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सियासत

कोई ये क्यों माने कि भारत स्त्रियों का भी देश है?

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ज़माना लोगों से मिलकर बनता है। लोग घरों से निकलते हैं। घर जोड़ियों से बनते हैं, जोड़ियाँ स्त्री और पुरुष से मिलकर बनाती हैं। औरतें घरों में बंद रखते-रखते, कामकाज और बच्चों के बहाने बाहर रहते-रहते पुरुष को एकाधिकार महसूस होने लगा और वह स्त्री को दूसरा पहिया या आधा विश्व समझने की बजाय पुरुष की सेवा मनोरंजन और भोग विलास की वस्तु मानने लगा। पूरी तरह से और पूरी दुनियां के अधिकतर पुरुष वादियों को ये अहंकार हो गया कि सारे जानवर उसका पेट भरने, सब धातुएं उसके सजने और विनिमय को, सब औरतें उसकी सेवा भोग-विलास और मनोरंजन को और सब फसलें सब फल-फूल उसके स्वाद को बने हैं। यहीं से विनाश प्रारंभ हो गया।

एक तस्वीर जो पुरुष की क्रूर मानसिकता का वीभत्स नमूना है। जब ली गयी तब भले कहे जाने वाले तमाम पुरुष जूते पहने एकदम शव के करीब खड़े थे। एक वर्दीधारी पुरुष के हाथ में चादर तो थी किंतु वह चादर उस नोंची-भंभोड़ी-चबायी-खायी दौड़ा-दौड़ा कर मार डाली गयी बलत्कृत स्त्री देह पर डाली नहीं गयी क्योंकि तब वीडियो बन रहा था फोटो खींचे जा रहे थे। ये फोटो जिसने खींचे उसने पूरे संसार के सामने ज्यों के त्यों परोस डाले। हर तरफ बहता रक्त और रक्त-रंजित निर्वस्त्र स्त्री की बलत्कृत “लाश।” पुलिस कार्यवाही और यथा स्थिति पाई गयी की सूचना रिकॉर्ड के फाईल के सिवा “उस निर्वस्त्र स्त्री शव” को कहीं भी परोसने से पहले उस पर एक चिथड़ा भी डालना न फोटो अपलोड करके बांटने वाले मीडिया को जरूरी लगा, न साईबर कानून का पालन करवाने बैठी सभ्य दुनियाँ को और न ही शेयर कमेंट और आक्रोश दिखाने वालों को। एक “चिथड़ा” तक नहीं बचा ज़माने के पास औरत की नोची-भंभोड़ी बलत्कृत लाश का तमाशा बनाने से पहले क़फ़न तक डालने को? ये नमूना है लोगों की संवेदनहीनता का। एक माँ जो जन्म देती है, पेट में नौ महीने रखकर उस तक ने कपड़ों में ढँकने के बाद कभी न देखी, जो देह चाँद तारे हवा पानी से भी पूरी बेपरदा नहीं रही। जिसे कोई प्रेमी जोड़ा बनने पर भी पूरी रौशनी में नहीं देख पाता। उस काया की ये दुर्गति? पहले अपहरण फिर गैंग-रेप फिर रक्तपात के दौरान बर्बर क्रूर अत्याचार और फिर हत्या। फिर सारी दुनियाँ ने क्रूर मनोरंजन तमाशा बनाने के लिये उस निर्वस्त्र स्त्री के चित्र का वितरण किया? देखो-देखो ये है भारतीय संस्कृति सभ्यता प्रगति विकास शिक्षा कानून व्यवस्था सहिष्णुता अहिंसा बंधुत्व धार्मिकता स्त्रीपूजक चरित्र का एक नमूना?

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उस परिवार पर क्या बीत रही होगी ये चित्र, वीडियो देखकर इसकी किसी को कोई परवाह नहीं। देश की आधी आबादी घृणा और दहशत की किस मानसिकता से गुज़र रही होगी कोई परवाह नहीं। पूरा विश्व भारतीय स्त्री के प्रति भारतीय पुरुषों के चरम क्रूर व्यवहार का मॉडल देख रहा है, इसकी भी कोई परवाह नहीं।

निर्भया के रेपिस्ट और हत्यारे जिंदा हैं। बदायूँ के भी और गाजियाबाद की मजदूर कन्या के भी? जब तक बलात्कारी हत्यारे जीवित हैं। किसी स्त्री को यह मानने का कोई कारण नहीं कि भारत स्त्रियों का भी देश है? यहाँ स्त्री खबरों तमाशों मनोरंजन ब्लैकमेलिंग विज्ञापन और दासता की वस्तु है। झूठ लिखते और कहते हैं लोग स्त्री सम्मान की बातें। एक पूरी जंग बकाया है काले गोरे की लड़ाई की तरह। बलात्कार कविता कहानी फिल्म चटुकुलों समाचार चित्र गालियों अफवाहों के बहाने करता पुरुष समाज हर बार दोषी स्त्री को ही ठहराता है। कभी अपना मन नहीं टटोलता कि एक सुंदर स्त्री अकेली देर रात एकांत में कहीं किसी भी कारण से उसके आस पास हो तो वह स्त्री जो कि पुरुष देखकर डर जाती है के प्रति उस नर की भावना क्या क्या होती है? क्या उसको सुरक्षा देते हुये घर तक पहुँचाने की?

