एम्स ॠषिकेश में सरकारी शुल्क के नाम पर जनता से हो रहा है धोखा
5 अक्टूबर वर्ष 2017, को एम्स ॠषिकेश के निदेशक प्रो. रवीकांत के निर्देशानुसार एक सर्कुलर जारी किया गया था जिसके अनुसार सभी मरीजों से, सीजीएचएस (सेंट्र्ल गवरनमेंट हैल्थ स्कीम) द्वारा प्राईवेट/निजी/कार्पोरेट अस्पतालों के लिये निर्धारित शुल्क वसूले जाने की बात कही गई थी।
इस आदेश के अनुसार आम मरीजों से इलाज के लिये वसूल किये जा रहे शुल्क में आंशिक वृद्धि नहीं बल्कि तीस गुना से लेकर कई लाख गुना तक वृद्धि कर दी गई थी। मूल्यवृद्धि की खबर के संदर्भ में आंतरिक विरोध एवं मीडिया में बदनामी के चलते एम्स के निदेशक ने दिनांक 7/10/2017 को आनन-फ़ानन में एक सर्कुलर जारी कर शुल्कवृद्धि पर रियायत देने का ठीकरा वहाँ काम कर रहे डाक्टरों और चिकित्सा अधीक्षक के सर फोड़ दिया।
इस आदेश में इन्होंने डाक्टरों और चिकित्सा अधीक्षक को 25 से 100 प्रतिशत छूट देने के लिये अधिकृत कर दिया। साथ ही साथ उनको इस बात के लिये आगाह भी कर डाला कि चिकित्सकों के छूट देने के प्रयोजन की जांच/निगरानी भी की जा सकती है।
भ्रष्टाचार और कमीशन को बढावा देने वाले इस आदेश की मंशा पर भीतर से ही सवाल खड़े होने लगे। जनता और मीडिया में शोर मचने और मंत्रालय से फ़टकार लगने के बाद नवंबर 2017 में निदेशक महोदय ने आदेश यह कहते हुऐ वापस ले लिया कि अब एम्स ॠषिकेश में एम्स दिल्ली के समान ही शुल्क वसूला जाऐगा।
मंत्रालय की ओर से भी यही आदेश हुए।
आम जनता से ठगी करने की नीयत रखने वाले निदेशक, जो कि खुद को सरकार के समक्ष सर्वाधिक कमाई कराने वाले निदेशक के रूप में दिखाना चाहते थे, ने एक चाल चली। उन्होंने एम्स दिल्ली के प्राईवेट वार्ड में लिये जाने वाले शुल्क को जनरल वार्ड के लिये लागू कर दिया जो कि एम्स दिल्ली में एकदम फ़्री है। सिर्फ़ भर्ती के 25 रु और 35 रु प्रतिदिन के न्यूनतम शुल्क के अतिरिक्त, आम जांच एवं इलाज/सर्जरी के लिये कोई अन्य फ़ीस नहीं ली जाती। यह जानकरी एम्स ॠषिकेश और एम्स दिल्ली की वेबसाइट पर प्राप्त की जा सकती है।
इसे समझने के लिये निम्न तालिका को ध्यान से देखने की जरूरत है, जिसमें एम्स ॠषिकेश और एम्स दिल्ली में होने वाले कुछ आपरेशनों के शुल्क की तुलना की गई है। उदाहरण के तौर पर देखें तो आपको ज्ञात होगा कि घुटने की या कूल्हे की हड्डी के प्रत्यारोपण का शुल्क एम्स दिल्ली के जनरल वार्ड में फ़्री है जबकि ऐम्स ॠषिकेश में यह 8000 रु है। केवल कुछ चुनिंदा जटिलतम औप्रेशन और जांचों के लिये ही एम्स दिल्ली में जनरल वार्ड के मरीज़ों के लियें फ़ीस निर्धारित की गई है।
इस मसले पर गहन रूप से विचार कर मंत्रालय से कोई भी मंजूरी नहीं ली गई है। हालांकि निदेशक ने मीडिया को यह कह के गुमराह किया कि वित्त विभाग ने उन्हें ऐसा करने के लिये कहा, जबकि यह अधूरा सत्य है। सरकार संस्थानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये समय-समय पर प्रेरित करती तो है, परंतु यह नहीं कहती कि देश में एक ही नाम के, एक ही संसदीय कानून से बने दो संस्थानों में आम जनता से वसूले जा रहे शुल्क में ज़मीन आसमान का अंतर हो।
प्रश्न यह है कि क्या दिल्ली एम्स पैसे नहीं कमाना चाहता? क्या उसे चलाने के लिये इस संगठित ठगी की ज़रूरत नहीं?
यह भी हो सकता है कि यह मूल्य कुछ लोगों को साधारण लगे, परंतु गरीब के लिये यह बहुत है। कई वर्षों का हिसाब जोड़ा जाय तो इस धन की मात्रा करोड़ों रुपय में बैठेगी।
कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना के कारण इस मूल्यवृद्धि का भार गरीब आदमी पर नहीं पड़ेगा। परंतु क्या आयुष्मान भारत योजना के तहत अस्पताल के बिल भी सरकार जनता द्वारा दिये गये टैक्स के पैसे से नहीं चुकाती?
मजे की बात यह है कि यह जानकारी निदेशक महोदय ने वेबसाइट पर यह सोचकर डाल दी है कि सरकारी वेबसाइट समझकर इसकी गहनता से कोई जांच नहीं करेगा, और वे धड़ल्ले से जनता को ठगते रहेंगे। परंतु यह भी देखने योग्य बात है कि आज तक जनता को करोड़ों रुपय का चूना लगने के बाद भी मंत्रालय ने इसकी खबर क्यों नहीं ली? क्या जनता को लूट का यह पैसा वापस दिया जाऐगा? क्या माननीय प्रधानमंत्री द्वारा देश की जनता को दिखाऐ गये पारदर्शी तंत्र का स्वप्न टूट जाऐगा?
एम्स जैसी उच्चतम सरकारी चिकित्सा संस्थान में आम नागरिक के प्रति यह दुराचार एक असीम संवेदनहीनता को दर्शाता है।
वैसे तो डा0 रविकांत अपने पूर्व पद वाइस चांसलर, लखनऊ के किंग़ जार्ज मेडिकल कालेज, के समय से ही भ्रष्टाचार के लिये कुख्यात हैं, और उनके विरुद्ध लखनऊ में कई जांच भी हो चुकीं हैं और कुछ लम्बित भी हैं।
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