Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

भटके मुस्लिम युवकों को सुधारने के लिए यूपी एटीएस का ‘डी-रेडिक्लाइजेशन’ अभियान!

संजय सक्सेना, लखनऊ

युवा अवस्था में भटकाव लाजिमी है। कभी गलत संगत तो कभी बिगड़ी सोच के कारण युवा अपने मार्ग से भटक जाता है। ऐसा नहीं है कि पूरा युवा समाज ही भटकाव से जूझ रहा हो, ऐसे युवा भी हैं जो अपनी स्पष्ट और लक्ष्य भेदी सोच के कारण सही राह पर चलते हुए अपने कुल और देश का नाम रोशन करते हैं, लेकिन इससे इत्तर कड़वी सच्चाई तो यही है कि भटकने वाले युवाओं का ग्राफ काफी ऊपर है। शायद ही कोई ऐसा युवा होगा जो दावे के साथ कह सके कि उसकी जिंदगी में भटकाव वाला मोड़ कभी नहीं आया। हॉ,सच्चाई यह भी है कि समय के साथ परिपक्त होने पर कुछ युवा संभल जाते हैं और जो नहीं संभल पाते हैं, उनके पास ठोकरे खाने के अलावा कुछ नहीं बचता है। ऐसे भटके हुए युवा घर-परिवार के लिये तो मुश्किलें पैदा करते ही हैं समाज को भी इनसे खतरा रहता है। समाज में जो अपराध बढ़ रहा है उसके पीछे ऐसे ही भटके हुए युवा हैं, जिस देश की 65 प्रतिशत आबादी युवा हो, अगर वह गलत रास्ते पर चल पड़े तो उस देश को कोई बचा नहीं सकता है। यह बात हम-आप सोचते और समझते तो हैं, लेकिन इससे निपटने के लिये कभी उपाय नहीं तलाशे गये। अगर तलाशे भी गये तो वह सीमित  और कमजोर थे।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p><strong>संजय सक्सेना, लखनऊ</strong></p> <p>युवा अवस्था में भटकाव लाजिमी है। कभी गलत संगत तो कभी बिगड़ी सोच के कारण युवा अपने मार्ग से भटक जाता है। ऐसा नहीं है कि पूरा युवा समाज ही भटकाव से जूझ रहा हो, ऐसे युवा भी हैं जो अपनी स्पष्ट और लक्ष्य भेदी सोच के कारण सही राह पर चलते हुए अपने कुल और देश का नाम रोशन करते हैं, लेकिन इससे इत्तर कड़वी सच्चाई तो यही है कि भटकने वाले युवाओं का ग्राफ काफी ऊपर है। शायद ही कोई ऐसा युवा होगा जो दावे के साथ कह सके कि उसकी जिंदगी में भटकाव वाला मोड़ कभी नहीं आया। हॉ,सच्चाई यह भी है कि समय के साथ परिपक्त होने पर कुछ युवा संभल जाते हैं और जो नहीं संभल पाते हैं, उनके पास ठोकरे खाने के अलावा कुछ नहीं बचता है। ऐसे भटके हुए युवा घर-परिवार के लिये तो मुश्किलें पैदा करते ही हैं समाज को भी इनसे खतरा रहता है। समाज में जो अपराध बढ़ रहा है उसके पीछे ऐसे ही भटके हुए युवा हैं, जिस देश की 65 प्रतिशत आबादी युवा हो, अगर वह गलत रास्ते पर चल पड़े तो उस देश को कोई बचा नहीं सकता है। यह बात हम-आप सोचते और समझते तो हैं, लेकिन इससे निपटने के लिये कभी उपाय नहीं तलाशे गये। अगर तलाशे भी गये तो वह सीमित  और कमजोर थे।</p>

संजय सक्सेना, लखनऊ

Advertisement. Scroll to continue reading.

