आशीष कुमार अंशु-
इसे चालाकी नहीं तो और क्या कहा जाए? एक बड़बोले यू ट्यूबर के बयानों को पकड़ लिया और फिर उसके बाद एक के बाद एक तीन वीडियो बना लिए। इस तरह चार बातें जो उसने गलत कहीं, उसपर पूरी वीडियो को केन्द्रित करके, उन बातों पर भी अपने दर्शकों की सहानुभूति इकट्ठी कर ली, जो संभवत: वीडियो में सही कही गई है।
यदि अजीत अंजुम किसी बात को गलत ठहरा रहे हैं। यह जानकारी गलत है तो उनकी जिम्मेवारी नहीं बनती कि वे सही जानकारी अपने दर्शकों के सामने प्रमाण के साथ रखें। सिर्फ इतना कह देने से जानकारी गलत है, बात कैसे बनेगी? प्रमाण भी तो देना चाहिए। सही जानकारी भी तो देनी चाहिए।
वे मैथिल ब्राम्हण नहीं है। यह बताया उन्होंने, फिर कौन जात हैं? जब चुनावी कवरेज के दौरान गांव गांव जाकर वे मतदाताओं से उनकी जात पूछ सकते हैं तो अपनी जाति क्यों नहीं बता रहे? ऐसी कौन सी जाति है उनकी, जो बताने में वे शर्मिन्दा हो रहे हैं। यदि वे दूसरों से जाति नहीं पूछ रहे होते तो यह प्रश्न उनके लिए भी नहीं होता।
अजीत अंजुम ने ही बताया कि उनपर केन्द्रित वीडियो डिलीट हो चुका है। उन्होंने माफीनामे का जिक्र नहीं किया। क्या अब उस पर एक और वीडियो बनाएंगे?
उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी पर यू ट्यूबर ने चर्चा की। अजीत ने जवाब दिया कि वह वाली गाड़ी उनके पास नहीं है, जिसका जिक्र यू ट्यूबर ने किया था तो ऐसे में बताना चाहिए कि उनके पास कौन सी गाड़ी है? पत्रकारिता करते हुए पारदर्शिता सबसे चाहिए फिर इतनी छोटी सी डिटेल को वे ‘छुपा’ क्यों रहे हैं?
अजीत अंजुम ने अपनी ड्राइंग रूम रिसर्च में पाया कि जिसने उनकी कथित सच्चाई को उजागर करते हुए एक वीडियो बनाया है, वह भाजपा समर्थक था। उन्हें भी तो बताना चाहिए कि वे किसके समर्थक हैं? पूरे कॅरियर में अब तक सोनिया गांधी की आलोचना में उनका एक वीडियो नहीं मिलता। उन्होंने अपने कॅरियर का लंबा हिस्सा राजीव शुक्ला के साथ बिताया है।
राजीव शुक्ला के साथ काम करने को लेकर कोई शर्मिन्दगी है मन में या उनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा, यह अजीत अंजुम को बताना चाहिए। बीजेपी और मोदी पर अनगिनत वीडियो बनाए हैं उन्होंने। उनका राजनीतिक झुकाव किस ओर है, यह बताने में इतनी ‘शर्म’ क्यों?
पिछली पोस्ट में अजीत अंजुम के आईटीआर की चर्चा की थी मैने। सबसे नए वाले वीडियो में ITR छोड़िए, अपनी कमाई का जिक्र तक नहीं किया उन्होंने। उनकी आमदनी कितनी है, उस संबंध में सही-सही जानकारी सार्वजनिक करने में इतना संकोच क्यों है? उत्तर प्रदेश विधान सभा में सभी होटलों के बिल जब उन्होंने अपने मोबाइल से पेय किए हैं फिर उन बिलों को सार्वजनिक करने में इतनी देरी क्यों हो रही है उन्हें? अपनी आमदनी को लेकर क्या वे कुछ छुपाना चाह रहे हैं?
