विश्वभर में आपसी सद्भाव, अनेकता में एकता के लिए विख्यात हमारा देश भारत अब नफरत और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए पहचाना जाने लगा है. बीते कुछ वर्षों में जिस तरह से देश के विभिन्न राज्यों में कथित गौ-रक्षा के नाम पर मुस्लिमो को मौत के घाट उतारा गया है उसने देश की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल किया है. इतना ही नही सोशल मीडिया से लेकर देश के एक विचारधारा विशेष के लोग इन्हें खुलकर समर्थन भी करते हैं. हालात यह हैं कि देश में मुस्लिम समाज इन आताताइयों से दहशत में है.
बीते दिनों यूपी के हापुड़ जिले के बझेडा खुर्द गाँव में अधेड़ उम्र के व्यक्ति कासिम खान को कथित गौरक्षको ने पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया, इतना ही नहीं पुलिस की मौजूदगी में नफरत फ़ैलाने वाले यह आतंकी तांडव करते रहे लेकिन पुलिस ने कार्यवाही करने तक की जहमत नहीं उठाई. कासिम पर कथित रूप से आरोप है कि वह गौकशी के लिए गाय लेकर जा रहा था, भीड़ ने उसे रोका और मुस्लिम नाम कन्फर्म होते ही उसे पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया.
इसी तरह बीते दिन झारखंड में तौहीद अंसारी नाम के व्यक्ति को गौ-मांस के आरोप में हिंदुवादियों ने पीटा और मौत के घाट उतार दिया, झारखण्ड में इससे पहले भी कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं लेकिन आज तक कोई कार्यवाही ऐसी नहीं हुई कि नफरत फैला रहे इन आतंकियों के लिए नजीर बन सके. कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली से सटे दादरी के पास बिसाह्डा गाँव तो याद ही होगा जहाँ मुस्लिम अख़लाक़ के घर फ्रिज में मांस रखा होने की सूचना पर कथित गौ रक्षकों ने तांडव किया और अख़लाक़ को मौत के घाट उतार दिया था.
घटना के बाद देशभर में बवाल मचा लेकिन आज तक कोई ठोस कानून ऐसे मामलों को रोकने के लिए नहीं बन सका. मुस्लिम होने के चलते हरियाणा में युवक की हत्या, अलवर में मुस्लिम अधेड़ की हत्या सहित यूपी में दर्जनों ऐसे मामले प्रकाश में आये लेकिन कुछ दिन हो हल्ला मचने के बाद गर्त में चले गए.
मोहब्बत और सद्भाव के लिए प्रसिद्द स्वामी विवेकानन्द के ‘वसुधैव कुतुम्ब्कमं’ के विचार को समाहित करने वाले भारत में ऐसे मामलों ने नफरत की खाई को बढ़ाने का काम किया है. धर्मनिरपेक्ष दल होने का डंका बजाने वाले नेता भी वोट बैंक के लिए हो-हल्ला मचाकर शांत हो जाते हैं लेकिन आज तक ऐसे मामलों को रोकने के लिए तत्पर दिखाई नही देते. सबा साथ-सबका विकास की बात करने वाले भाजपा और स्वंय पीएम मोदी भी खामोश हैं.
सवाल यही है कि डिजिटल इंडिया में देश को बदलने के दावों के बीच क्या भारत में मुसलमान होना गुनाह है ? क्या सिर्फ किसी भी इंसान को गौ-गौकशी करने के शक या गौमांस रखने के शक में मौत के घाट उतारना इंसानियत को शोभा देता है ? क्या किसी धर्म में किसी धर्म के लोगों का क़त्ल करना पुण्य का काम है ? सवाल उठते रहेंगे, उठते रहें हैं लेकिन हालात यही रहे तो देश को आजाद कराने वाले शहीदों के सपनो का भारत हम कभी नही बना पाएंगे, ऐसे मामलों को रोका नहीं गया तो देश एक बार फिर नफरत और धर्म आधारित आग में झुन्कता चला जायेगा. वक़्त के साथ सभी को एकजुट होकर देश की एकता अखंडता को बचाए रखने के लिए आगे आना ही होगा.
लेखक जियाउर्रहमान व्यवस्था दर्पण के संपादक हैं और ज्वलंत मुद्दों पर बेबाकी से लिखते हैं.
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