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दिल्ली

दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यानमालाः भक्ति काल ने संगीत, कला और और स्थापत्य को मज़बूत विरासत दी

दिल्ली। कुछ विद्वान पूरा का पूरा भक्ति काव्य आधुनिकता के साँचे में “कन्वर्ट ” कर देना चाहते हैं, जबकि भक्ति काव्य की विशेषता यह है कि उसमे आधुनिक भाव बोध से मेल वालीं बहुत सारीं बातें हैं पर सारा का सारा भक्ति काल आधुनिक नहीं हो सकता, किसी भी रूप में नहीं। सुपरिचित आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने ‘भक्तिकविता की प्रासंगिकता’ विषय पर व्याख्यान में कहा कि भक्ति काल की विशेषता संगीत, कला और और स्थापत्य को भी मज़बूत विरासत देने में है। वह केवल भजन कीर्तन नहीं है, उसने इन कलाओं -स्थापत्यों को पुनः संस्कारित किया, और इसी काल में शास्त्रीय संगीत  श्रेष्ठ ध्रुपद को नयी ऊंचाई मिली।

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दिल्ली। कुछ विद्वान पूरा का पूरा भक्ति काव्य आधुनिकता के साँचे में “कन्वर्ट ” कर देना चाहते हैं, जबकि भक्ति काव्य की विशेषता यह है कि उसमे आधुनिक भाव बोध से मेल वालीं बहुत सारीं बातें हैं पर सारा का सारा भक्ति काल आधुनिक नहीं हो सकता, किसी भी रूप में नहीं। सुपरिचित आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने ‘भक्तिकविता की प्रासंगिकता’ विषय पर व्याख्यान में कहा कि भक्ति काल की विशेषता संगीत, कला और और स्थापत्य को भी मज़बूत विरासत देने में है। वह केवल भजन कीर्तन नहीं है, उसने इन कलाओं -स्थापत्यों को पुनः संस्कारित किया, और इसी काल में शास्त्रीय संगीत  श्रेष्ठ ध्रुपद को नयी ऊंचाई मिली।

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डॉ. सिंह हिन्दू कालेज में दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भक्ति काव्य में जो अनुराग है वह मनुष्य और मानव समाज के प्रति है, ईश्वर के प्रति अनुराग भाव की भूमिका अपेक्षतया कम है। भाषा के सवाल पर उन्होंने कहा कि मौलिकता सदैव अपनी भाषा में विकसित होती है और आश्चर्य नहीं कि भक्ति काल के कवियों का मुख्य अलंकार “सहजयोक्ति” है। तुलसीदास की कविताओं को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कविता में जब कवि का त्रास व्यक्त होता है तब वह सचाई के बेहद करीब चली जाती है।

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उन्होंने आगे कहा तुलसी का शास्त्रीय ज्ञान उनके जीवन-बोध में बाधा की तरह है, शास्त्र – सम्मत बात करने के चक्कर में उनकी जीवनानुभव की अभिव्यक्ति बाधित हो जाती है। उन्होंने वेद और लोक मार्ग के भेद को बताते हुए कहा कि वेद के मार्ग पर जाने पर ही तुलसीदास की कविता पर सवाल खड़े होते हैं। आखिर में उन्होंने सूरदास की सामाजिक क्रांतिकारिता को सूरसागर के केवल पाँच पदों के सहारे खोलने की बेजोड़ कोशिश की।

व्याख्यान की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के आचार्य गोपेश्वर सिंह ने भक्ति काव्य की शक्ति को रेखांकित करते हुए कहा कि गांधीजी आधुनिक भारत में भक्ति साहित्य के राजनीतिक भाष्य हैं। उन्होंने कहा कि भक्ति काव्य स्वार्थ के धरातल से उठाकर मनुष्य को उदात्त बनाता है। आचरण के द्वैत से रहित भक्ति कविता को प्रो. सिंह ने नयी मनुष्यता की प्रस्तावना करने वाला साहित्य बताया। उन्होंने कहा कि विश्व भर में अकेली भक्ति कविता है जिसे ईश्वर की वाणी का दर्जा दिया गया और इस ऊंचाई पर वह कोरी धार्मिकता से रहित हो जाती है।

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इससे पहले हिन्दू कालेज के डॉ. रामेश्वर राय ने दीपक सिन्हा को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे ऐसे अध्यापक थे जो अध्यापन कर्म को गहरी निष्ठा से देखते थे। विभाग के प्रभारी डॉ. पल्लव ने अतिथियों का स्वागत किया। संयोजन प्राची तिवारी ने किया तथा मीडिया प्रभारी रंजीत कुमार यादव ने वक्ताओं का परिचय दिया। आयोजन में विभाग के अध्यापक और बड़ी संख्या में विद्यार्थी-शोधार्थी उपस्थित थे। इस अवसर पर सभा द्वारा लगाईं गई लघु पत्रिकाओं की प्रदर्शनी का विद्यार्थियों ने उत्साह से अवलोकन किया।

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