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सियासत

यशवंत ने क्यों लिखा- ”जागो सवर्णों जागो! जातिवाद जिंदाबाद! इंडियन पॉलिटिक्स अमर रहे!”

Yashwant Singh : ब्रिटेन में कार्यरत Neeti Vashisht जी को ये स्टेटस (देखें स्क्रीनशॉट) अपडेट किए 10 घण्टे हो गए लेकिन लाइक कमेंट सिर्फ मैंने किया है। मैं सवर्ण घर में पैदा हुआ हूँ लेकिन सवर्ण मानसिकता नहीं रखता। पर इस लोकतंत्र में जब देखता हूँ कि वोट बैंक और प्रेशर ग्रुप ही काम करते हैं तो सोचता हूँ कि सवर्णों को भी एक वोट बैंक में तब्दील जो जाना चाहिए, अपनी मांगों के लिए मुखर हो जाना चाहिए।

मेरी बात बहुत सारे प्रगतिशीलों को बुरी लग सकती है लेकिन ये सच है कि ज्यादातर ग्रामीण सवर्ण सिर्फ अपनी सवर्ण मानसिकता की वजह से भूंसा भरे शेर बने-दिखे पड़े हैं। उनके घरों की हालत बहुत खराब है। नौकरी है नहीं। खेती घाटे का सौदा है। लौंडे दारूबाज हैं। घर में बस खींचतान-किचकिच से किसी तरह गृहस्थी की गाड़ी चल रही है।

इन सवर्णों को भाजपा पर बहुत भरोसा था लेकिन भाजपा तो घनघोर सवर्ण विरोधी निकली। (वैसे भाजपा हमेशा से कांग्रेस की ‘बी’ टीम रही है, बस सवर्ण इसे समझ नहीं पाए)। कांग्रेस तो बे-पेंदी का लोटा है, कोई दीन-ईमान नहीं है। वह एक साथ सब कुछ है और कुछ भी नहीं है। वह अपने आप में महा-तिकडमी पार्टी है। सपा अहीरों समेत पिछड़ी जातियों की पार्टी है तो बसपा चमारों समेत दलितों की पार्टी है। पीस पार्टी मुसलमानों की है। कुर्मियों के लिए अपना दल है। निषाद पार्टी का नाम सुन ही लिया जो निषाद जाति के लिए है।

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ऐसे में सवर्ण, खासकर ठाकुर बाभन लाला बनिया भूमिहार आदि के हित की आंख में आंख डालकर बात करने के लिए कौन सी हार्डकोर पार्टी है? कौन-सी पार्टी है जो इन्हें इनके हित के लिए वोट बैंक के रूप में तब्दील कर इनके लिए खुली चुनावी और जातीय राजनीति करे?

समझदार, पढ़े-लिखे और प्रगतिशील सवर्णों को आगे आकर सवर्णों की मानसिकता में बदलाव लाने से लेकर इनके हित की लड़ाई खुलकर लड़ने की तैयारी करनी चाहिए वरना भविष्य के असली दलित-पिछड़े के रूप में होंगे तो सवर्ण ही पर मलाई खाते रहेंगे असली सवर्ण बन चुके आधुनिक दलित-पिछड़े!

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जागो सवर्णों जागो!

जातिवाद जिंदाबाद! 🙂

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इंडियन पॉलिटिक्स अमर रहे 🙂

नीति वशिष्ठ जी, आपके लिखे पर कोई सवर्ण कमेंट करे न करे, कोई सवर्ण लाइक करे न करे, मैंने तो लाइक भी किया, कमेंट भी किया और आपकी बात को अलग पोस्ट के रूप में विस्तार भी दिया। इस घनघोर जातिवादी युग में कभी कभी खुल कर कह लेना चाहिए- हां मैं एक सवर्ण हूं! हां मैं दलित तबके वाला सवर्ण हूं! सवर्ण होना मेरे कई दुखों-समस्याओं का कारण है!!

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सुप्रभात मित्रों!

जै जै

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यशवन्त

{ नोट- सवर्णों से अनुरोध है कि यहां कोई कमेंट न करें क्योंकि इससे उनकी निष्पक्षता, प्रगतिशीलता, न्यायप्रियता और लोकतांत्रिकता के झक साफ सफेद दामन पर घनघोर काला दाग लग जाएगा :), ससुर के नाती हिप्पोक्रेटों! घर में नहीं दाने, अम्मा चलीं भुनाने 🙂 }

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भड़ास के संपादक यशवंत के उपरोक्त एफबी स्टेटस पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं….

Vijender Masijeevi नीति वशिष्ठ की बाकी पोस्ट्स पर भी लाइक कमेंट इतने ही हैं इसलिए इस पोस्ट से कोई अलग से कन्नी नहीं काटी है लोगों ने। बाकी सवर्णों का अंडर रिप्रेजेंटेशन की बात सिरे से झूठी है, लगभग हर क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व अपनी आबादी के अनुपात से कई गुना है। सिर्फ जेल और सफाईकर्मी जैसे कामों में हो सकता है प्रतिनिधित्व थोड़ा कम हो।

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Anjule विजेंदर मसिजीवी जी, हा हा हा… कई जगह सफाई कर्मी की सरकारी नौकरी में लगे सवर्णों का हाल ये है कि धौंस और ख़िलापिला कर सिर्फ हाजरी लगती है उनकी काम किसी और से ही कराया जा रहा है…

Yashwant Singh अंजुले जी, वही तो, ऐंठन बाकी है। इस मानसिक दरिद्रता को खत्म किए बिना इनकी आर्थिक दरिद्रता न सुधरेगी!

