. आध्यात्मिकता जैसे अहम व व्यापक फलक वाले विषय पर आयोजित इस सेमिनार में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों, शोधार्थियों एवं प्रतिभागियों ने उपस्थिति दर्ज करायी. इस सेमिनार में मीडिया के विविध पक्षों पर प्रतिभागियों व अतिथि विद्वानों ने विस्तार से अपनी बातें रखीं. एक प्रमुख चिंतन का विषय यह भी रहा कि मीडिया अपने वास्तव लक्ष्य से भटक गया है. इस कारण वह कुछ लोगों के हित का साधन बन गया है. जब वह कुछ लोगों तक सिमट कर रह जाता है तो वह जनसंचार का साधन नहीं रह जाता. मीडिया से आम जनता के मुद्दे गायब होते जा रहे हैं.
इस सेमिनार में मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे चर्चित विद्वान व माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने बहुत कम शब्दों में ही बहुत गंभीर बातें कही. उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता का संबंध किसी धर्म या विचारधारा से नहीं बल्कि यह नैतिक आदर्श है. इसका संबंध व्यक्ति के मन और ज्ञान की परंपरा से है और यह उपदेश मूलक भी नहीं है, अपितु आचरण मूलक है. मीडिया के साथ सामंजस्य बिठाते हुए आध्यात्मिकता के जरिये सामाजिक बदलाव को अगर एक ही जगह देखना हो तो यह महात्मा गांधी के जीवन में देखे जा सकते है. मीडिया के माध्यम से अगर हम सामाजिक बदलाव की उम्मीद करते हैं तो इसके लिए हमें सकारात्मक पत्रकारीय भाव को भी रखना होगा. उदघाटन सत्र में ही अध्यक्षता करते हुये विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो गिरीश्वर मिश्र ने डॉ. मिश्र की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मीडिया प्रक्रिया, उपकरण और परिणाम भी है और कहना अतिश्योक्ति नहीं कि मीडिया ने जीवन का व्याकरण ही बदल दिया है और भारी शक्ति के तौर पर इसके उभार की प्रक्रिया जारी है. इसी बात को कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मानसिंह परमार ने गीता के श्लोक को उद्धृत करते हुए कहा कि सकारात्मक सोच के साथ मीडिया में आध्यात्मिकता का भावबोध पैदा किया जा सकता है. प्रो परमार ने मीडिया काउंसिल बनाने कि दिशा में प्रयास करने का सुझाव दिया.
इस तरह कई बातें सामने आयी और सभी विद्वानों ने सेमिनार के केंद्रीय विषय पर एक दूसरे की बातों से सहमति का विवेक दिखाते हुए और असहमति का साहस दिखाते हुए भी बहस को सार्थक दिशा में बढ़ाया, जिससे सेमिनार के निर्धारित विषय से संबंधित कई नये तथ्यों का उभार हुआ. आरंभ के सत्र में ही बीज व्यक्तव्य देते हुए प्रो राम मोहन पाठक ने कहा कि मीडिया में सकारात्मकता ही उसकी आध्यात्मिकता है जो वैयक्तिक संचार से भी पहचानी जा सकती है. सार वक्ता के रूप में प्रति कुलपति डॉ चित्तरंजन रंजन मिश्र ने गिरते पत्रकारीय मूल्यों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज मीडिया द्वारा अपसंस्कृति भी फैलाई जा रही है। इससे निपटने की दिशा में भी हमे सोचना चाहिए. इसी क्रम में दूरदर्शन दिल्ली के सलाहकार संपादक केजी सुरेश ने वर्तमान पत्रकारिता की बात करते हुए कहा कि आज पत्रकारिता में नैतिकता का संकट पैदा हो गया है. आज की पत्रकारिता में पत्र कम और कार ज्यादा है.