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मान लो कि वह घर से ही किसी अमानुष से अत्याचार से भागकर मरने निकली हो? जैसा कि छतरपुर के एक पैंसठ साल बाबा ने चौदह साल की पोती पर किया तो? या वह पति ने धकेल कर घर से फेंक दी हो? या वह कहीं किडनेप थी और छूटकर भाग रही हो? या वह कहीं वेश्यालय के चंगुल से बच निकली हो? या वह मजबूर कहीं परिजन की दवा की तलाश में ही निकली हो? टटोलो अपना मन कि एक अकेली स्त्री कम वस्त्रों में, स्त्री रात को एकांत में बस रेलगाड़ी स्टेशन ऑफिस घर या बाहर की स्त्री देखकर, खुद की शराफत का ढिंढोरा पीटने वाले सभ्य पुरुषों में से बहुत सारों की प्रथम प्रतिक्रिया क्या होगी? वह पहली प्रतिक्रिया हर औसत स्त्री की यही है कि वह पुरुष के आसपास अकेली होते ही डर जाती है। ये डर ही पहचान है औसत भारतीय पुरुष के औसत चरित्र के आचरण की। हर आयु की स्त्री एकांत में अक्सर किसी भी पुरुष के आसपास भयभीत और आशंकित महसूस करती है एक पशु अपनी नस्ल के बीच महफूज रहता है किंतु एक स्त्री नरमानव देखकर डरने लगी है! कहना सुनना सब बेकार है हृदय पर हाथ रख कर कहो कौन-कौन अपनी मानसिक क्रूरता बदलने को तैयार है? बलात्कार अब एक समाचार है बस्स! कल एक औरत वहां परसों एक बच्ची वहां, तरसों एक लड़की वहां, अतरसों एक बूढ़ी औरत वहां। वह निर्वस्त्र बलत्कृत लड़की उस परिवार की पीड़ा नहीं इस पूरे समाज के मानसिक स्तर की लुटी नोची-भंभोड़ी गयी लाश है। संवेदना की लाश, मानवता की लाश, पुरुष पर स्त्री के भरोसे की लाश, मानव पर मानव के दैहिक संबंध की लाश। प्रेम और प्रणय जैसे प्राकृतिक भावों की लाश। संस्कृति सभ्यता कानून अनुशासन चरित्र आचरण और धर्म भाईचारे की लाश। कोई जानता है लड़की की जाति, मजहब प्रांत? यह केवल भारतीय स्त्री के प्रति एक देशवासी के बरताव की ही लाश नहीं लज्जा शर्मोहया आबरू जैसे शब्दकोश की भी लाश है। खूब शेयर कीजिये ताकि लाशों का कारोबार जारी रहे और फिर कोई दरिंदा गर्व करे क्रूरता पर, यही जब सोच है तो लड़कियों को लोहे के बारूद के कपड़े पहनाओं क्योंकि ये कपड़े तो कफन तक नहीं ढँक सकते।

हम सब भारतीय स्त्रियाँ लज्जित हैं उस प्रकृति और परमेश्वर की क्रूरता पर जिसने स्त्रियाँ बनाकर भारत भेजना अब तक बंद नहीं किया। एक वर्दीधारी पुरुष के हाथ में चादर तो थी किंतु वह चादर उस नोंची भंभोड़ी चबायी खायी दोड़ा दौड़ा कर मार डाली गयी बलत्कृत स्त्री देह पर डाली नहीं। क्योंकि तब वीडियो बन रहा था फोटो खींचे जा रहे थे। ये फोटो जिसने खींचे उसने पूरे संसार के सामने ज्यों के त्यों परोस डाले। एक चिथड़ा तक नहीं बचा ज़माने के पास औरत की बलात्कृत लाश का तमाशा बनाने से पहले। ये नमूना है लोगों की संवेदनशीलता का। जब तक बलात्कारी हत्यारे जीवित हैं। किसी स्त्री को यह मानने का कोई कारण नहीं कि भारत स्त्रियों का भी देश है। थू है ऐसे पौरुष पर जो लड़कियों का मन, वचन या कर्म से, हँसते हुए या क्रोध में, दिन में या रात में, देश में या विदेश में, छिपकर या सार्वजनिक, शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार से शोषण, कमतरी, निरादर, छल या धूर्तता करता है। इसे राजनैतिक रंग देने वाले, अपने घरों में या अपने जीवन में, अपनी या पराई किन्हीं भी महिलाओं से रत्ती-भरभी छल करने वाले स्त्री-पुरुष इस कुत्सित पाप के बराबर के भागीदार हैं। अपने-अपने गिरेबान में झाँक कर देख लीजिए।