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Anjule यशवंत जी, सवर्णों की आर्थिक दरिद्रता अफवाह है… इसपर ध्यान न देना ही बेहतर है… हर जगह काबिज़ आप लोग और फिर रोना दरिद्र होने का भी…

Yashwant Singh अंजुले जी, आप सही कह रहे होंगे, मेरा अपना अनुभव नजरिया आपसे अलग हो सकता है क्योंकि इनके बीच रह कर इनकी हालत को गहराई से जानता हूँ।

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Anjule यशवंत जी, अच्छा उच्च पदों पर जो समुदाय काबिज है उसको लेकर भी अनुभव अलग है क्या

Yashwant Singh अंजुले जी, नौकरियों में अब तो बढ़िया प्रतिनिधित्व है। ये सामाजिक न्याय का नतीजा है। ये आगे भी बेहतर होगा। हां, अल्पसंख्यक ज़रूर कम हैं।

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Anjule यशवंत जी, सामाजिक न्याय अब भी कोसों दूर है सर… वरना pmo जैसी जगह पर सिर्फ 2 या 3 लोग obc और sc/st समुदाय मिलाकर नहीं होते

Yashwant Singh अंजुले जी, पीएमओ में किसे रखना है, किसे नहीं, ये ज्यादातर पीएम और पीएम के प्रमुख-मुख्य सचिवों की पसंद पर डिपेंड करता है. उसी तरह जैसे मायावती जी सीएम होती हैं तो सीएमओ में किसे रखना है और किसे नहीं, ये उनकी व उनके लोगों के पसंद से तय होता है ताकि उनकी बात, उनके विजन को ठीक से बाकी नौकरशाही में ट्रांसलेट किया जा सके. मैं बात ओवरआल सरकारी जाब सेक्टर की कर रहा हूं. 🙂

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Akhilesh Pratap Singh यह सही है कि आर्थिक मोर्चे पर हालात खराब हैं… लेकिन एक ऐंठ भी है जो बरकरार है… प्रतिक्रियावादी दलों की राजनीति इस आग को भड़काती ही है…. सूखी लकड़ियां हैं, जलती जा रही है….. हमारे पास कोई नेल्सन मंडेला नहीं है : (

Yashwant Singh ऐंठ को ही “भूंसा भरा शेर” लिखा हूं। ये ऐंठ जब तक रहेगी, कोई इन सवर्णों की लड़ाई लड़ने नहीं आगे आ सकता क्योंकि ये “ऐंठन युक्त सवर्ण” उसे ही निपटा देंगे 😊 इनकी नियति है दरिद्र से दरिद्रतम होते जाना, जब तक ये वैचारिक रूप से रेशनल नहीं हो जाते

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Pradyumna Yadav ये सब निराश, काहिल और टुटपुँजिया सवर्ण सोचते हैं. वरना सवर्ण सत्ता पक्ष भी हैं, विपक्ष भी हैं और निष्पक्ष भी हैं. हर जगह उनका दखल है. अब क्या चाहते हैं कि भारत छोड़ अमेरिका या धरती से बाहर मंगल ग्रह पर भी उनका दावा तय हो? 🙂

Yashwant Singh आपने सच कहा, सवर्ण निराश हैं और टूंटपूंजिया हो चुके हैं! हां, ये भी सच है, मुलायम मायावती रामविलास मोदी आदि सब सुपर सवर्ण हैं!! 🙂

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Anjule घंटा टटपुँजिया हो गए हैं… सबसे बड़ी कोठी उनकी, नौकरी में सब बड़े पदों पर वे काबिज, दलितों के लौंडों को घोड़ी पर भी चढ़ने न दें… और फेसबुक पर रोना दिवालिया हो जाने का…

Yashwant Singh जी Anjule भाई, सहमत। अंदर से खोखले हो गए सवर्ण लेकिन सामंती विचारधारा न गयी।

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Ved Ratna Shukla Savarno ki vastawik haalat Aapne likh di hai.

Yashwant Singh वेद भाई, सवर्णों की वास्तविक हालत एक “सवर्ण कम्युनिस्ट” ही लिख सकता है, कोई आप जैसा “सवर्ण संघी” नहीं! Ha ha ha 🙂

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Udaal Singh भाई हम लोग दाता है भिखरी नहीं बोटी और ब्रांडी छोडो हमें किसी की जरुरत नहीं पड़ेगी किसी सवर्ण को भिखरी देखा है आप ने

Yashwant Singh बहुत सारे सवर्ण भिखारी हैं, भ्रम और ऐंठ में जीना छोड़ना सबसे बड़ी जरूरत है। खासकर, ये ‘दाता’ वाली मानसिकता!

