आजकल बनारस सुर्खियों में है… बनारस को लेकर रोज कोई न कोई घोषणा सुनने को मिल रही है…. ऐसा होगा बनारस… वैसा होगा बनारस… पर न जाने कैसा होगा बनारस…. सब कुछ भविष्य के गर्भ में है…. पर दीपंकर की कविता में आज के बनारस की तस्वीर है…. दीपंकर भट्टाचार्य कविता लिखते हैं… दीपांकर कविता फैंटसी नहीं रचतीं बल्कि बड़े सीधे और सरल शब्दों में समय के सच को हमारे सामने खड़ा कर देतीं हैं…. दीपांकर के शब्दों का बनारस हमारा-आपका आज का बनारस है जिसे हम जी रहे है… आप भी सुनिए उनकी कविता…
अब काशी बन जाई जापान?
–दीपंकर भट्टचार्य–
बनारसी कुल थूकिहन सगरो
घुला के मुंह में पान,
का ई सुनत बानी,
अब काशी बन जाई जापान?
जब देखा तब बिजली रानी,
कहीं घूम के आवत बानी,
मुंह चिढ़ा के चल जाई पानी,
बनल हौ भुतहा घर-दुआर,
उपर से रेगिस्तान,
का इ सुनत बानी,
अब काशी बन जाई जापान?
शहर क आधा रोड खनल हौ,
सगरो कूड़ा भरल-पड़ल हौ,
नरिया के उपर हलुवाई,
छानत हौ पकवान।
का ई सुनत बानी,
अब काशी बन जाई जापन?
गजब हौ भागम-भाग सड़क पर,
कब न दुपहिया मार दे टक्कर,
जरको चुकबा, जइबा उप्पर
जइसे रोड इ नाही, कउनो
रेस क हौ मैदान
का इ सुनत बानी,
अब काशी बन जाई जापान?
लगल हौ सगरो खुमचा-ठेला,
खूब बिकत हौ अंडा-केला,
जम में ला फिन घन्टन झेला,
बिचवें में फॅंस गयल हौ मुर्दा,
पहुंची कब श्मशान?
का इ सुनत बानी,
अब काशी बन जाई जापान?
प्रस्तुति : भाष्कर गुहा नियोगी, बनारस.
Comments on “बनारसी कुल थूकिहन सगरो घुला के मुंह में पान, का ई सुनत बानी अब काशी बन जाई जापान?”
This poem I have written about the present situation of our city Varanasi, about the traffic problem and the leavings on the streets here. I wrote this poem just to draw attention of the people about these problems.
Deepankar Bhattacharya
The Poet