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सबसे अपरिपक्व बुद्धि किसे पहचान पाती होगी। अब हर समय हर किसी के पीछे गार्ड नहीं रह सकता और न ही घर के लोग सब छोड़ कर पीछे चल सकते हैं। न ही घर में बिठाये रखा जा सकता है। लाख बहादुर और दबंग बना दिया जाये उन्हें परन्तु जब पाँच पुरुष घेर लें तो? परन्तु इस रोने का रोने से तो हल नहीं निकलेगा। सबसे पहले सुधार की शुरुआत अपने ही लाडलों से करनी होगी। यदि लड़की को नैतिक शिक्षा का पाठ घुट्टी में पिला दिया जाता है तो लाडले को भी मात्र सन्तान समझते हुए नैतिक शिक्षा के पाठ का व्यवहारिक ज्ञान भली भांति देना होगा। कानून, प्रशासन, सरकार ये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। परन्तु पहल हम घरों में तो करें। हो सकता है मेरा सोचना गलत हो परन्तु और कुछ सूझ भी तो नहीं रहा। हर दिन एक ही घटना सुनाई दे रही है। तो कहीं तो गड़बड़ी है। या ये कुछ पुरुष के रेयर गुण-सूत्रों का विकार है या कुछ और अथवा कोई और कारण। या…सबसे बेहतर मस्त राम मस्ती में, आग लगे बस्ती में। आओ हम फिर प्यार, मोहब्बत, इश्क़ की शान में कसीदे पढ़ें। कौन सा हमारे साथ कुछ होने जा रहा है। हम तो अपनी टोयटा या ऑडी में बैठेंगें और ये जा, वो जा। क्लब में तीन पत्ती खेलेंगें। आओ ट्विस्ट करें, प्यार का मौसम।

जब श्री कृष्ण भगवान ने प्राग्जोतिष्पुर (कामरूप) के आतताई राजा भौमा सुर, जिसने अपने कैद खाने में देश विदेश से अपहरण करके लाई गयी सोलह हजार युवतियों को कैद करके रखा था और वे युवतियाँ जहाँ रहती थी वह स्थान धरती पर नर्क के समान था जिसके कारण भौमासुर का एक नाम नरकासुर भी पड़ गया था। कृष्ण ने युद्ध में उसे मारा, तो उन महिलाओ ने कहा कि, जब तक भौमासुर जीवित था तब तक वे उसकी रक्षिताएँ थी अब उसकी मृत्यु के बाद वे कहाँ जाएँ? उनके पास अब केवल आत्महत्या का रास्ता ही बचा है। कृष्ण ने उनके परिवार वालों को बुलाया पर वे उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्होने राज्य के लोगों से आग्रह किया कि वे उनसे विवाह कर ले पर कोई पुरुष आगे नही आया और अंत में कृष्ण जी ने उन सोलह हजार स्त्रियों से स्वयं विवाह किया ताकि वे समाज में श्री कृष्ण की पत्नी के रूप में सम्मान से जी सकें। ये वही श्री कृष्ण थे जिन्होने गीता का ज्ञान दिया था और उस गीता के ज्ञान पर हर भारतीय पूरे विश्व के समक्ष गर्व से सिर उठा कर खड़े हैं।

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क्या किसी व्यक्ति के विचारों को केवल महिमामंडित करके हम महान हो जाते है या होने का दावा कर सकते हैं, उन्हे आचरण में उतारने की आवश्यकता नहीं समझते हैं? रोज ही फेसबुक राधा कृष्ण के चित्रों से भरी रहती है। ऑन लाइन देखते ही लोग जै श्री कृष्ण भी कहने लगते हैं, आज अपने विचार प्रकट करे अन्यथा कृष्ण का जाप करना छोड़ दें। फिर शर्मशार हुई मानवता, फिर शर्मशार हुआ यूपी टाइप बातें सुबह से पढ़ रही हूँ। इतनी भयानक घटनाएँ हो चुकी हैं अब तक शर्मशार होने की आदत पड़ जानी चाहिए। इतना शर्मशार होकर ना जताएं कि बड़ी फिक्र है आपको हमारी। कितना बदल गए हैं आप शर्मशार होकर? क्या आप अपने आस-पास की स्त्रियों के लिए सचमुच थोड़ा बदल गए हैं? या आप मृतक की नंगी देह का फोटो लगाकर सिर्फ शर्मिदा हो रहे हैं। क्या वाकई आपको लगता है समाज में सब ठीक है? क्या अब भी मानते हैं कि बलात्कार के कानून नरम होने चाहिए, डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट कमजोर बनाने की साज़िश सही है। बंद करो ये नौटंकी कि आप सचमुच शर्मिंदा हैं अगर आप जरा भी नहीं बदले। लोग कमेंट कर रहे हैं क कि नेता की माँ बहिन बेटी खीच लो? बलात्कारी की माँ बहिन बेटी खींच लो? कोई नहीं कह रहा कि बलात्कारी को खींच लो और बलात्कार का समर्थन करने वाले को खीच लो और खीच लो उन सबको जो जो स्त्री के हक मारकर वापस कैद करके दास प्रथा कायम करके भोगवाद को बढ़ावा देते है। इनको उनको सबको अंततः दंड देने का जरिया बहिन बेटी माँ ही नजर आती है?

-सुधा राजे

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