युवा अवस्था में भटकाव लाजिमी है। कभी गलत संगत तो कभी बिगड़ी सोच के कारण युवा अपने मार्ग से भटक जाता है। ऐसा नहीं है कि पूरा युवा समाज ही भटकाव से जूझ रहा हो, ऐसे युवा भी हैं जो अपनी स्पष्ट और लक्ष्य भेदी सोच के कारण सही राह पर चलते हुए अपने कुल और देश का नाम रोशन करते हैं, लेकिन इससे इत्तर कड़वी सच्चाई तो यही है कि भटकने वाले युवाओं का ग्राफ काफी ऊपर है। शायद ही कोई ऐसा युवा होगा जो दावे के साथ कह सके कि उसकी जिंदगी में भटकाव वाला मोड़ कभी नहीं आया। हॉ,सच्चाई यह भी है कि समय के साथ परिपक्त होने पर कुछ युवा संभल जाते हैं और जो नहीं संभल पाते हैं, उनके पास ठोकरे खाने के अलावा कुछ नहीं बचता है। ऐसे भटके हुए युवा घर-परिवार के लिये तो मुश्किलें पैदा करते ही हैं समाज को भी इनसे खतरा रहता है। समाज में जो अपराध बढ़ रहा है उसके पीछे ऐसे ही भटके हुए युवा हैं, जिस देश की 65 प्रतिशत आबादी युवा हो, अगर वह गलत रास्ते पर चल पड़े तो उस देश को कोई बचा नहीं सकता है। यह बात हम-आप सोचते और समझते तो हैं, लेकिन इससे निपटने के लिये कभी उपाय नहीं तलाशे गये। अगर तलाशे भी गये तो वह सीमित  और कमजोर थे।

कल के भारत का भविष्य 20 से 30 वर्ष के जिन युवाओं के हाथ में हैं युवा आज हताश होकर घूम रहा है तो कल का भारत सशक्त हो ही नहीं सकता है। इसी हताशा में उसे कभी मोदी में आशा दिखती है तो कभी योगी में विश्वास नजर आता है। कभी अरविंद केजरीवाल अपना आईकॉन लगते है तो कभी नीतीश कुमार सुशासन बाबू नजर आते है। यहां तक तो सही रहता है, लेकिन जब इन युवाओं को बगदादी, बुरहावानी, अफजल गुरू, लादेन, जुनैद मुट्टू जैसे आतंकवादी आदर्श लगने लगते हैं तो फिर खतरा सामने खड़ा नजर आता है। ऐसे भटके युवा कभी धर्म के नाम पर बंदूक उठा लेते  है, तो कभी दूसरे धर्म का उपहास उड़ाते हैं। इनमें तमाम युवा ऐसे होेते हैं जिनको अपनी मंजिल तो पता होती है, परंतु उनका ब्रेनवाश करके आतंक के रास्ते पर भेज दिया जाता है। फिर तो इन्हें न अपने लक्ष्य की चिंता रहती है और न ही समाज के प्रति अपने दायित्व की। मगर ऐसे युवाओं को उनके हाल पर छोड़ देना भी तो सही नहीं है। यह बात पूर्ववर्ती सरकारों को भले ही न समझ में आई हों,लेकिन योगी सरकार को यह बात सौ दिनों के अंदर ही समझ में आ गई कि बिगड़े युवाओं को अगर सही राह पर ढकेल दिया जाये तो यह समाज और देश के लिये बेशकीमती हो सकते हैं। योगी सरकार ने इसके लिये एक रोड मैप तैयार किया है ताकि आतंकवाद की तरफ मुड़ गये युवाओं की घर वापसी हो सके।

Advertisement. Scroll to continue reading.