इस तीन दिवसीय सेमिनार में वक्ताओं के वक्तव्य के साथ ही कई और गतिविधियां भी आयोजित हुई. आईसीएसएसआर द्वारा प्रायोजित तथा संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी का आरंभ हबीब तनवीर सभागार में भारत रत्न और देश के 11वें राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि अर्पित कर हुआ. अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. देवराज ने अपनी कविता ‘एक छतनार महावृक्ष धरती पर आ गिरा’ के माध्यम से दिवंगत श्री कलाम को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. साथ ही उदघाटन सत्र में संगोष्ठी स्मारिका और शोध पत्र आधारित पुस्तक का लोकार्पण भी उनके द्वारा हुआ. ‘मीडिया के सरोकार’ विषय पर आयोजित एक सत्र में वक्ताओं ने अपनी बात रखी. इस सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध टीवी पत्रकार और लेखक डॉ. मुकेश कुमार ने की। इसके साथ ही मशहूर कार्टूनिस्ट मो. इरफान खान, समय राजस्थान न्यूज चैनल के संपादक रवि पराशर और मीडिया अध्ययन केंद्र स्वामी रामतीर्थ मराठवाडा विद्यापीठ नांदेड के निदेशक प्रो. दीपक शिंदे ने सत्र को संबोंधित किया.
मुकेश कुमार ने आध्यात्मिकता के केंद्र में आत्म चिंतन और आत्म शोधन की प्रक्रिया पर बल देते हुए कहा कि अगर मीडिया आत्म चिंतन करे की उसमें क्या-क्या खामियां है और उसका शोधन करें तो समाज में बदलाव आएगा. उन्होंने कहा कि खबरों का मुंह विज्ञापनों से ढका हुआ है और सत्य कहां है. आज के समय में 95 प्रतिशत पत्रकार के लिए अवसर नहीं है. उन्होंने बताया कि मुनाफा कमाने के लिए अनैतिक तरीके अपनाए जाते है तब दिक्कत आती है. मीडिया के सरोकार ने बाजार का मीडिया, समाज और आध्यात्मिकता और अंर्तसंबंधों को उजागर किया है. रवि पराशर ने अपने वक्तव्य में कहा कि जनमाध्यमों के सरोकार को सांस्कृतिक वैचारिकता से जोड़कर देखा जाना चाहिए और साथ ही आध्यात्मिक नैतिकता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. उन्होंने यह सवाल किया कि अगर मीडिया जायज तरीके से तरक्की कर रही है तो इसमें बुराई क्या है। उन्होंने मजीठिया आयोग की सिफारिशों को लागू करने की अनुशंसा की। देश में ज्यादातर पत्रकारों की हालात को बदत्तर कहते हुए उन्होंने पत्रकारों के दर्द को बयां किया. उन्होंने कहा कि मीडिया समाज में आए मूल्यों के गिरावट से बच नहीं सकता.
इस सेमिनार में एक अहम सत्र कार्टूनेां की दुनिया पर रहा, जिसे मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान ने संबोधित किया. उन्होंने कार्टून के जरिये और उसके बहाने संबंधित विषय को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी और कार्टून कला मानव में जन्मजात होती है. जिसे अभिव्यक्ति की समझ कहते हैं. कार्टून कभी बेलगाम नहीं होते। यह डायलिसिस मशीन की तरह काम करता है. जिससे समाज में सुधार होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्टून नहीं बनाए जाने चाहिए जिससे समाज में अशांति और तनाव न उत्पन्न हो. प्रो. दीपक शिंदे ने भी मीडिया के व्यावसायिक होने की तरफदारी की. साथ ही उन्होंने पेड न्यूज और सोशल मीडिया के पक्ष में बात रखी.
