ऐसा शायद पहली बार रहा, या कह सकते हैं मुंबई अटैक जैसा ही कमोबेश। याकूब मेमन की फांसी की रात। जो सो चुके थे, उन्हें सुबह पता चला होगा लेकिन पूरी रात मीडिया का ‘फांसी’ लाइव चलता रहा देश की राजधानी से नागपुर जेल तक। सुप्रीम कोर्ट भी शायद पहली बार इस तरह जागा और एक मनहूस सुबह याकूब के आखिरी दम की खबरें ले उड़ी देश-दुनिया भर में…।
कभी आप के शीर्ष नेता रहे वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण रात चढ़ते ही अन्य वकीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के घर पहुंच गए। भनक लगी मीडिया को। लगती कैसे नहीं, इशारे रहे होंगे पहले से बड़ी खबरों में उड़ लेने के। इसके साथ ही मुंबई अटैक की तरह एक रात और टीआरपी और प्रसार का महासंग्राम छिड़ गया। चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज की होड़ छिड़ गई। अखबार के दफ्तरों में खबरों के टॉप-बॉटम बिछने-बदलने लगे। मीडिया मुख्यालयों की धड़कनें तेज-तेज चलने लगीं। ‘संपादक’ नामक कुर्सियों पर बैठे खबरों के खलीफा उल्टे पैर समाचार कक्षों में बाजी मार लेने की तरकीबों में फड़फड़ाने लगे।
न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज की धमाचौकड़ी। आजतक (टीवी टुडे), टाइम्स नाउ, एबीपी, एनडीटीवी, न्यूज 24, आईबीएन7…बेचारे एंकरों की तो जैसे शामत सी आ गई। बाजी मार लेने कान सर्कस शुरू हो चुका था। सर्कस याकूब मेमन की फांसी के हालात पर लाइव प्रसारण का। अभी रात आधी नहीं हुई थी। जिस टीवी रिपोर्टर को, जहां पर था, वहीं से लाइव छौंक लगाने के फटाफट फरमान मिल चुके थे। कोई रास्ते से लाइव था, कोई घर से, कोई किसी चाय की दुकान से… लगे रहो, फांसी होने तक इसी तरह… शाबाश..शाबाश, और तेज और तेज, जरा आंखें मटका-मटका के, हाथ झटक झटक के…वाह.. ‘फांसी लाइव’। उधर, सुप्रीम कोर्ट की बेंच बैठ चुकी थी फांसी पर आखिरी फैसला देने के लिए। बुलेटिन भी धांय-धांय, टिकर-टिकर, पट्टी-पट्टी। दिल्ली से उड़कर नागपुर पहुंच चुके थे तमाम रिपोर्टर, जैसे नेपाल, उत्तराखंड, कश्मीर चले गए थे रातोरात।
खबरें फटाफट आने लगीं लाइव नागपुर, दिल्ली, मुंबई से। और आज सुबह अखबारों के पहले पन्ने फांसी-फांसी चीखते-चिल्लाते हुए। सोशल मीडिया पर भी सुबह से ही फांसी-फांसी…कितना अजीब दिन… कलाम साहब तक को एक ही दिन में जैसे भुला बैठा हो देश, और बिहार के चुनाव की तो पूछ ही कहां! देश यानी टीआरपी और प्रसार का मारा बेचारा मीडिया।
जयप्रकाश त्रिपाठी