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Anjule यशवंत जी, हां जी सही कहे आप पंडित जी लोगों का तो जन्मजात भिखारीपने पर अधिकार है… भले उ अडानी से भी अमीर क्यों न हों

कुँवर नितीश सिंह Udaal Singh भैया जरूरत है समझने की सवर्ण समाज में भी भिखारी है किन्तु सवर्ण समाज के लोग इस अहंकार में अभी जी रहे है कि हम भिखारी नहीं है आप हमसे बड़े है गलत कहा हो तो माफी चाहता हूं भैया

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Shiv Chandra Jha जोरदार…., पर वक्त कभी एक बराबर नहीं रहता।

Yashwant Singh वक्त बराबरी पर लाने के लिए सवर्णों को अपना दिमाग आसमान से उतारकर बाकी सबके बराबरी पर लाना होगा

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Shiv Chandra Jha यशवंत जी, हां पर थोड़ा वक्त और…. अभी और रगड़ाना और धक्के खाना बाकी है।

Yashwant Singh शिवचंद्र झा जी, बिलकुल सहमत आपसे.

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Shambhu Dayal Vajpayee अब जिसके पैसा है, संगठित शक्ति है, वही सवर्ण है।

Yashwant Singh जातिवाद से संगठित शक्ति है, संगठित शक्ति से पैसा है और पैसा ही सवर्ण है जो अब सवर्णों के पास नहीं है!

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Ved Ratna Shukla Aapne Vajpayee sir ki kahan ko shaandar dhang se elaborate kar diya.

Anehas Shashwat Yashwant ki baat 100% sahi hai,lagaatar ghat rahe sansadhano ke maddenazar khas taur se

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Yashwant Singh मुझे पता है आपको डबल फिक्र है, लालाओं के साथ साथ पंडितों की भी, इसलिए आपका फौरन इस पोस्ट को समर्थन देना जायज है 🙂

Satyendra PS आइडिया अच्छा है। हमारे जिले में शायद सबसे पहले सवर्ण दल डॉ संजयन त्रिपाठी ने दो दशक पहले बनाया था। उस समय मामला हास्यास्पद लगता था तो मेरे एकमित्र ने कहा कि यह समय से बहुत पहले दल बना दिए। कांग्रेस भाजपा के खत्म होने पर इनका दल सफल हो सकता है जो पहले से ही सवर्णों के प्रतितिनधत्व कर रहे हैं।

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कुँवर नितीश सिंह अपनी मांग को पूरा सरकार के सामने अगर रखना है तो जरूरी है एक वोट बैंक तब्दील होने की जैसे की एक लकड़ी से ज्यादा बल उसके बंडल होता उसिप्रकार हमें भी बंडल बनने की जरूरत है वरना जैसे चल रहा है ठीक है

Vinod Bhardwaj सच यही है कि अब सवर्णों के अस्तित्व को बचाने के लिए अपने क्लीयर कट एजेंडा के साथ सवर्ण राजनैतिक दल के अस्तित्व में आने की तत्काल आवश्यकता है ।

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नरेन्द्र तिवारी आज का सबसे बड़ा भुक्तभोगी स्वर्ण है और उसका कारण है इनका एकजुट न होना ! कोई भी पार्टी आज सवर्णो का वोट नहीं चाहती सब OBC , दलित के पीछे पड़े है !
गलती भी हमारी ही है जब भी किसी ने दोषारोपण किये हमने उसे स्वीकार कर लिया !

Ashok Dhawan है न क़माल, देश के सभी संसाधनों पर कौन लोग कुंडली मारे जमे हैं, औऱ कौन सी पार्टी ऐसी है जिसमें ये तथाकथित लोगों की भरमार नहीं है, बात आत्ममंथन की है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

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Dayanand Pandey सवर्ण उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र सवर्ण एक्ट बनने का समय आ गया है ।

Pradyumna Yadav दयानंद जी, उस ऐक्ट में गोत्र का डिवीजन भी होना चाहिए. पांडेय , उपधिया , गोसाई , महापात्र जैसे निम्न और मध्यम कोटि के सवर्णो के लिए विशेष उपबंध होना चाहिए.

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Satyendra PS प्रद्मुम्न जी, ओबीसी बाभनों को एक्ट का लाभ मिलेगा कि नहीं? वो किधर रहेंगे?

Pankaj Srivastava भाई मैं भी उस जाति से हूँ पीड़ा समझ सकता हूँ। दरअसल हम मोदी भक्ति से ऊबरने का प्रयास ही नहीं करते।

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Anjule सवर्ण बिरादरी के लोग सबसे पहले से एकजुट वोट बैंक रहे हैं. और बाकि जातियों में वोट बैंक उन्हीं को फॉलो कर विकसित हुआ है.. तो सवर्ण कोई वोट बैंक नहीं”… कहने वाले बेवकूफ किसी और को जाकर बनाएं…

Neelu Sharma सवर्ण अपनी जिद पर अड़े रहते बस, उन्हें पता ही नहीं कि करना क्या है।

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