तीन दिवसीय संगोष्ठी में दूसरे दिन ‘मीडिया, संस्कृति एवं बाजार तथा आध्यात्मिकता और मीडिया’ विषयों पर अतिथि वक्ताओं ने अपने विचार रखे। इस सत्र में बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ. धारुरकर, इंक मीडिया इंस्टीट्यूट आफ मास कम्यूनिकेशन, सागर के निदेशक आशीष द्विवेदी, मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के असोसिएट प्रोफेसर मो. फरियाद, दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक प्रभु झींगरन, मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के पूर्व निदेशक प्रो. राम मोहन पाठक, वरिष्ठ पत्रकार श्याम कश्यप, आगरा पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा तथा मूल्यानुगत मीडिया के संपादक एवं शिक्षाविद प्रो. कमल दीक्षित ने अपने विचारों से सेमिनार के केद्रीय विषय को एक सार्थक गति दी. डॉ. धारुलकर ने मीडिया की नैतिकता एवं मूल्य संकट की ओर तो आशीष द्विवेदी ने कार्टून और अभिव्यक्ति पर आधारित अपना वक्तव्य दिया। डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा ने गांधी और अंबेडकर के पत्रकारिता का उद्धरण देते हुये आज के बाजारवादी पत्रकारिता पर कटाक्ष किया। डॉ. फरियाद ने कहा कि वर्तमान समय में बाजार संस्कृति पर हावी हो गया है और मीडिया पूरी तरह इसकी चपेट में है। प्रभु झींगरन ने सोशल मीडिया के वर्चस्व की बात को अलगकृअलग आायामों के साथ समझाया. प्रो. पाठक ने कहा संस्कृति जड़ नहीं बदलाव चाहती है, यह परंपरा चलती रहती है, इसे मानव चला रहा है। प्रो. श्याम कश्यप ने कहा कि संस्कृति से परंपरा का निर्माण होता है। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. कमल दीक्षित ने कहा कि बुद्धिजीवियों के विचार जब तक लोगों तक पहुँचते हैं तभी असली संस्कृति बनती है।
विश्वविद्यालय के समता भवन में इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध पत्रों की प्रस्तुति के लिए समानांतर सत्र आयोजित किया गया,जिसमें कुल सात विशेष कक्ष जैसे गणेश शंकर विद्यार्थी, माधव राव स्प्रे, माखन लाल चतुर्वेदी, युगल किशोर शुक्ल, बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय एवं बाबूराव विष्णु पड़ाकर आदि में कुल 245 शोध पत्रों की प्रस्तुति हुई। इंटरैक्टिव सत्र के रूप में प्रतिभागियों के लिए मीडिया क्विज का भी आयोजन हुआ।
संगोष्ठी के अंतिम दिन और समाहार सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने किया. इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे, मुख्य वक्ता के रूप में प्रतिकुलपति प्रो. चित्तरंजन मिश्र, जय महाकाली शिक्षण संस्थान, वर्धा के अध्यक्ष पं. शंकर प्रसाद अग्निहोत्री और प्रसिद्ध टीवी पत्रकार मुकेश कुमार मंच पर मौजूद थे। सत्र की शुरुआत अभिषेक द्वारा बनाई गई डॉ. कलाम पर बनी डोक्यूमेंट्री से हुई। संगोष्ठी के दौरान भावेश चव्हाण द्वारा बनाए गए देश के विख्यात पत्रकारों और सामाजिक बदलाव से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों के स्केच की प्रदर्शनी लगाई गयी और सभी गणमान्य लोगो ने विचार रखे।
समापन सत्र में शोधार्थी अनुपमा कुमारी ने सभी सत्रों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। सत्र का आभार ज्ञापन संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय ने तथा संचालन डॉ. अख्तर आलम ने किया। समारोह में प्रो. अनिल कुमार राय और डॉ. अख्तर आलम की संपादित पुस्तक ‘आध्यात्मिकता, मीडिया और सामाजिक बदलाव’ का विमोचन किया गया। टीवी पत्रकार मुकेश कुमार की पुस्तक ‘टीआरपी, न्यूज और बाजार’ तथा विश्वविद्यालय के दो पूर्व शोधार्थी डॉ. गजेंद्र प्रताप सिंह और राहुल मीणा की पुस्तक ‘मानवाधिकार हनन और मीडिया’ तथा कविता संग्रह ‘कलम, कैमरा और कठपुतली पत्रकारिता’ का भी विमोचन किया गया। इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान जनमाध्यमों के सरोकार, मीडिया के समकालीन प्रश्न, मीडिया संस्कृति और बाजार, आध्यात्मिकता और मीडिया, मीडिया का राजनैतिक अर्थशास्त्र जैसे विषयों पर विचारको ने अपने मत रखे।
प्रस्तुति- अनुपमा कुमारी