Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

एनडी तिवारी मर गए लेकिन सोशल मीडिया पर जिंदा हैं, कोई शैतान कहे तो कोई महान बताए!

Satyendra PS : नारायण दत्त तिवारी नैशनल हेराल्ड के अमेरिका में संवाददाता थे। जॉन एफ केनेडी के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले लिंडन बेन जॉनसन का पहला इंटरव्यू नारायण दत्त तिवारी ने लिया था। 1947 में तिवारी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। वह समाजवादी आचार्य नरेंद्र देव के शिष्य थे।

1952 में पहला विधानसभा चुनाव नैनीताल से सोशलिस्ट पार्टी से लड़े और कांग्रेस लहर में भी वह विजयी रहे। विधानसभा में सबसे कम उम्र के विधायक बने। एक आम परिवार से उठकर सत्ता की ऊंचाइयां छू लेने वाले नारायण दत्त तिवारी की जिंदगी लोकतंत्र की सफलता की मिसाल है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

(अमर उजाला अखबार में अच्युतानंद मिश्र ने बढ़िया लिखा है, जिसमें तमाम नई चीजें जानने को मिलीं। इस आर्टिकल में मिश्र जी ने तिवारी के सम्मान में अनेक बार तिवारी जी लिखा है जो अखबारों की सामान्य परम्परा नहीं रही है। तिवारी अपने आप मे सम्मान है, यह कोई ओबीसी एससी या इन्टरमिडीएट्री जातियों की टाइटल की तरह गाली नहीं है। जी जी जी से थोड़ा संदेह होता है कि कहीं जय जय में तथ्यात्मक गड़बड़ियां न हों)

तिवारी के सैक्सुअल छीछालेदर को अलग कर दिया जाए तो उनके कार्यों, उनकी निष्ठा, ईमानदारी पर कोई उंगली नहीं उठती। हालांकि सैक्सुअल छीछालेदर में भी उन्होंने किसी से जोर जबरदस्ती किया हो, ऐसा मामला सामने नहीं आया है। एजेंसी में खबर चल रही थी कि कल ही तिवारी का जन्मदिन था और कल ही वह इस दुनिया से कूच कर गए। भारतीय राजनीति की इस विलक्षण प्रतिभा को विनम्र श्रद्धांजलि।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Mukesh Kumar : बड़े, बुजुर्ग पत्रकार कह रहे हैं तो हो सकता है उसमें से कुछ सही भी हो, मगर मेरा तज़ुर्बा कोई अच्छा नहीं था तिवारी जी के साथ। वे केंद्रीय मंत्री थे और मैं दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले किसी कार्यक्रम के लिए उनका इंटरव्यू लेने गया था। पहला सवाल करते ही उन्होंने कैमरा की तरफ मुखातिब होते हुए देश की जनता को नमस्कार किया। मैं उनकी सादगी और भोलेपन पर धन्य हो गया (कुर्ते के नीचे से लटकता नाड़ा उनकी सिधाई पर चार चाँद लगा रहा था, जिसे मैंने उनके सहायक से कहकर बाद में अंदर करवाया)।

हालाँकि ये पता था कि एडिटिंग में इसे अलग करना पड़ेगा। फिर मैंने जितने भी सवाल किए एक का भी संतोषजनक उत्तर वे नहीं दे पाए। बहुत कुरेदा मगर मजाल है कि वे कुछ ढंग का बोल दें। इधर-उधर की लपेटते रहे, जो कि अधिकांश पंडितजी करते हैं। मुझे लगा कि मैं एक ऐसे भोंदू नेता से बात कर रहा हूँ जिसे कुछ नहीं पता मगर जो पता नहीं किन वजहों से सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया। हो सकता है ये उस समय की राजनीति की दरिद्रता हो या उस पर हावी ब्राम्हणवाद।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लब्बोलुआब ये कि जिस महानता के गुणगान भाई लोग कर रहे हैं उसके दर्शन मुझे क्षण भर के लिए भी नहीं हुए। फिर जब उनके कुकर्मों का भंडाफोड़ होना शुरू हुआ तो उस सादगी और विनम्रता से भी मोहभंग हो गया जिसके चर्चे सब लोग कर रहे हैं। बाक़ी उनकी आत्मा को शांति मिले।

वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र पी सिंह और मुकेश कुमार की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement