राजस्थान पत्रिका का मैनजमैंट खुद को हिटलर से कम नहीं समझता है. इसी वजह से ऐसी नीतियां बनाता है जिससे कि पत्रकारों का जमकर शोषण हो. राजस्थान पत्रिका एक और अपना विस्तार कर रहा है, लेकिन आज भी जयपुर में बैठे लोग पॉलिसी निर्धारित करते हैं. चाहे वो सैलरी हो या कर्मचारी को मिलने वाली अन्य सुविधा. ये लोग कर्मचारियों को उनके मूलभूत अधिकारों से तक दूर रखते है. जैसे आपके महीने में आने वाली सैलरी स्लिप, इन्क्रीमेंट के बाद मिलने वाला सैलरी ब्रेकअप.
परफारमेंस लिंक एमाउंट यानि PLI के नाम पर आपकी सैलरी का बड़ा हिस्सा ये खा जाते हैं. कई लोगों की तो आधी सैलरी से ज्यादा हिस्सा PlI(परफोमेंस लिंक अमाउंट है). अपने ऑफिस में इमरजेंसी जैसे हालात इन लोगों ने बनाए हुए हैं और कोई इसका विरोध नहीं कर सकता है. आज के समय में कोई भी संस्थान किसी भी कर्मचारी से कोई बांड नहीं भरवा सकता है लेकिन ये लोग खुल कर इसका मखौल उड़ाते हैं.किसी कर्ममचारी से एक साल, किसी से दो साल और किसी से तीन साल का बांड मैनजमैंट भरवाता है.
अगर आप किसी वजह से नौकरी छोड़ते हैं तो आपको ये लोग एक्सप्रियेंस लैटर नहीं देते हैं. कोई भी कंपनी ज्वाइन करने से पहले ऑफर लैटर देती है ताकि यहां ज्वाइनिंग करने से पहले वो हर शर्त पढ़ सके लेकिन यहां ज्वाइनिंग के 6-6 महीने तक ऑफर लैटर नहीं मिलता है. इतना ही नहीं एक साल पूरा होने पर जो आपका इंक्रीमेंट होता है उसका बड़ा हिस्सा आपकी पीएलआई (परफोमेंस लिंक अमाउंट) में डाला जाता है. लेकिन मीडिया के वर्तमान हालात को देखते हुए लोग ऐसी परिस्थिति में काम करने को मजबूर है.
आपको मीटिंग के नाम पर जयपुर बुलाया जाएगा उसके बदले जो टीए डीए मिलेगा वो हास्यास्पद है. आपको आपकी पोजीशन का हवाला देकर रुपया लौटाया जाएगा. ये किराया साधारण बस के किराये से भी कम होगा जबकि आपको तुरंत आने के लिए बोला जाएगा. मैनजमेंट से आप सवाल करेंगे तो आपको पॉलिसी के नाम पर चुप्प करा दिया जाएगा. भड़ास के माध्यम से मैं चाहता हूं कि ये सच्चाई सामने आए.
राजस्थान पत्रिका में काम कर चुके एक पत्रकार का खुलासा.
Comments on “राजस्थान पत्रिका के लिए बंधुआ मज़दूर हैं पत्रकार! पढ़िए, यूं करते हैं शोषण”
यह बिल्कुल सत्य बात है। मैं पत्रिका का कर्मचारी तो नही परन्तु पत्रिका के नस नस से वाकिफ हु। यहां सैलरी स्लिप नाम की कोई चीज़ नही होती है। होता है तो बस कर्मचारियो का शोषण। मुम्बई में भी पत्रिका लॉन्च हो रहा है 1 नवंबर से। जो कर्मचारी 15000 या 20000 कमाते हैं उनका क्या होगा मुम्बई में भगवान ही जाने। परंतु एक बात तो 100 फीसदी सत्य है भगवान सब देख रहे है। आखिर कब तक गुलाब कोठारी और उनके दोनों कुपुत्र कर्मचारियो से ऐसे वव्यहार करेंगे। सूर्य जब उदय होता हैं तो अस्त भी होता हैं। ढलता सूरज है। रोशनी फीकी होगी ही।।।
बहुत ही बुरा हाल है पत्रिका का। दो साल का कांट्रेक्ट देकर सीटीसी में से ही ग्रेच्युटी भी काटते हैं। कर्मचारी बीच में छोड़कर चला जाता है तो यह पैसा (जोकि 30-40 हजार तक हो चुका होता है) नहीं लौटाया जाता। कहा जाता है कि ग्रेच्युटी का पैसा तो 5 साल नौकरी करने पर ही मिलता है।
अब इन कूढ़मगज वालों से कोई पूछे कि जब तुमने नौकरी ही दो साल के लिए दी थी ( मान कर चल रहा हूं कि यदि कांट्रेक्ट आगे नहीं बढ़ता) तो 5 साल वाली रकम क्यों काट रहे थे भाई….
ऐसे ही ये प्रोबेशन पीरियड बढ़ाते रहते हैं और तब कोई छोड़ दे तो उसका फुल एंड फाइनल ये कहकर रोक लिया जाता है कि आपने नोटिस नहीं दिया है। कोई पूछे कि यार प्रोबेशन में नोटिस कब दिया जाता है। इसके बाद यदि आपको फुल एंड फाइनल चाहिए तो फिर उनकी लल्लो-पच्चो करो….