कोरोना के टाइम में भले ही देश भर में करोड़ों लोगों के रोजगार चले गए, लेकिन अगर कोई ऋषिकेश एम्स के डायरेक्टर को जानता है, या नौकरी पाने के लिए जेब में नोटों की गड्डियां लेकर घूम रहा है, तो ऋषिकेश एम्स के डायरेक्टर साहब से संपर्क कर सकता है। डायरेक्टर साहब के कारनामे पहले भी प्रकाश में आते रहे हैं, जब उन्होंने बाजार में सौ दो सौ रुपये में होने वाली जांच के दाम बढ़ाकर दो हजार से तीस हजार तक कर दिए थे। फिर कोरोना के टाइम में रोक के बावजूद उन्होंने तीन केंद्रीय मंत्रियों को बुलाकर कन्वोकेशन कर डाला था।
लेकिन ये सब तो छोटी-मोटी बाते हैं।
एम्स ऋषिकेश से बड़ी खबर यह आ रही है कि वहां के डायरेक्टर ने 14 विभागों में 17 पद गैरकानूनी रूप से अपनी ही जाति के लोगों से भर दिए। मगर यह अंत नहीं है। यह तो बस शुरुआत की एक छोटी सी बात है। आगे आगे देखिए, एम्स ऋषिकेश के डायरेक्टर ने भ्रष्ट आचरण में कैसे कैसे झंडे गाड़े हैं।
बात भर्ती से शुरू हुई है तो पहले इसी को खत्म करते हैं। एम्स ऋषिकेश के डायरेक्टर हैं प्रो रविकांत। इन्होंने साल 2017 में अपनी कुर्सी पकड़ी। हमारे पास जो कागजात आए हैं, वे बताते हैं कि इन्होंने अनारक्षित श्रेणी में 175 टीचर्स का सेलेक्शन किया, जो पूरी तरह से असंवैधानिक है। अभी तक प्रो रविकांत 95 में से 7 अनुसूचित जाति एवं जनजाति और 18 ओबीसी की सीटो को असंवैधानिक तरीके से अनारक्षित श्रेणी में बदल चुके हैं। अभी हाल ही में इन्होंने एक और विज्ञप्ति जारी की है, जिसमें इन्होंने आरक्षण खत्म करके हालात और भी बुरे करने की कोशिश की है। इतना ही नहीं, कागजात यह भी दिखाते हैं कि प्रो रविकांत ने 14 विभागों में 17 पद गैरकानूनी रूप से भरे। इन पदों के बारे में सरकार ने कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया था। इन पदों के बारे में प्रो रविकांत ने खुद भी कोई विज्ञप्ति या विज्ञापन जारी नहीं किया, जैसा कि नियम है। इतना ही नहीं, इन्होंने ऐसा भी किया कि पद किसी और विभाग का, और उसके नाम पर भर्ती किसी दूसरे ही विभाग में कर दी है।
इन्हीं अवैध भर्तियों के बीच प्रो रविकांत पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने अपने बहनोई को नेत्र रोग विभाग में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में भर्ती कर लिया। इनके बहनोई पर पहले से ही यौन उत्पीड़न का आरोप है, जिसके चलते उन्हें दिल्ली सरकार ने सर्विस में एक्सटेंशन देने से मना कर दिया था। और तो और, इनकी भर्ती का भी हाल यह रहा कि फैकेल्टी में जगह थी नहीं, उसके बावजूद बहनोई जी को भर्ती किया गया।
इसके बाद अगर मामला यहीं तक रुक जाता, तब भी गनीमत थी। प्रो रविकांत पर आरोप है कि उन्होंने अपनी विशेष मित्र को पहले तो स्पेशली कॉन्ट्रैक्ट पर भर्ती किया और उसके बाद उन्हें अस्पताल का डिप्युटी सुप्रीटेंडेंट बना दिया। जबकि नियम यह है कि कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले को प्रशासनिक जिम्मेदारी का पद नहीं दिया जा सकता। जब इस पर सवाल उठे तो अपनी विशेष मित्र को उन्होंने सहायक आचार्य के पद पर भर्ती तो कर लिया, लेकिन इस पद के लिए जो विज्ञापन निकाला गया, उसमें आयु सीमा ही गायब कर दी गई।
इसके बाद तो एम्स ऋषिकेश के डायरेक्टर ने ऐसा कारनामा कर डाला, जिसकी तो आने वाले दिनों में लोग मिसालें देंगे। डायरेक्टर साहब के एक बड़े नजदीकी दोस्त हैं। इनकी भर्ती प्रोफेसर इन हेड-नेक सर्जिकल ऑन्कोलॉजी पर की गई। इसके लिए डायरेक्टर साहब ने बस सोचा और अपने दोस्त को अप्वाइंटमेंट लेटर भेज दिया। न को मीटिंग हुई, न कोई इंटरव्यू। सबसे बड़ी बात तो यह कि एम्स ऋषिकेश में प्रोफेसर इन हेड-नेक सर्जिकल ऑन्कोलॉजी का कोई पद ही नहीं है। इसके बाद उन्होंने अपने दोस्त को सुपर स्पेशलिटी की पढ़ाई करने वाले छात्रों का गाइड बना दिया, बावजूद इसके कि इनके मित्र के पास हेड-नेक सर्जिकल ऑन्कोलॉजी की कोई डिग्री ही नहीं है। उन्होंने इसकी पढ़ाई ही नहीं की। इनके ये दोस्त भी आपराधिक चरित्र के हैं और इन पर इन्हीं की बहू ने देहरादून के बसंत विहार पुलिस स्टेशन में 2013 में मारपीट, दहेज उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज कराई थी। इनके दोस्त ने जॉइनिंग से पहले प्रशासन को इसकी जानकारी तक नहीं दी।
अब जरा इनकी कारस्तानियों के आंकड़ों पर नजर डालिए। डायरेक्टर साहब ने नेत्र रोग विभाग में 9 लोगों की भर्ती की है, जबकि सीट संख्या 7 थीं। नाक कान गला विभाग की छह सीटों पर सात लोगों की भर्ती कर ली है। बाल रोग विभाग में 9 सीट पर 12 लोगों की भर्ती की है तो एनेस्थीसिया विभाग में एक सीट का विज्ञापन निकालकर एक प्रोफेसर और दो असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती कर लिए। इनमें हर भर्ती में आरक्षण के प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई गईं। एम्स ऋषिकेश में डायरेक्टर पर घोटालों के आरोपों की लंबी कड़ी है। अगली कड़ी में हम बताएंगे कि कैसे दवाइयों के साथ घपला किया गया।
देहरादून से आरपी की रिपोर्ट.