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सुख-दुख

भारतीय वैज्ञानिक अशोक सेन की खोज- यह दुनिया बहुत ही महीन छोटे धागों से बनी है!

प्रवीण झा

Praveen Jha : भारत से विज्ञान का नोबेल अगर मेरे जीते-जी किसी को मिला, तो वो इलाहाबाद में अपना जीवन बिताने वाले मनुष्य को मिलेगा। भविष्यवाणी है, लिख कर रख लीजिए। दरअसल यह बात मुझे एक नोबेल विजेता ने ही कही। अब इसे भाग्य कहिए या इत्तेफाक, भौतिकी के नोबेल विजेता ऐंथॉनी लिगेट के साथ एक डिनर मैनें भी किया। मुझसे कोई लेना-देना नहीं था, पर मेरे रूममेट घोष बाबू के गाइड थे। तो उन्हें हमारे घर भोजन पर बुलाया था। लिगेट साहब ने कहा कि भारत के अशोक सेन को नॉबेल जरूर मिलेगा, बशर्तें की उनकी थ्योरी प्रूव हो जाए।

प्रवीण झा

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Praveen Jha : भारत से विज्ञान का नोबेल अगर मेरे जीते-जी किसी को मिला, तो वो इलाहाबाद में अपना जीवन बिताने वाले मनुष्य को मिलेगा। भविष्यवाणी है, लिख कर रख लीजिए। दरअसल यह बात मुझे एक नोबेल विजेता ने ही कही। अब इसे भाग्य कहिए या इत्तेफाक, भौतिकी के नोबेल विजेता ऐंथॉनी लिगेट के साथ एक डिनर मैनें भी किया। मुझसे कोई लेना-देना नहीं था, पर मेरे रूममेट घोष बाबू के गाइड थे। तो उन्हें हमारे घर भोजन पर बुलाया था। लिगेट साहब ने कहा कि भारत के अशोक सेन को नॉबेल जरूर मिलेगा, बशर्तें की उनकी थ्योरी प्रूव हो जाए।

अशोक सेन एक अजीब सरपकाऊ थ्योरी पर काम करते रहे हैं, जिसका जिक्र मेरे किताब में भी है। आखिर दुनिया बनी किस चीज से है? वह मूलभूत कण है क्या? अणु, परमाणु, क्वार्क और पता नहीं क्या-क्या आ गए। पर सेन साहब कहते हैं, यह धागों से बनी है, बहुत ही महीन छोटे धागों से। यह तीन डाइमेंसन के कण नहीं, बल्कि ९ या उससे भी ज्यादा डाइमेंसन के धागे हैं। यही ‘स्ट्रिंग थ्योरी’ है जिसके सबसे बड़े प्रणेता वैज्ञानिकों में अशोक सेन हैं। कई लोगों ने स्ट्रिंग छोड़ दी, सेन साहब ने पकड़ा हुआ है।

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मैं भी भूल गया था कि सेन साहब का क्या हुआ? वो डिनर तो २००२ ई. की बात है। पता लगा कि सेन साहब को एक दिन अलाहाबाद के बैंक से फोन आया कि उनके एकाउंट में तीन मिलियन डॉलर आ गए। कहाँ से आए, क्यूँ आए? अलाहाबाद का अदना प्रोफेसर इतनी बड़ी रकम कैसे कमा सकता है? हुआ यूँ कि उन्हें अचानक एक दिन भौतिकी का सबसे कीमती अवार्ड मिला जो नोबेल की तीन गुणा रकम थी। सेन साहब तो सोच से बढ़कर निकले।

ये लोग हैं ही सोच से बढ़ कर। मैं पहले भी चर्चा कर चुका हूँ कि लिगेट साहब ने कहा था, “लोग नैनोपार्टिकल बनाने में लगे हैं। डॉक्टर! तुम बताओ, ये जो वायरस है, वो तेजी से दौड़ने वाला जिंदा नैनोपार्टिकल नहीं है क्या?” और हँसने लगे। अभी हाल में नेचर मैगजीन से पता लगा कि किसी वैज्ञानिक ने वायरस को नैनोपार्टिकल बनाकर प्रयोग शुरू किया। जहाँ इनकी सोच शुरू हुई, वो तो लिगेट ने हँसते-खेलते पंद्रह बरख पहले कह दिया था।

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वैज्ञानिक अशोक सेन के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें : 

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Ashoke Sen: India’s million-dollar scientist

दरभंगा के निवासी और इन दिनों नार्वे में कार्यरत ब्लॉगर और रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रवीण झाकी एफबी वॉल से.

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