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लेख छपने के बाद प्रभाष जोशी जी ने आनंद स्वरूप वर्मा जी से बातचीत बंद कर दी थी!

Daya Shankar Rai-

प्रभाष जोशी और राजेंद्र माथुर पिछली सदी के 80 के दशक में हिंदी पत्रकारिता के tallest figure माने जाते रहे हैं। उस वक्त तक पत्रकारिता का आज की तरह बदबू देने की हद तक क्षरण भी नहीं हुआ था। फिर भी समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक और दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, भूटान आदि देशों के विशेषज्ञ लेखक और पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने हंस 1987 के अक्टूबर – नवंबर के अंकों में “राजेंद्र माथुर और हिंदी पत्रकारिता” और “प्रभाष जोशी और हिंदी पत्रकारिता” शीर्षक से उन दोनों की पत्रकारिता के नजरिये का मूल्यांकन करते हुए उन पर बृहद आलोचनात्मक लेख लिखा था।

प्रभाष जोशी जी ने इसके बाद आनंद जी से काफी दिन तक बातचीत ही बंद कर दी। पर राजेन्द्र माथुर जी की प्रतिक्रिया इसके बिल्कुल उलट थी। उन्होंने उस लेख का फोटोस्टेट कराकर दफ्तर में सूचना पट पर दो-तीन जगह लगवा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने आनंद जी को फोन कर उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि वर्मा जी आपने यह लिखकर बहुत अच्छा काम किया है क्योंकि हम संपादकों पर भी कोई नकेल होनी चाहिए ताकि हमें भी अपना रास्ता भटकने का एहसास होता रहे..!

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ये दोनों लेख तीन-चार साल पहले ही आई आनंद जी की किताब ‘पत्रकारिता का अंधा युग’ में संकलित हैं। किताब सेतु प्रकाशन , दिल्ली से छपी है।

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