Sanjaya Kumar Singh : हंड्रेड ऑड मेम्बर्स ऑफ पार्लियामेंट और फ्री सेक्स… फ्री सेक्स पर कविता कृष्णन के विचार को लेकर उठे विवाद पर मुझे एक पुराना मामला याद आया। कल ही लिखना चाह रहा था पर ना रिकार्ड मिला ना विस्तार। सोचा आज जो याद है वही लिख दूं। पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे। उन्हीं दिनों (उससे पहले) रूसी मोदी टाटा समूह की नौकरी से रिटायर होकर बुरी विदाई के बाद कोलकाता में रह रहे थे तो उन्हें इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया का चेयरमैन बनने की पेशकश की गई जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। जीवन भर निजी क्षेत्र में काम करने के बाद सरकारी ‘नौकरी’ उन्हें भारी पड़ी।
अपनी शैली में काम करने वाले मोदी ने ना नौकरी मांगी थी ना उनकी दिलचस्पी होगी। पर काम करने और परिणाम देने में दिलचस्पी रखने वाले मोदी ने सांसदों को “बंच ऑफ जोकर्स” कह दिया। सांसदों को नाराज होना ही था, हुए भी। और उनका विरोध शुरू हो गया। पर चूंकि प्रधानमंत्री की पसंद थे इसलिए कुछ हुआ नहीं। पर विरोधियों को मुद्दा चाहिए था सो लगे रहे। उन्होंने भी मौका दिया। एक बैठक में उन्होंने सांसदों की एक टीम के लिए (जो जाहिर है उड्डयन से संबंधित कोई समिति होगी) हंड्रेड ऑड मेम्बर्स ऑफ पार्लियामेंट कहा। इसका मतलब हुआ 100 के करीब। अगर हंड्रेड ट्वेंटी ऑड कहा जाए तो मतलब होगा 122-125। यहां अंग्रेजी के ऑड शब्द का इस्तेमाल हिन्दी के करीब या लगभग के लिए किया जा रहा है। पर सांसदों को तो मुद्दा चाहिए था। वे नाराज हो गए कि सांसदों को ऑड कहा गया है। मुझे ठीक से याद नहीं है। वास्तव में क्या-क्या हुआ पर अच्छा खासा विवाद था। विवाद इतना बढ़ा कि रूसी मोदी ने कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा दे दिया।
इस विवाद का कोई रिकार्ड नहीं मिला। इससे जुड़े रूसी मोदी अब इस दुनिया में नहीं हैं इसलिए और विवरण नहीं ले पाया। ‘हंड्रेड ऑड’ सांसदों में से एक जिनसे पुष्टि हो सकती थी वे भी अब इस दुनिया में नहीं हैं इसलिए इसे कहानी ही माना जाए। पर यह ऐसा ही है जैसे कुछ लोग किसी के पीछे पड़ जाएं। जैसा कविता कृष्णन के साथ हो रहा है। कविता कृष्णन ने भी अंग्रेजी में फ्रीसेक्स पर कुछ लिखा और लोग उनपर पिल पड़े (मां से पूछो टाइप)। जवाब में उनकी मां ने कहा, हां मैंने फ्री सेक्स किया है। जो फ्री नहीं है वह बलात्कार होता है। अंग्रेजी में किए गए इस पोस्ट, कमेंट और जवाब की चर्चा तो अंग्रेजी में भी रही पर हिन्दी वालों ने इसका मतलब अपने हिसाब से लगा लिया। फ्री सेक्स या उन्मुक्त सेक्स, व्यभिचार और फिर पढ़े लिखे हिन्दी वाले अभी तक इस मुद्दे पर अपना दिमाग साफ नहीं कर पाए हैं। खास बात यह है कि किसी को समझाने की कोशिश करो तो पता चलता है कि उसे तो अंग्रेजी का ककहरा भी नहीं आता है। इसलिए समझाना हिन्दी वालों के लिए ही मुसीबत है अंग्रेजी वाले क्या समझा पाएंगे।
कविता कृष्णन ने जो कहा एकदम सही कहा, (और तभी उनकी मां ने उनका समर्थन किया) लेकिन सुमंत भट्टाचार्य जैसे कुछ अधकचरे हिन्दी वाले फ्रीसेक्स का अनुवाद वैसे ही कर रहे हैं जैसे रेपसीड ऑयल का करेंगे। पर तब शायद समझ में आ जाए कि कुछ गलत हो गया। ये मामला ऐसा है कि समझ ही में नहीं आ रहा है या सेक्स के मामले में जैसी मानसिकता और सोच है उससे आगे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं। मैं नहीं मानता कि इस विषय को और बेहतर ढंग से समझाया जा सकता है। कुछ लोग कह रहे हैं कि हमें मत समझाइए (वो तो सर्वज्ञानी हैं) कविता कृष्णन की निन्दा कीजिए। मुझे ऐसी कोई जरूरत नहीं लगती। कहने की जरूरत नहीं है राजनीति करनी है, प्रचार पाना हो, किसी को नीचा दिखाना हो, किसी से हिसाब बराबर करना हो तो मुद्दे ऐसे ही बनाए जाते हैं। तथ्य अपनी जगह स्पष्ट होते हैं।
पत्रकार संजय कुमार सिंह के एफबी वॉल से.
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