माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी के नाम खुला पत्र…..
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध…
माननीय मुख्यमंत्री जी, आज दैनिक अमर उजाला में आपका एक वक्तव्य पढ़ा आपने एक कार्यक्रम दौरान अपने संबोधन में कहा है कि…”हम वैसे ही काम कर रहे हैं जैसे गार्जियन की इच्छा”… अखिलेश जी, 2017 में अगर उत्तर-प्रदेश में फ़ासिस्ट ताक़तों की फिरकापरस्त हुक़ूमत मुसल्लत हुयी और उत्तर-प्रदेश की सेक्युलर अवाम को फ़िरक़ा परस्तो के हाथों में सौपा गया तो जितनी ज़िम्मेदारी आपके चाचा शिवपाल जी,आपके पिता जी मुलायम सिंह यादव जी की होगी उससे कहीं बढ़कर इसके ज़िम्मेदार आप ख़ुद होंगे।सिर्फ ये कहने भर से की जैसे बड़ो की मर्ज़ी…से आप अपने दामन को नहीं बचा सकते।
उत्तर-प्रदेश की अवाम ने आपको अपना नेता माना तो अवाम आपसे ये तवक़्क़ो भी रखती है कि विपरीत परिस्तिथि में आपको कठोर क़दम उठाना चाहिये था,हक़ और बातिल की जंग में हक़ परस्ती का क़ायदा बन कर उभारना चाहिये था,आप सिर्फ अब नेता जी के बेटे नहीं,शिवपाल चाचा के भतीजे ही नहीं बल्कि 4.5 करोड़ की आबादी के सरपरस्त भी हैं,आप न तो अच्छे बेटे ही साबित हो पाए और न ही अच्छे सरपरस्त…या तो आपको अपने परिवार के आगे बिलकुल हथियार डाल देने चाहिये थे और चुपचाप पद से इस्तीफा दे कर वापस ऑस्ट्रिलिया चले जाना चाहिये था ताकि कम से कम एक आदर्शवादी बेटे की छवि तो बनी रहती आपकी…
फिर अगर अवाम का क़ायद बनने का जज़्बा वाक़ई आपके दिल में था तो ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आपको अपनी आवाज़ बुलंद करते हुये खड़े हो जाना चाहिये था।अखिलेश जी ये जम्हूरी निज़ाम है यहाँ दोनों हाथ में लड्डू नहीं चलते, अवाम को इतना भी बड़ा बेवक़ूफ़ मत समझीये की वो आपको इतनी आसानी से माफ़ कर देगी वो भी तब की जब अवाम हर कदम पर हर फैसले में आपके साथ शाना ब शाना खड़ी हुई, बुज़ुर्गों की दुआ आपके साथ,नोवजवां का खून आपके साथ,बच्चो का प्यार आपके साथ… और क्या चाहिये था आपको साहब…मगर आपको डर सता रहा था अपना इख़्तेदार जाने का, आप डर गए फैसला लेने से.
मौजूदा वक़्त में अवाम की नज़र में आपकी हैसियत अब सिर्फ एक कायर नेता की बची है जिसको हमेशा कुर्सी जाने का डर सताता रहा…मुस्लिम वोटों पर हुक़ूमत में आप आये तो आपको थोड़ा तारीख़े इस्लाम भी पड़ना चाहिये था…अगर मेरे हुसैन ज़ालिम के हाथ पर बैत कर जाते तो आज इस्लाम का वुजूद न होता…और इस वक़्त आपकी कारगर्दगी बता रही है कि आपमें वो जज़्बा इच्छाशक्ति नहीं है कि ज़ुल्म के ख़िलाफ़ परचम बुलंद कर पाएं और इतिहास में अमर हो जाएं,आपकी कायरता ये बयां कर रही है कि आप कितना भी विकास पुरुष होने का डंका पीट लें मगर अब अवाम की नज़र में आप कायर पुरुष ही हैं…
अखिलेश जी, संघर्ष की कोख से नायक जन्म लेता है और अब आप नायक नहीं खलनायक बन कर सामने आये हैं…न तारीख माफ़ करेगी, आपको और न अवाम… अखिलेश जी, आप सियासत में हारे हुए उस राज कुमार की तरह नज़र आरहे हैं जिसके सामने शतरंज की सारी बिसात पलट गयी और राजकुमार अपनी बारी का ही इंतेज़ार करता रहा… अखिलेश जी, इतिहास “बारी” को न लिखता है न याद करता है, इतिहास हमेशा फैसले को मान्यता देता है…
डॉ. एस. ई. हुदा
नेशनल कन्वेनर
हुदैबिया कमेटी
बरेली