भास्कर के ‘भूल सुधार’ के चक्कर में पत्रकार की नौकरी जाना और अनुज खरे का केबिन में दुबके रहना!
मंगलवार को bhaskar.com में एक खबर चली, ‘एयर इंडिया के एमडी लोहानी से माफ़ी मांगी गई है’. दरअसल ये पूर्व में प्रकाशित की गई उस खबर का खंडन है जिसमें भास्कर ने ‘एयर इंडिया के एमडी पर सेक्सुअल हैरेशमेंट’ के आरोप की भ्रामक खबर छापी थी. होता है, पत्रकारिता में गलतियाँ न हों, ऐसा कोई नियम नहीं या पत्रकार गलती न करे ऐसा भी संभव नहीं. लेकिन प्रबंधन का पहले अपनी नाक के लिए खंडन न छापने पर अड़े रहना और फिर कानूनी मसलों में खुद को घिरता देख पलटी मार लेना, ऐसा शायद कम ही होता होगा.
यह भी शायद कम ही जगह होता हो जब नाक के चक्कर में मालिकान एक कर्मठ पत्रकार को पहले जलील करे और बाद में मजबूरन उसे इस्तीफ़ा देना पड़े. इस सबके बावजूद आपका एडिटर आपका बचाव करने की जगह खुद को पाक साफ़ बताकर केबिन में ही खुद को बंद कर ले, तब इसे आप क्या कहेंगे! वैसे तो वो झूठी मुस्कान लिए आपके गालों पर केक लगाने को दौड़ता हो, जब वो भरी मीटिंग में तारीफ़ होने पर खुद के ही सर सेहरा बाँधने से पीछे नहीं हटता हो. यही सोमवार को पूरे दिन भास्कर के डिजिटल न्यूज़रूम में होता रहा.
सोमवार को एयर इंडिया के एमडी का लीगल नोटिस आने के बाद eod (होम पेज) में काम करने वाले एक पत्रकार रमाकांत को हटा दिया गया. लगातार टारगेट पूरे कर रहे इस पत्रकार साथी के बचाव में जब संपादक अनुज खरे ने एक शब्द नहीं कहा तब दोपहर को दुबे ने अपना इस्तीफ़ा प्रबंधन को भेज दिया, जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया. इस बात से bhaskar के कर्मचारी दुखी थे. शाम होते होते एक और नया मोड़ आया और साइट की रीढ़ मानी जाने वाली eod से इसके इंचार्ज विभास ने भी अपने सहकर्मी के बचाव में अपना इस्तीफ़ा प्रबंधन को सौंप दिया. eod पहले ही बुरे दौर से गुजर रही है. पूर्व eod इंचार्ज विजय झा इन दिनों जनसत्ता को bhaskar बनाने पर तुले हैं, ऐसी बातें दिल्ली में आम हैं. बहरहाल, इतना कुछ होने के बावजूद अनुज खरे अपनी नौकरी बचाते रहे, जैसा कि वो पहले से करते आ रहे हैं. कूल! ये इसलिए कि ये तमगा अनुज को कुछ दिन पूर्व ही संस्थान छोड़कर गए हाइपरलोकल इंचार्ज प्रवीण ने दिया, जो अब जी न्यूज़ में हैं.
खैर, सूचना है कि एमडी ने पहले खंडन छपने की बात कही थी, जिसे पवन अग्रवाल ने ठुकरा दिया. अब एमडी की ओर से भेजे गए नोटिस में रमेश चन्द्र अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल, पवन अग्रवाल, नवनीत गुर्जर, अनुज खरे और रमाकांत दुबे समेत कुछ अन्य को party बनाया गया था. अब जबकि रमाकांत इस्तीफ़ा दे चुके हैं तब सवाल ये उठता हैं कि अनुज खरे आखिर अपने कर्मियों के गालों पर बर्थडे केक ही मलने के लिए हैं या उनके बचाव में कभी प्रबंधन के आगे अपनी बात भी रखेंगे? सारा दिन खुद को कमरे में बंद कर लेने की घटना तो यही इशारा करती है कि अनुज खरे बेहद गैर जिम्मेदार संपादक होने के साथ ही डरपोक भी हैं. पहले भी सीईओ ज्ञान गुप्ता का ही कंट्रोल साइट पर था अब पवन अग्रवाल सीधे हस्तक्षेप करते हैं. फिर भला संपादक के नाम पर रबड़ स्टाम्प बने रहकर अनुज खरे पत्रकारिता में कौन सी क्रांति ले आएंगे?
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.