उनके वीडियो को देखकर लग रहा है कि एक यू ट्यूबर की वर्चुअल बलि लेकर खुद को इस वर्चअल दुनिया में वे पाक साफ साबित करने की मुहिम में लगे हुए हैं। क्या वे कामयाब होंगे? मुझे संदेह है कि जब तक वे सिर्फ खुद की सफाई में बयान देंगे और जो सच है, उसे पब्लिक के सामने प्रमाण के साथ नहीं रखेंगे, उनकी सफाई संदिग्ध ही मानी जाएगी।
नोएडा में उनका घर नहीं है, यह बताया उन्होंने। उन्हें बताना चाहिए कि कहां है उनका घर और किस बिल्डर से यह घर खरीदा उन्होंने। बातें तो बिल्डर को लेकर भी हो रही है। जिस बिल्डर से घर लिया था, उसे पूरी कीमत दी थी या न्यूज 24 में होने की घुड़की देकर, घर के वास्तविक कीमत से कम पर उसे खरीदा? यह सब सवाल तो है। लेकिन वे इन सवालों के जवाब नहीं दे रहे। क्या उन्हें खुद को ‘ईमानदार’ भी साबित करना है और ईमानदारी ‘केजरीवाल’ जैसी रखनी है? अजीतजी अपने घर के अंदर बाहर का एक वीडियो ही एक दिन शेयर कर दें, उसी घर का जहां रवीश का इंटरव्यू किया था। शेष आपके कांग्रेस और आम आदमी पार्टी वाले दर्शक ही तय करें कि वह पेंटहाउस है या नहीं? भाजपा वालों के बयान को तो आप मिनटों में ‘षडयंत्र’ साबित कर देंगे, इसलिए उनके नाम का उल्लेख नहीं किया।
इतना बच-बच के सफाई क्यों दे रहे हैं अजीत अंजुम, सफाई भी देनी है और जिसे वे सच कह रहे हैं उसका प्रमाण भी नहीं दे रहे फिर बात कैसे बनेगी? यदि सारा सच उन्हें कोर्ट में ही बताना है फिर तीन तीन वीडियो बनाकर वे क्या ‘पीएम मोदी से नफरत’ करने वाले अपने दर्शकों की सहानुभूति इकट्ठी कर रहे हैं?
अजीत अंजुम सिर्फ सफाई दे रहे हैं, अपनी बातों का प्रमाण नहीं…
सफाई पर सफाई दे रहे हैं लेकिन अपना आईटीआर सार्वजनिक नहीं कर रहे। यदि सारी कमाई यू ट्यूब से ही हो रही है तो आईटीआर सार्वजनिक कर दीजिए अजीत अंजुमजी। समाजवादी पार्टी से जुड़े एक युवा नेता ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी के लिए दौरा कर रहे थे। उनकी रिपोर्ट से भी 2022 में लग रहा था कि वे सपा के लिए ही घूम रहे थे। युवा नेता ने कहा कि कैश—काइंड का पता नहीं। उसने यह भी कहा कि यदि मेरी बात पर विश्वास ना हो रहा हो तो उनकी रिपोर्ट गवाही दे देगी। मैने उस दौरान तीन चार रिपोर्ट देखी थी उनकी, यह देखकर दुख हुआ कि वह युवा नेता सही कह रहा था। अजीतजी पूरी तरह सपा की तरफ झुके हुए थे, जैसे रवीश कुमार अपने भाई के प्रेम कांग्रेस की तरफ बहे जा रहे हैं। इतना बह रहे हैं कि राहुलजी की चाटुकारिता के लिए उनके प्रेस कांफ्रेन्स में खुद मोबाइल हाथ में लेकर रिकॉर्डिंग करते हैं फिर भी राहुल गांधी का इंटरव्यू उन्हें नहीं मिल पाता है।
अजीत अंजुम कितनी भी सफाई दे दें लेकिन उनकी लेन देन की कहानियां दिल्ली एनसीआर में खूब सुनी—सुनाई जाती हैं। वर्तमान में अजीतजी का आईटीआर नोएडा के बड़े—बड़े संपादकों से अधिक है। इस कमाई के पीछे की बड़ी वजह भाजपा से उनकी नफरत हैं। उनकी कमाई में बड़ा योगदान उनकी ‘नफरत’ का है। उनकी रिपोर्टिंग से भी यह बात साबित होती है क्योंकि वे भारतीय जनता पार्टी के विरोध में रिपोर्ट करते हैं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने भाजपा का विरोध करके किसी तरह की अच्छी पत्रकारिता का परिचय दिया है। वे निष्पक्ष नहीं हैं। उनकी पत्रकारिता का इतिहास है कि वे 2014 से पहले भी भाजपा से नफरत ही करते थे। इस तरह उनकी स्वाभाविक नफरत के बदले उन्हें कहीं से अच्छी रकम मिलती है