मोदी सरकार के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही राम मंदिर निर्माण का संवैधानिक रास्ता निकलेगा… अब सवाल यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट से ही राम मंदिर बनना है तो फिर भाजपा, संघ या उससे जुड़े विहिप सहित तमाम संगठन किस मर्ज की दवा हैं और सालों से वे किस आधार पर ये दावे करते रहे कि कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे..? विपक्ष में रहते भाजपा ने कभी भी संवैधानिक तरीके से राम मंदिर निर्माण की बात नहीं की, उलटा यह नारा लगाया जाता रहा कि दुनिया की कोई अदालत यह तय नहीं कर सकती कि भगवान राम का जन्म कहां हुआ और मंदिर निर्माण कोर्ट का नहीं, बल्कि आस्था का विषय है…
यह तो सबको पता है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सभी के लिए बाध्यकारी है और कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों को मान्य करना ही पड़ेगा… तो फिर भाजपा कैसे राम मंदिर निर्माण का साफा अपने माथे बंधवाएगी..? अभी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी राम मंदिर निर्माण की बात कही गई और इस चुनाव सहित कुल 14 मर्तबा अपने घोषणा-पत्रों में मंदिर निर्माण के दावे भाजपा कर चुकी है… अब भाजपा और उसके भक्तों की दलील यह भी रहती है कि धारा 370 सहित मंदिर का निर्माण तब होगा जब राज्यसभा सहित उत्तरप्रदेश में भाजपा को पर्याप्त सीटें मिल जाए। यानि न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी… जबकि विपक्ष में रहते ये तमाम बहाने याद नहीं थे…
आज भाजपा और संघ को स्पष्ट घोषणा करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कुछ भी रहे मंदिर का निर्माण तो हर हाल में होकर रहेगा और इसकी तारीख और मंदिर निर्माण पूरा होने की घोषणा भी लगे हाथ कर देना चाहिए… जब शाहबानो प्रकरण में और अभी जल्लीकट्टू के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरित सरकारों ने अध्यादेशों के जरिए नियम-कानून ही बदल डाले, तो फिर राम मंदिर के निर्माण में क्यों नहीं इस तरह का अध्यादेश लाया जाता..? कुल मिलाकर भाजपा राम मंदिर के साथ-साथ अपने तमाम कोर इश्यू जिनमें धारा 370, सामान नागरिक संहिता पर एक्सपोज हो चुकी है… रामलला तो सालों से तम्बू में बैठे हैं और मंदिर बनाने वाले सत्ता के महलों में मस्ती छान रहे हैं…
राजेश ज्वेल
वरिष्ठ पत्रकार
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