मित्रों, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव में केवल एक दिन शेष है। शनिवार 1 अक्टूबर को मतदान होगा। ऐसे में अब तक सामने आए पैनलों से जो चुनावी तस्वीर उभर रही है, वह काफी भ्रमित करने वाली है। एक तरफ़ तथाकथित ‘आधिकारिक’ पैनल है (गौतम लाहिड़ी-विनय सिंह) जिसे पिछली प्रबंधन समिति के नीति-निर्माताओं का समर्थन प्राप्त है, जिसके ऊपर वरिष्ठ सदस्य और प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रहे अली जावेद के खिलाफ कार्रवाई करने का आरोप है और जिसने बीते कुछ वर्षों में प्रेस क्लब के महासचिव का पद एक सीईओ के समानांतर बनाकर सदस्यता जैसी सामान्य प्रक्रिया को भी अपारदर्शी व प्रच्छन्न बनाने का काम किया है।
दूसरा पैनल (बाला-श्रीकृष्ण) स्पष्ट रूप से दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा प्रायोजित है जिसका घोषणापत्र ही इस बात का गवाह है कि इसके सदस्य घटनाओं को राष्ट्रवादी और राष्ट्रद्रोही के परस्पर विरोधी खांचे में रखकर देखने के पैरोकार हैं। अली जावेद को क्लब से निकालने वाले अधिकतर लोग इसी पैनल में शामिल हैं।
सरा पैनल (प्रशांत टंडन-फरीदी) इन दोनों के मुकाबले थोड़ा लोकतांत्रिक, युवा और प्रगतिशील अवश्य है लेकिन इसने राडिया टेप कांड में आरोपित एक पत्रकार गणपति सुब्रमण्यम को संयुक्त सचिव पद पर जाने-अनजाने खड़ा कर के अपनी साख पर बट्टा लगा दिया है। कायदे से होना यह चाहिए था कि पैनल इस पत्रकार की सच्चाई उजागर होने के बाद इससे अपना पल्ला झाड़ लेता, लेकिन उसने ऐसा न कर के अगंभीरता का परिचय दिया है। इस पैनल से वाइस-प्रेसिडेंट पद के दावेदार नवीन कुमार ने इस घटना के खिलाफ़ नैतिकता के आधार पर पैनल से खुद को अलग करते हुए स्वतंत्र रूप से चुनाव में खड़े होने का एलान कर के एक साहसिक उदाहरण कायम किया है।
चौथे पैनल (हबीब-पीके) का जि़क्र करने का कोई मतलब इसलिए नहीं बनता क्योंकि इसमें तीसरे पैनल के आधा दर्जन नाम रिपीट हैं। ऐसा लगता है कि यह एक डमी पैनल है। प्रेस क्लब में आम तौर से पैनल मतदान का चलन रहा है, लेकिन इस बार यह होता नहीं दिख रहा। अच्छा प्रबंधन चुनने के लिए कतई ज़रूरी नहीं कि पूरा का पूरा एक पैनल चुनने की सुविधा अपनाई जाए, बल्कि थोड़ा सा विवेक लगाकर विश्वसनीय व ईमानदार पत्रकारों का एक समूह चुना जा सकता है जो अलग-अलग पैनलों से हो। वाइस-प्रेसिडेंट पद के प्रत्याशी नवीन कुमार को इस दिशा में एक नज़ीर के तौर पर लिया जा सकता है।
पत्रकारिता और पत्रकार संगठनों/समूहों की विश्वसनीयता के संकट के इस दौर में हम सभी सदस्यों से अपील करते हैं कि वे ऐसे चेहरों को प्रबंधन के पदों और समिति के लिए चुनें जिनका पेशेवर रिकॉर्ड साफ-सुथरा हो, जो लिखने और बोलने का साहस रखते हों, ईमानदार हों और अपने किए के प्रति जवाबदेह हों। प्रेस क्लब की नई प्रबंधन समिति ऐसे पत्रकारों का समूह हो जो महासचिव पद की तानाशाही प्रवृत्तियों पर निगरानी रखते हुए उसे सभी सदस्यों के हितों के मद्देनज़र फैसले लेने को मजबूर कर सके। पैनल का मोह छोड़िए, सच्चे पत्रकारों को प्रेस क्लब से जोड़िए.
डेमोक्रेटिक जर्नलिस्ट्स लीग Democratic Journalists League : जनवादी पत्रकारों की एक मुहिम : संपर्क – [email protected]
भड़ास को मिले एक मेल पर आधारित.