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अनिल माधव दवे जी आरओ तकनीक के सख्त खिलाफ थे

पर्यावरण संत अनिल माधव दवे कर रहे थे एक बड़ी योजना पर काम, ये थी उनकी अंतिम इच्छा…

शांत चित्त चेहरा, हमेशा बनी रहने वाली मुस्कान और गंभीरता से सभी की बात को सुनने की कला ये वो बातें हैं जो मेरे जेहन में स्व. अनिल माधव दवे की स्मृतियों को हमेशा जिंदा रखेंगी। मितभाषी होने के साथ साथ वो समय के संपूर्ण उपयोग पर विशेष ध्यान देते थे। मेरा सौभाग्य है कि मुझे उन्हें नजदीक से जानने का मौका मिला। उनके एक प्रोजेक्ट के बारे में मैंने ब्लॉग लिखा था। जिसमें सिंगापुर युनिवर्सिटी के वॉटर रिसर्च डिपार्टमेंट के एक शोध के बारे में बताया गया था। दवे जी इस तकनीक से बहुत प्रभावित थे क्यूंकि वो मध्य प्रदेश के हर गांव में पीने का शुद्ध पानी देने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे थे। पर्यावरण विद् और वैज्ञानिक सोच का होने की वजह से वो जानते थे कि पानी को शुद्ध करने की उपलब्ध तकनीक पानी को बहुत बर्बाद करती हैं और पानी के पोषक तत्वों को भी खत्म कर देती हैं।

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पर्यावरण संत अनिल माधव दवे कर रहे थे एक बड़ी योजना पर काम, ये थी उनकी अंतिम इच्छा…

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शांत चित्त चेहरा, हमेशा बनी रहने वाली मुस्कान और गंभीरता से सभी की बात को सुनने की कला ये वो बातें हैं जो मेरे जेहन में स्व. अनिल माधव दवे की स्मृतियों को हमेशा जिंदा रखेंगी। मितभाषी होने के साथ साथ वो समय के संपूर्ण उपयोग पर विशेष ध्यान देते थे। मेरा सौभाग्य है कि मुझे उन्हें नजदीक से जानने का मौका मिला। उनके एक प्रोजेक्ट के बारे में मैंने ब्लॉग लिखा था। जिसमें सिंगापुर युनिवर्सिटी के वॉटर रिसर्च डिपार्टमेंट के एक शोध के बारे में बताया गया था। दवे जी इस तकनीक से बहुत प्रभावित थे क्यूंकि वो मध्य प्रदेश के हर गांव में पीने का शुद्ध पानी देने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे थे। पर्यावरण विद् और वैज्ञानिक सोच का होने की वजह से वो जानते थे कि पानी को शुद्ध करने की उपलब्ध तकनीक पानी को बहुत बर्बाद करती हैं और पानी के पोषक तत्वों को भी खत्म कर देती हैं।

इसी मकसद के साथ उन्होंने हाल ही में सिंगापुर के वैज्ञानिकों से मुलाकात की थी और एक ऐसा ही प्लांट भोपाल के नजदीक रामनगर में नर्मदा के किनारे अपने आश्रम में लगवाया था। इस प्लांट का पानी आस पास के गांव के लोगों ने छः महीने तक इस्तेमाल किया और इसके बाद उन्होंने इस तकनीक पूरे प्रदेश में लागू करने के लिए अपनी पूरी सांसद निधि लगा दी। ये प्रोजेक्ट उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था और इसीलिए वे खुद लगातार इस पूरे प्रोजेक्ट पर नजर बनाए हुए थे। अच्छी बात ये है कि अपने निधन से पहले वो मध्यप्रदेश के कई गांवों के लिए शुद्ध पेयजल की एक आधार शिला रख गए हैं। उन्होंने प्रदेश के कई जिलों के कलेक्टरों को इस तरह की तकनीक के साथ प्लांट लगाने के लिए निर्देश जारी कर दिए थे।

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अनिल माधव दवे जी आरओ तकनीक के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि ये तकनीक न सिर्फ पानी की जबरदस्त बर्बादी करती है बल्कि पानी की गुणवत्ता को भी पूरी तरह खत्म कर देती है। ये तकनीक पानी के सभी मिनरल्स को खत्म करती है जो हमारे शरीर पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। आज के दौर में इतनी गहन समझ के राजनेताओं का मिलना बहुत मुश्किल है। वे लगातार अध्ययन करते रहते थे और नए शोधों के बारे में खुद को अपडेट रखते थे। नर्मदा को बचाने के लिए उन्होंने एक बड़ा अभियान चलाया और ये राष्ट्र उनके इस अमूल्य योगदान को कभी नहीं भूलेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट में जिक्र किया है कि वो कल शाम तक उनके साथ ही थे और मुख्य पॉलिसीज पर उनकी चर्चा चल रही थी। इससे उनके उद्यमी व्यक्तित्व का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। इन योजनाओं में पूरे देश को आरओ मुक्त करना और बड़े पैमाने पर सभी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना उनके अभी तक की योजनाओं में सबसे अहम था। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि यही पर्यावरण संत अनिल माधव दवे की अंतिम इच्छा भी थी कि इस देश के सभी लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराया जाए। उन्होंने सिर्फ ये सपना ही नहीं देखा बल्कि इस पर आगे बढ़ते हुए मध्य प्रदेश में अपनी पूरी सांसद निधि का इस्तेमाल कर अन्य नेताओं के सामने एक मिसाल भी पेश की है। एक दूरदृष्टा राजनीतिज्ञ और पर्यावरण विद् अनिल माधव दवे  जी को अश्रूपूरित श्रध्दांजलि।

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लेखक Praveen Tiwari टीवी जर्नलिस्ट हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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