Connect with us

Hi, what are you looking for?

दिल्ली

क्या यह महज सिद्धांतों और विचार-भिन्नता की भिड़ंत है!

आम आदमी पार्टी (आप) के शीर्ष नेताओं ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति ( पीएसी) से बाहर करने पर पहली बार आप पार्टी के नेताओं  मनीष सिसौदिया, गोपाल राय, पंकज गुप्ता और संजय सिंह की ओर से एक बयान जारी किया गया है जिसमें योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई की वजहें बताते हुए उन पर दिल्ली के चुनावों के दौरान पार्टी को हराने का प्रयास करने का आरोप लगाया है। बयान में कहा गया है, प्रशांत भूषण ने दिल्ली में बीजेपी को हराने के लिए प्रचार करने आ रहे नेताओं को रोकने की कोशिश की और योगेंद्र यादव पर मीडिया में ख़बरें प्लांट कराने का आरोप लगाया। पार्टी ने इसके लिए अपने पास सबूत होने का भी दावा किया है। इस पर योगेंद्र यादव ने ट्वीट किया कि चार सहयोगियों की तरफ से जारी बयान ने खुली, पारदर्शी बातचीत की संभावना शुरू की है, सच्चाई की जीत होगी। वहीँ प्रशांत भूषण का कहना है कि ये अच्छा है कि जो बातें दूसरे लोगों की तरफ़ से कही जा रही थीं, जिस तरह के आरोप लग रहे थे वो अब पार्टी के शीर्ष नेताओँ की तरफ़ से लग रहे हैं। मेरे ख़्याल से अब वक्त आ गया है कि पूरा देश इस बारे में जान ले।

<p>आम आदमी पार्टी (आप) के शीर्ष नेताओं ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति ( पीएसी) से बाहर करने पर पहली बार आप पार्टी के नेताओं  मनीष सिसौदिया, गोपाल राय, पंकज गुप्ता और संजय सिंह की ओर से एक बयान जारी किया गया है जिसमें योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई की वजहें बताते हुए उन पर दिल्ली के चुनावों के दौरान पार्टी को हराने का प्रयास करने का आरोप लगाया है। बयान में कहा गया है, प्रशांत भूषण ने दिल्ली में बीजेपी को हराने के लिए प्रचार करने आ रहे नेताओं को रोकने की कोशिश की और योगेंद्र यादव पर मीडिया में ख़बरें प्लांट कराने का आरोप लगाया। पार्टी ने इसके लिए अपने पास सबूत होने का भी दावा किया है। इस पर योगेंद्र यादव ने ट्वीट किया कि चार सहयोगियों की तरफ से जारी बयान ने खुली, पारदर्शी बातचीत की संभावना शुरू की है, सच्चाई की जीत होगी। वहीँ प्रशांत भूषण का कहना है कि ये अच्छा है कि जो बातें दूसरे लोगों की तरफ़ से कही जा रही थीं, जिस तरह के आरोप लग रहे थे वो अब पार्टी के शीर्ष नेताओँ की तरफ़ से लग रहे हैं। मेरे ख़्याल से अब वक्त आ गया है कि पूरा देश इस बारे में जान ले।</p>

आम आदमी पार्टी (आप) के शीर्ष नेताओं ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति ( पीएसी) से बाहर करने पर पहली बार आप पार्टी के नेताओं  मनीष सिसौदिया, गोपाल राय, पंकज गुप्ता और संजय सिंह की ओर से एक बयान जारी किया गया है जिसमें योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई की वजहें बताते हुए उन पर दिल्ली के चुनावों के दौरान पार्टी को हराने का प्रयास करने का आरोप लगाया है। बयान में कहा गया है, प्रशांत भूषण ने दिल्ली में बीजेपी को हराने के लिए प्रचार करने आ रहे नेताओं को रोकने की कोशिश की और योगेंद्र यादव पर मीडिया में ख़बरें प्लांट कराने का आरोप लगाया। पार्टी ने इसके लिए अपने पास सबूत होने का भी दावा किया है। इस पर योगेंद्र यादव ने ट्वीट किया कि चार सहयोगियों की तरफ से जारी बयान ने खुली, पारदर्शी बातचीत की संभावना शुरू की है, सच्चाई की जीत होगी। वहीँ प्रशांत भूषण का कहना है कि ये अच्छा है कि जो बातें दूसरे लोगों की तरफ़ से कही जा रही थीं, जिस तरह के आरोप लग रहे थे वो अब पार्टी के शीर्ष नेताओँ की तरफ़ से लग रहे हैं। मेरे ख़्याल से अब वक्त आ गया है कि पूरा देश इस बारे में जान ले।

