(कुमार सौवीर)
Kumar Sauvir : पत्रकारिता पर चर्चा शुरू हुई तो अशोक श्रीवास्तव ने बुरा-सा मुंह बना लिया। मानो किसी ने नीम को करेले के साथ किसी जहर से पीस कर गले में उड़ेल दिया हो। बोला:- नहीं सर, अब बिलकुल नहीं। बहुत हो गया। अशोक श्रीवास्तव, यानी 12 साल पहले की जान-पहचान। मैं पहली-पहली बार जौनपुर आया था। राजस्थान के जोधपुर के दैनिक भास्कर की नौकरी छोड़कर शशांक शेखर त्रिपाठी जी ने मुझे वाराणसी बुला लिया। दैनिक हिन्दुस्तान में। पहली पोस्टिंग दी जौनपुर।
अशोक श्रीवास्तव उसी एडीशन में शाहगंज तहसील का संवाददाता था। बेहद अकखड़। लगता था कि जैसे अगर वह न हुआ तो पूरी दुनिया-कायनात ही खत्म हो जाएगी। 17 अगस्त-03 को खेतासराय-सोंधी में वहां के सपाई सरकार के राज्य मंत्री ललई यादव ने सरेआम गुंडई की तो उस वक्त तक अशोक सहमा हुआ था, लेकिन जब मैंने इस हादसे का खुला विरोध किया तो अशोक पूरे जोश में आ गया। उसके बाद से वह वाकई बेधड़क पत्रकार बन गया। पहले की झुकी हुई सींगें अब तीखे खंजर की तरह धारदार हो गयीं। कुछ ही दिनों में उसके तेवर तीखे हो गये। मेरे ट्रांस्फर के बाद बाद भी कुछ ऐसे सहकर्मी ऐसे थे, जो अक्सर मुझे फोन करके खबर की धार-प्रवाह समझने की कोशिश करते थे। मसलन, रूद्र प्रताप सिंह, इंद्रजीत मौर्या, राममूर्ति यादव, आनंद यादव, अशोक श्रीवास्तव और अर्जुन शर्मा वगैरह। हालांकि बाद में रूद्रप्रताप और इंद्रजीत जैसे लोग चूंकि बड़े पत्रकार हो गये, इसलिए मुझे फोन करने की जरूरत भी नहीं पड़ी उन्हें, लेकिन बाकी लोग लगातार सम्पर्क में रहे। अशोक और राममूर्ति लगातार सम्पर्क में रहे।
करीब ड़ेढ महीना पहले मैं राममूर्ति यादव की बेटी की शादी में शाहगंज-खेतासराय से भी आगे 19 किलोमीटर दूर गया, तो अशोक मुझे देखते ही चहक उठा। बातचीत का दौर शुरू हुआ तो उसका दर्द बिखरने-जुटने लगा। बोला:- अरे सर, छोडि़ये पत्रकारिता की बात। क्या सोचा था, और क्या हो गया। पूरी इलाके से दुश्मनी हो गयी, बदनामी अलग हो गयी। साथ किसी ने भी नहीं दिया। उस हिन्दुस्तान अखबार संस्थान ने तो पहले ही पल्ला झड़क लिया जिसके लिए मैंने जान तक लड़ा दी थी। 22 साल तक इस अखबार के लिए बिना पैसा के काम करता रहा। सोचता रहा कि आज न कहीं कल, कुछ न कुछ तो हो ही जाएगा। अब निराश हो गया हूं। लेकिन सर, आपके लिए जान हाजिर है। आता हूं लखनऊ। शायद एक-डेढ महीने के भीतर ही। बस बच्चों में फंसा हूं। लेकिन आपके साथ अब लखनऊ में ही मुलाकात होगी। और आज, बिलकुल अभी-अभी, जौनपुर से राजेश श्रीवास्तव का फोन आया कि अशोक श्रीवास्तव की मौत हो गयी है। राजेश ने बताया कि उसे एक तगड़ा हार्ट-अटैक हुआ था। बस उसका सारा दुख-शोक अशोक में विलीन हो गया। छोड़ो यार अशोक। तुम से तो भगवान भी नहीं जीत सकता है। तुम मेरे जिगर के टुकड़े रहे हो और हमेशा रहोगे। तुम तो मेरी जान हो यार। क्या समझे बे लाला-लूली की जान!
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर के फेसबुक वॉल से.
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