तो वे क्यों कोई भी लेने से क्यों मना करेगा? अपनी पत्रकारिता के पूरे इतिहास में सोनिया गांधी की आलोचना में अजीत अंजुम और रवीश कुमार ने कोई रिपोर्टिंग की हो तो सार्वजनिक कर दें। उन्हें मिलेगा नहीं। रीढ़ का चाहे दावा कितना भी कर लें। उनकी रीढ़ पैसों की नींव पर टीकी है। जिसमें पत्रकारिता की कोई भूमिका नहीं है। वे नट और भाट की तरह पत्रकारिता के नाम पर कर्तब दिखाकर पैसे कमा रहे हैं। इसी पैसे की ताकत पर वे इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं।
वे अपनी सफाई में होटलों की कहानी सुना रहें हैं। देखकर भी हंसी आ रही थी। उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनावों के दौरान यदि उन्होंने सभी होटलों में पूरे पैसे दिए हैं। वह सारा रिकॉर्ड सार्वजनिक कर दें। कहां कहा रूके। कितना बिल बना? उन्होंने आनलाइन पेमेंट की होगी। बिल की कॉपी सार्वजनिक कर दें। जिससे इस अफवाह को विराम मिले कि उनके होटलों की बुकिंग कोई और करता है। वे बता रहे हैं कि वे खुद अपने मोबाइल से पेमेंट करते हैं। यहां सवाल उठता है कि बात बात पर प्रमाण मांगने वाले अजीत अंजुम अपने मामले में प्रमाण क्यों नहीं देना चाहते?
अजीत अंजुम निजी टिप्पणियों पर इतने आहत हो गए हैं। उनके ही चैनल पर एक कथित किसान ने कहा था कि मोदी यदि हमारे बीच आ गया तो जिन्दा नहीं जाएगा। अजीत इस फुटेज को संपादित कर सकते थे लेकिन उन्होंने नहीं किया। आज तक इसे चलाने के लिए उन्होंने ना माफी मांगी और ना ही शर्मिन्दा हुए।
अजीत अंजुम के परिवार पर कोई टिप्पणी कर दे तो इतने नाराज हो जाते हैं कि राजेन्द्र यादव जैसे वरिष्ठ साहित्यकार के घर पहुंच जाते हैं और देश के प्रतिष्ठीत प्रकाशन संस्थान को प्रकाशित किताब के बीच से पन्ने निकालने तक को मजबूर कर देते हैं। जबकि प्रधानमंत्री मोदी के वैवाहिक जीवन पर उनके यू ट्यूब चैनल पर कोई आसानी से अनर्गल टिप्पणी करके जा सकता है। वे आलोचना तक नहीं करते। क्या अजीत अंजुम अपने वैवाहिक जीवन और परिवार के संबंध में कुछ अनर्गल बोलते हुए किसी को सुनकर सहज रह पाएंगे। यदि सामने वाला सारी बातें तथ्यात्मक तौर पर सही बोले तब भी। वे तो राजेन्द्र यादव जैसे वरिष्ठ साहित्यकार की हल्की सी टिप्पणी पर असहज हो गए थे। क्या था उन पृष्ठों में?
बिहार में प्रशंसक तो शाहबुद्दीन के भी लाखों थे। इसलिए 12,000 लोगों की टिप्पणियों के धोखे में मत आइए। वे इसे दिखाकर सहानुभूति बटोरना चाहते हैं, उनमें अधिकांश कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ही निकलेंगे। या फिर अभिसार शर्मा, रवीश पांडेय, अशोक पांडेय जैसे मोदी से नफरत करने वाले सवर्ण यू ट्यूबर। यह देखना दिलचस्प होगा कि 12000 कमेंट करने वालों में रवीश पांडेय—अशोक पांडेय जैसे सवर्ण कितने हैं और आदिवासी, दलित और पिछड़े समाज से कितने हैं?
अजीत अंजुम जो बातें अपने दर्शकों से कह रहे हैं, उसके प्रमाण वे क्यों नहीं प्रस्तुत कर रहे। यदि उनकी यूट्यूब के अलावा कही और से कोई आमदनी नहीं हुई है, जिस बात पर दर्शक होने के नाते उनका विश्वास भी करना चाहता हूं लेकिन इसके लिए वे अपना आईटीआर सार्वजनिक क्यों नहीं कर देते। वे तो बिना प्रमाण के किसी बात पर विश्वास नहीं करते। फिर वे क्यों चाहते हैं कि उनके दर्शक अंधविश्वासी बने और उनकी कही बातों पर बिना किसी प्रमाण के विश्वास कर लें।
सोर्स – फेसबुक
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