यह सब वह आसानी से कर सकते हैं, उनके पास तार्किक विरासत है। यह तो हम जानते ही हैं कि प्रशांत भूषण भारत के उच्चतम न्यायालय में एक वरिष्ठ और प्रतिष्ठित अधिवक्ता हैं। आम आदमी पार्टी में मचे घमासान के बीच संजय सिंह ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति पार्टी से बडा नहीं होता है। उन्होंने कहा है कि अगर प्रशांत भूषण व योगेंद्र यादव ने पार्टी के खिलाफ साजिश की है तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी में किसी को भी अनुशासन तोडने की इजाजत नहीं है। वहीं, पार्टी सांसद भगवंत मान ने ऐसी ही बातें कहीं हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उन्होंने कहा है कि पार्टी में गंदगी की सफाई के लिए झाडू लगाने की जरूरत है। उधर, आशुतोष ने कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे निराश नहीं हो, बहुत जल्द पार्टी का विवाद दूर हो जायेगा. आशुतोष ने कहा है कि किसी भी संगठन का अस्तित्व न्यूनतम अनुशासन का पालन किये बिना नहीं बच सकता है। यह ध्यातव्य है कि प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने चुनावों के कुछ दिन पहले कहा था कि उन्हें भाजपा की सी एम कैंडिडेट किरण बेदी पर अरविंद से ज्यादा भरोसा है। इसके अलावा भी शांति भूषण ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कई बार बयान दिए। आप के नेता कहते हैं, प्रशांत भूषण और उनके पिताजी को समझाने के लिए, कि वे मीडिया में कुछ उलट सुलट न बोलें, पार्टी के लगभग 10 बड़े नेता प्रशांत जी के घर पर लगातार 3 दिनों तक उन्हें समझाते रहे। ऐसे वक़्त जब हमारे नेताओं को प्रचार करना चाहिए था, वो लोग इन तीनों को मनाने में लगे हुए थे। शान्ति भूषण कांग्रेस (ओ) पार्टी और बाद में जनता पार्टी के एक सक्रिय सदस्य थे। वे १४ जुलाई १९७७ से २ अप्रैल १९८० तक राज्य सभा के सदस्य रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में १९७७ से सरकार के पतन तक विधि, न्याय एवं कम्पनी कार्य मन्त्री रहे। सन् १९८० में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। परन्तु १९८६ में जब भारतीय जनता पार्टी ने एक चुनाव याचिका पर उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्होंने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया। जाहिर है भाजपा में भी उनका अच्छा खासा रसूख है।

भाजपा के कुछ नेता उनके करीब हैं जिन्होंने शांति भूषण का अपने पक्ष में उपयोग किया। अंग्रेजी अखबार ‘मेल टुडे’ में शांति भूषण का एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें कहा गया ‘अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से करप्शन के मुद्दे पर बीजेपी को भी निशाने पर लिया और उसे कांग्रेस के एक समान बताया। वहीं खुद वह सेक्युलरिजम के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले, ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें, जो बीजेपी का विरोध करते रहे हैं मगर कांग्रेस से उकता गए हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी अन्ना हजारे के उस आंदोलन की देन हैं, जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ भी कर दिया गया। इससे जनता कन्फ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई। नतीजा यह हुआ कि केजरीवाल और कंपनी के पास भी कोई काम नहीं बचा।’ बाद में शांति भूषण ने दावा किया कि यह लेख उन्होंने नहीं लिखा है। हो सकता है यह सही हो लेकिन प्रश्न यह उठता है कि यह लेख किसने और किस मंतव्य के तहत प्रकाशित कराया। प्रशांत भूषण के बारे में आप नेताओं का कहना है कि पूरे चुनाव के दौरान प्रशांत जी ने बार-बार ये धमकी दी कि वे प्रेस कांफ्रेंस करके दिल्ली चुनाव में पार्टी की तैयारियों को बर्बाद कर देंगे। उन्हें पता था की आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

