दिल्ली में तीन महीने के लिए रासुका लगा दिया गया है। इस कानून के लागू होने पर किसी भी व्यक्ति को बगैर वजह बताए 12 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। इस दौरान सम्बंधित व्यक्ति हाई कोर्ट में अपील कर सकता है लेकिन उसे वकील नहीं मिलेगा।
मित्रों, दिल्ली में आपातकाल लागू हो गया है. पुलिस किसी को भी 19 जनवरी से 18 अप्रैल के बीच रासुका के तहत 12 महीनों तक के लिए गिरफ़्तार कर सकती है. इस अवधि में गिरफ़्तार व्यक्ति किसी वक़ील की सहायता नहीं पा सकता है यानी उसके पास अदालत का दरवाज़ा खटखटाने के लिए कोई मोहलत नहीं होगी.
पुलिस का कहना है कि ऐसा हमेशा तीन महीने पर होता है. तीन दिन पहले आन्ध्र प्रदेश में ऐसा ही आदेश लागू किया गया है. रासुका में बंद आदमी के आम तौर पर गिरफ़्तार होने पर उपलब्ध अधिकार निरस्त हो जाते हैं. यह क़ानून इंदिरा गांधी ने सितंबर, 1980 में लाया था. कांग्रेस के हर कुकर्म का अच्छा लाभ भाजपा उठा रही है.
मोदी सरकार ने एक क़ानून बनाया, वह भी सिविल लॉ. पूरा देश विरोध करने लगा. कांग्रेस सरकारों ने तमाम आलोकतांत्रिक क़ानून बनाए, कोई परेशानी नहीं हुई किसी को. अब रासुका को लीजिए. इसमें भीम आर्मी के चंद्रशेखर अक्सर अंदर हो जाते हैं.
इसी का जम्मू-कश्मीर वर्सन फ़ारुख़ अब्दुल्ला पर लगा है. सांसद होकर भी अंदर हैं. यह है कांग्रेस का हिसाब. इस पार्टी से होशियार रहो भाई. इसी का सब फ़ित्ना है- आधार, नागरिकता, सांप्रदायिकता, कॉर्पोरेट लूट आदि आदि. इस पार्टी के नेता कभी अपने अतीत के खेल पर नहीं बोलते. ग़ज़ब पार्टी है ये…
क्या आपको इमरजेंसी की आहट सुनाई दे रही है?
नहीं?
तो सुनिए- दिल्ली के उपराज्यपाल ने पुलिस कमिश्नर को अधिकार दिया है कि वह किसी शख्स को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980 के तहत 3 महीने के लिए हिरासत में ले सकता है।
दिल्ली पुलिस को सिर्फ यह शक होना चाहिए कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। बस, 3 महीने के लिए वह अंदर होगा। आदेश संडे से लागू होगा।
लेकिन कौन? वही जिसके बारे में मोदी ने कहा था कि वह उसे कपड़ों से पहचानते हैं?
देश में इमरजेंसी लग चुकी है।
पत्रकार द्वय सत्येंद्र पी सिंह, सौमित्र रॉय और प्रकाश के रे की एफबी वॉल से.