नई दिल्ली। सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय को तिहाड़ जेल में छह महीने से अधिक हो चुके हैं। इन छह महीनों में उनकी रिहाई की संभावनाएं कई बार बनीं और औंधे मुंह गिरीं। अब जैसै-जैसे दिन बीतते जा रहे है ये कहना मुश्किल होता जा रहा है कि वो सुप्रीम कोर्ट की शर्त के अनुसार अपनी रिहाई के लिए सेबी को 10,000 करोंड़ रुपए दे भी पाएंगे या नहीं।
सहारा के सूत्र बताते हैं कि ऐसा नहीं कि कंपनी के पास पौसा नहीं है, मसला रॉय की वर्तमान स्थिति का है। उनको मजबूरी में अपनी मुल्यवान संपत्तियों को बेचना पड़ रहा है, इस कारण उन्हे अच्छे दाम भी नहीं मिल रहे हैं। भला कौन व्यापारी अपनी कीमती संपत्ति को औने-पौने दाम में बेचना चाहेगा।
रॉय और उनके साथ बंद सहारा के दो निदेशकों, अशोक रॉय चौधरी और आरएस दुबे, के मामले में कुछ बातें ऐसी है जिनकी दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है। तकनीकी रूप से 10,000 करोड़ रुपए ज़मानत राशी नहीं है। रॉय को ज़मानत तो पांच महीने पहले ही दे दी गई थी लेकिन इसके लिए कोर्ट द्वारा 10,000 करोड़ रुपए देने की पूर्व-शर्त रख दी गयी। कानूनविद कहते हैं ज़मानत के लिए ये एक असाधारण पूर्व-शर्त है।
रॉय तथा सहारा के दो निदेशकों पर जो आरोप लगाए गए हैं वो बहुत स्पष्ट नहीं हैं। राय ने मां की बीमारी के कारण सुप्रीम कोर्ट के सामने उपस्थित होने में असमर्थता ज़ाहिर की थी, अगर ये अदालत की अवमानना का मामला है तो रॉय ने उस अपराध के लिए नियत अधिकतम सज़ा, छह महीने, पूरी कर ली है।
सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना है बहस इस बात पर होनी चाहिए कि वर्तमान परिश्थितियों में किसी व्यक्ति को जेल में रखने की उचित समय सीमा क्या है या के कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट अधिनियम में दी हुई छह महीने की सज़ा यहां लागू होती है। संविधान का अनुच्छेद 21 व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा ही वंचित किया जा सकता है।
कुछ कानूनविदों के अनुसार राय के मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है। एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता के अनुसार रॉय को निरंतर हिरास में रखा जाना संविधान में दिए जीवन के अधिकार का उल्लंघन है और सर्वोच्च अदालत में उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दायर करने का आधार है।
अब प्रशन ये है, क्या रॉय को तब तक हिरासत में रखा जाए जब तक वो 10,000 हज़ार करोड़ रुपए जमा नहीं कर देते। या फिर रॉय को समुचित सुरक्षात्मक उपायों के साथ संपत्तियों के सौदे के लिए रिहा कर देना चाहिए और पैसा जमा करने के लिए एक समय सीमा निश्चित कर देनी चाहिए।
गौरतलब है कि रॉय इस वर्ष 4 मार्च से तिहाड़ जेल में बंद हैं।
arun srivastava
October 9, 2014 at 9:08 am
ऐसा लगता है की कोर्ट भी हठवादी रवैया अपनाये हुए है ….
Adarsh
October 9, 2014 at 1:28 pm
Ye sahara ke kisi chamche ne likha hai kya? Subrat rai ko to sari umr jail ki salakhon ke pichhe hi bitani hogi.