और अगर किसी भी पार्टी का एक वरिष्ठ नेता ही पार्टी के खिलाफ बोलेगा तो जीती हुई बाजी भी हार में बदल जाएगी। प्रशांत भूषण ने, दूसरे प्रदेशों के कार्यकर्ताओं को फ़ोन कर कर के दिल्ली में चुनाव प्रचार करने आने से रोका। उन्होंने दूसरे प्रदेशों के कार्यकर्ताओं को कहा – “मैं भी दिल्ली के चुनाव में प्रचार नहीं कर रहा। आप लोग भी मत आओ। इस बार पार्टी को हराना ज़रूरी है, तभी अरविन्द का दिमाग ठिकाने आएगा।” इस बात की पुष्टि अंजलि दमानिया भी कर चुकी हैं की उनके सामने प्रशांत जी ने मैसूर के कार्यकर्ताओं को ऐसा कहा। चुनाव के करीब दो सप्ताह पहले जब आशीष खेतान ने प्रशांत भूषण को लोकपाल और स्वराज के मुद्दे पर होने वाले दिल्ली डायलाग के नेतृत्व का आग्रह करने के लिए फ़ोन किया तो उन्होंने खेतान को बोला कि पार्टी के लिए प्रचार करना तो बहुत दूर की बात है वो दिल्ली का चुनाव पार्टी को हराना चाहते है। उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश यह है की पार्टी २०-२२ सीटों से ज्यादा न पाये, पार्टी हारेगी तभी नेतृत्व परिवर्तन संभव होगा। एक एनजीओ  ‘अवाम’ ने चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी को बहुत बदनाम किया।

‘अवाम’ को प्रशांत भूषण ने खुलकर सपोर्ट किया था। शांति भूषण जी ने तो ‘अवाम’ के सपोर्ट में और ‘आप’ के खिलाफ खुलकर बयान दिए जब कि ‘अवाम’ भाजपा द्वारा संचालित संस्था है। तीसरे नाराज नेता योगेंद्र यादव एक प्रसिद्ध सामाजिक और राजनीतिक विश्‍लेषक हैं। योगेंद्र यादव जेएनयू से निकलकर समता संगठन से जुड़े और फिर १९९५  में समाजवादी जनपरिषद के साथ हो गए।  समाजवादी चिंतक और सांसद रहे किशन पटनायक उनके राजनैतिक गुरु थे। १९९६  में उन्होंने टीवी चैनलों पर पहली बार दिन-रात चुनाव विश्लेषण किया। योगेंद्र ने २००१ में हरियाणा में जेपी संपूर्ण क्रांति यात्रा निकाली और अगले साल ही हरियाणा संपूर्ण क्रांति मंच बनाया। २००४ में अरुणा राय की अध्यक्षता में पीपुल्स पॉलिटिकल फ्रंट बनाने का प्रयास हो या फिर २००९ में लोक राजनीति मंच, ऐसी जगहों पर योगेंद्र बराबर सक्रिय रहेयादव कई शिक्षा संबंधी संस्‍थाओं से जुड़े रहे हैं। २०१०  में शिक्षा के अधिकार बनने वाले कानून की परामर्श समिति के सदस्‍य थे। वे यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के सदस्‍य भी रह चुके हैं। जहां से बाद में उन्हें सरकार द्वारा जबरन हटा दिया गया था। १९९५  से २००२ के मध्‍य उन्‍होंने लोकनीति नेटवर्क की स्‍थापना और नेतृत्‍व का कार्य किया। वे दूरदर्शन, एनडीटीवी और आईबीएन जैसे समाचार चैनलों के लिए राजनीतिक विश्‍लेषक के तौर पर कार्य कर चुके हैं। आप नेताओं का कहना है कि पार्टी के पास तमाम सबूत है जो दिखाते है की कैसे अरविंद की छवि को ख़राब करने के लिए योगेन्द्र यादव जी ने अखबारों में नेगेटिव ख़बरें छपवायी. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अगस्त माह २०१४  में दी हिन्दू अख़बार में छपी खबर जिसमे अरविंद और पार्टी की एक नकारातमक तस्वीर पेश की गयी। जिस पत्रकार ने ये खबर छापी थी, उसने पिछले दिनों इसका खुलासा किया कि कैसे यादव ने ये खबर प्लांट की थी. प्राइवेट बातचीत में कुछ और बड़े संपादकों ने भी बताया है कि यादव जी दिल्ली चुनाव के दौरान उनसे मिलकर अरविंद की छवि खराब करने के लिए ऑफ द रिकॉर्ड बातें कहते थे।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के संपादक यशवंत सिंह की यदि मानें तो मीडिया फ्रेंडली भूषण और योगेंद्र यादव ने अरविंद केजरीवाल के सख्त रुख को भांपकर मीडिया का जमकर इस्तेमाल करते हुए विधवा विलाप शुरू कर दिया और केजरीवाल को तानाशाह, अलोकतांत्रिक, वन मैन पार्टी आदि आदि आदि के जुमले से रंग डाला। योगेंद्र यादव, जो खुद यादव बहुल गुड़गांव की लोकसभा सीट पर अस्सी हजार के करीब ही वोट पा सके थे और हरियाणा में पार्टी कार्यकर्ता से लड़कर इस्तीफा दे डाले थे, कि या तो इसे रखो या मैं बाहर चला जाउंगा, भी मीडिया के सामने अपनी पूरी ताकत के साथ अपने को पीड़ित के रूप में पेश करने में कामयाब रहे जबकि उन दिनों केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ ताल ठोंक कर बिलकुल नई जगह से चुनाव लड़कर लोकसभा में ढाई लाख से ज्यादा वोट पाए थे। दिल्ली विधान सभा चुनाव में केजरीवाल के पक्ष में लहर देखकर भूषण तिकड़ी ने तय किया कि अगर जल्द ही इस बंदे को पार्टी संयोजक पद से न हटाया गया तो पूरी पार्टी केजरीवाल के नियंत्रण में हो सकती है। इस कारण भूषण तिकड़ी ने योगेंद्र यादव को अपने पाले में किया और उन्हें केजरीवाल के पैरालल प्रोजेक्ट कर नया संयोजक बनाने का अभियान छेड़ा। केजरीवाल को फेल साबित करने के लिए पार्टी बैठकों में वकील बाप बेटे शांति-प्रशांत भूषण द्वारा लंबा चौड़ा चार्जशीट पेश किया जाता जिसे योगेंद्र यादव बौद्धिक मुलम्मे में सपोर्ट करते। खैर, अब स्थिति यह है कि आप के इस घमासान से उसके  विरोधी प्रसन्न हैं, वे मजा ले रहे हैं। कांग्रेस जो शून्य हो चुकी है बुरी तरह केजरीवाल पर झल्लाई हुई है। उसे अपनी दुर्गति से जियादा आप की परेशानी की फिक्र है।