योगी सरकार सैद्वातिक रूप से आतंकी मानसिकता से ग्रसित युवकों को सही रास्ते पर वापस लाने के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के ‘डी-रेडिक्लाइजेशन’ (कट्टरता से बाहर निकालना) अभियान को कानूनी मान्यता देकर अल्पसंख्यकों को एक बड़ा तोहफा प्रदान करने जा रही है। दरअसल, खुफिया जांच एजेंसियों द्वारा समय-समय पर आतंक की राह पकड़ चुके कई युवाओं से पूंछताछ में यह बाज जाहिर हुई थी,कुछ युवाओं को अपनी करनी पर पछतावा था। कच्ची उम्र और अनुवभवहीनता के कारण यह युवा धर्म के ठेकेदारों और कट्टरपंथियों के हाथ की कठपुतली बन गये थे,जिसका इन्हें पछतावा भी हो रहा था। एटीएफ ने पूछताछ में यह भी पाया कि आतंकी संगठनों के गुर्गे आर्थिक रूप से कमजोर, भटके युवकों को कट्टर बनाने का प्रयास करते हैं। उनके अंदर नफरत के बीज बोकर आतंकी भावना भरने का प्रयास करते हैं। हाल ही में यूपी एटीएस ने ऐसे युवकों को वारदात में शामिल होने से पहले उनकी पहचान कर उनको सही राह पर लाने का अभियान शुरू किया था।

गौरतलब हो, पिछले पांच महीनों में तमाम प्रदेशों की पुलिस ने साझा अभियान चलाकरं चार आतंकियों के साथ संदिग्ध गतिविधियों में शामिल होने के इल्जाम में छह युवकों को हिरासत में लिया था। पूछताछ में युवकों को पथभ्रष्ट किए जाने की साजिश का पर्दाफाश हुआ था। मगर वे अपराध, आतंकी गतिविधि में शामिल नहीं पाए गए थे। इस पर एटीएस अधिकारियों ने युवकों पर निगरानी बनाए रखने के साथ छोड़ दिया। उसी समय एटीएस के आइजी असीम अरुण ने कहा था कि ‘युवकों के कट्टरता की जद में आने, राह भटकने के कारणों की पड़ताल कर उन्हें सही रास्ते पर लाने का प्रयास किया जाएगा। अपराधी, आतंकी पकड़ने में इनका इस्तेमाल नहीं होगा।’ एटीएस ने इस दिशा में प्रयास तेज किया। युवकों के परिवार, उनके मित्र और धर्म गुरुओं की मदद से उनकी काउंसिलिंग शुरू कराई जिसका नतीजा काफी सार्थक निकला।

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘डी-रेडिक्लाइजेशन’ यानी कट्टरता से बाहर निकालने के लिये ऐसे युवाओं को चिह्न्ति करकेे एटीएस अधिकारी लगातार संपर्क में रहते हैं। कुछ दिनों तक संबंधित को एटीएस कार्यालय बुलाकर बातचीत होती है। फिर बातचीत को साप्ताहिक और पाक्षिक में तब्दील किया जाता है। इस प्रक्रिया को गोपनीय रखा जाता है। एक साल तक संपर्क के बाद मुलाकात सीमित की जाती है। रोजगार का इंतजाम व विवाह के बाद माना जा सकता है कि वह कट्टरता के प्रभाव से बाहर निकल गया है। आईजी ने बताया कि पिछले दो महीने में 125 से अधिक लोग उनसे सम्पर्क कर चुके है। अभी तक सात परिवारों के किसी न किस सदस्य को मुख्य धारा से जोड़ा जा चुका।

आईजी एटीएस कहते है कि अगर किसी युवक के गुमराह होने की खबर मिलती है या उसकी गातिविधियां संदिग्ध दिखाई देती है तो उसकी उनके परिवार, मित्र, धर्मगुरूओं के साथ मिल कर काउंसलिंग कराई जाती है। कभी-कभी परिवार के लोग यह मानने को तैयार नहीं होते है कि उनका बेटा गलत रास्ते पर जा रहा है। ऐसे परिवारों को इसके लिए सुबूत दिखाए जाते हैैं ताकि परिवार उसे सही रास्ते पर लाने के लिए प्रेरित कर सके।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक संजय सक्सेना लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement