वरिष्ठ पत्रकारों और मित्रों को नमस्कार, प्रेस क्लब का सदस्य होने के नाते मुझे लगा कि ये वक्त उचित है कि आप सभी से संवाद किया जाए। प्रेस क्लब चुनाव के सिलसिले में मुझे कई मेल मिले हैं। काफी तल्ख और आरोप प्रत्यारोप हैं। मीडिया में काम करने का मुझे गर्व है और सुकून होता है कि तमाम आरपोरेट कारपोरेट ..अल्ले बल्ले दल्ले आरोपों के बावजूद इस पेशे से जुड़े साथी अपने सामाजिक सरोकारों को कही ना कही किसी ना किसी तरह से निभाने की पूरी कोशिश करते हैं।
हालांकि हाल के वर्षों में मीडिया पर कई आरोप लगते हैं। बीजेपी के लोग हमें छद्म सेकुलर कहते हैं। कांग्रेस के लोग हमें भक्तगण कहते हैं, वामपंथी कारपोरेट मीडिया कहकर निपटा देते हैं। बाकी के अपनी सुविधा अपने एजेंडे के हिसाब से मीडिया को कुछ भी कहकर निकल लेते हैं। यहां तक कि डंडी मारने वाले दुकानदार भी गल्ले पर बैठ कर “मीडिया वाले “—-कह देते हैं। डॉक्टर इंजीनियर लोग क्या करते हैं कैसे करते हैं वही जाने लेकिन मीडिया को समाज सुधारने का ठेका मुफ्त देते हैं। माल्या/ सलमान टाइप तो प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया को दावत देंगे लेकिन समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी की खबर दिखआ दें. तो हमें मीडिया धर्म सिखाने लगते है। मैं इस बहस में नहीं जाना चाहता लेकिन समाज में व्याप्त बुराई का असर अकेले मीडिया पर नहीं है।
इन सबके बीच प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एक बड़ा नाम है जहां आम पत्रकार से लेकर खास पत्रकार, टाइम्स ऑफ इंडिया से लेकर फला फला पत्रिका, दक्षिण से लेकर उत्तर भारत, टीवी प्रिंट रेडियो तक के साथी मिलते हैं बैठते हैं बात करते हैं। तमाम पत्रकार संगठन होने के बावजूद प्रेस क्लब ऑफ इंडिया एक व्यापक और बड़े पहचान को बनाए रखने में कामयाब रहा है। ऐसे में मुझे लगता है कि चुनावी पैनलों की लड़ाई के बीच प्रेस क्लब में सहजता संवाद जैसा माहौल बनाने पर किसी ने ध्यान नहीं दिया… मुझे लगता है कि मैं आपसे निवेदन करूं कि प्रेस क्लब में आपसी सहयोग और संवाद का माहौल बनाने के लिए अच्छे उम्मीदवारों को वोट कीजिए ना कि लॉबी-पैनल -गोल-गैंग-गिरोह से आकर्षित होकर।
अवतंस चित्रांश
avtansh chitransh
संपादक, पूर्वापोस्ट
[email protected]