वहीँ बीजेपी अपनी हार का बदला गिन गिन कर चुका रही है। मोदी का विजय रथ रोकने वाले केजरीवाल को चित करने का इससे बेहतर मौका और कब मिलेगा। लेकिन इस सबके बीच आप कार्यकर्त्ता निराश हैं। उनका कहना है कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से हटाने का लोगों में गलत संदेश गया है। ऐसा लगता है जैसे केजरीवाल अपनी तानाशाही चला रहे हैं। वे पूछते हैं कि क्या सिर्फ दिल्ली में ही भ्रष्टाचार है? अगर ऐसा नहीं है तो योगेंद्र यादव ने आम आदमी पार्टी के पूरे देश में विस्तार की जो बात कही, उसमें बुरा क्या है? अगर पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ती, तो उसे पंजाब जैसे राज्य में संभावनाएं कहां से दिखतीं?  योगेंद्र यादव राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। वहीं,यह भी कि प्रशांत भूषण और उनके पिता शांति भूषण ने आम आदमी पार्टी के लिए जितना कुछ किया, उसका अरविंद केजरीवाल को शुक्रगुजार होना चाहिए। अगर प्रशांत भूषण नहीं होते, तो आम आदमी पार्टी आती ही नहीं। क्योंकि प्रशांत के केसों के दम पर, आप ने जो खुलासे किए, वो होते ही नहीं। लगातार यह  सवाल उठ रहा है कि क्या ये पार्टी भी बाकी पार्टियों जैसी हो गई है। प्रश्न यह भी है कि क्या यह महज सिद्धांतों और विचार भिन्नता की लड़ाई है जो योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण लगातार बता रहे हैं या वर्चस्व की लड़ाई है जो आप के अन्य नेता कह रहे हैं। जो भी हो, दोनों ही स्थिति अस्वाभाविक नहीं हैं। किसी भी दल या संगठन में यह स्वाभाविक है। यह प्रहसन नोटिस लिए जाने के काबिल है। दूसरी ओर जो विरोधी दल आज आप का मजा ले रहे हैं वे अपने कुकृत्यों और गुनाहों को आप के इस झगड़े की ओट में छुपा रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वे ईमानदार, साफ सुथरी और जन समर्थक राजनीति के कतई पक्षधर नहीं हैं यह हम भली भांति जानते हैं। आप देखिये विगत सड़सठ वर्षों से यही तमाशा चल रहा है तभी तो जनता बदलाव चाहती है। यह सही है आम आदमी पार्टी भी वह नहीं कर पा रही है जो वह चाहती है। उसके समक्ष चुनौती बड़ी है। वह नई पार्टी है, उसके विरोधी ताकतवर हैं। उसका फलसफा भी बहुत स्पष्ट नहीं है। ऐसी स्थितियों में यह संभव भी नहीं है लेकिन वह स्थापित ताकतवर पार्टियों जैसी भी नहीं है। और यह समझना भी जरुरी है कि इस बदलाव के राजनीतिक दुश्मन अनंत हैं समर्थक कम। वे इस मुहिम को कमजोर करना चाहते है। वे नहीं चाहते कि दूसरे की कमीज उनकी कमीज से जियादा सफेद हो। अंततः यह जनता को देखना है कि उसकी भलाई किस में है। 

(लेखक मेल संपर्क : [email protected])

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement