Nadim S. Akhter : वैज्ञानिकों को धरती पे हज़ारों-लाखों साल से सोए पड़े वायरस का पता चला है, जो अब तक देखे-सुने नहीं गए। ग्लोबल वार्मिंग और अंधाधुंध खनन के कारण ज़मीन में दफन और सोए पड़े जिन वायरसों को हम धरती की सतह पे ला रहे हैं, उन्हें विज्ञान Giant Virus कह रहा है। …
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धरती के सबसे ज्यादा आबादी वाले इलाकों में रातें खत्म होती जा रही हैं
गुजरात के चुनाव और राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना इतनी बड़ी खबरें हैं कि लगता है देश भर की सारी समस्याएं खत्म हो गई हैं, सारे मुद्दे अप्रासंगिक हो गए हैं। राजनीतिज्ञों को तो जनता को अंट-शंट बातों से मुद्दे भुलाकर फुसलाने की आदत थी ही, अब मीडिया भी इस आदत का शिकार हो गया है और जनता के पास इसी मीडिया को बर्दाश्त करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा है। खुद मीडिया से जुड़े कई वरिष्ठ लोगों ने इस पर चिंता जाहिर की है, लेकिन इस स्थिति को बदलने के लिए मीडिया में कोई व्यवस्थित चिंतन हो रहा हो, ऐसा बिलकुल नहीं लगता। हम भूल गए हैं कि ट्विटर और मीडिया में काफी नाटकबाज़ी के बाद आखिरकार अरविंद केजरीवाल 15 नवंबर को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिलने चंडीगढ़ आये थे।
आइंस्टीन ने ग्रैविटेशनल वेव्ज़ को बिना किसी ऑब्ज़र्वेटरी के सौ साल पहले सुन लिया था!
Sushobhit Saktawat : अल्बर्ट आइंस्टीन उर्फ अल्बर्ट आइंश्टाइन के कान बहुत तेज़ थे! पूरे सौ साल पहले, वर्ष 1916 में, अल्बर्ट आइंश्टाइन ने एक दूरगामी प्रत्याशा जताई थी। उस प्रत्याशा की तरंगें आज आकर हमसे टकरा रही हैं लेकिन आइंश्टाइन ने उन तरंगों को बहुत पहले ही सुन लिया था। आइंश्टाइन के कान सचमुच सवा तेज़ थे!
यशवंत की कुछ एफबी पोस्ट्स : चींटी-केंचुआ युद्ध, दक्षिण का पंथ, मार्क्स का बर्थडे और उदय प्रकाश से पहली मुलाकात
Yashwant Singh : आज मैं और Pratyush Pushkar जी दिल्ली के हौज खास विलेज इलाके में स्थित डिअर पार्क में यूं ही दोपहर के वक्त टहल रहे थे. बाद में एक बेंच पर बैठकर सुस्ताते हुए आपस में प्रकृति अध्यात्म ब्रह्मांड आदि की बातें कर रहे थे. तभी नीचे अपने पैर के पास देखा तो एक बिल में से निकल रहे केंचुए को चींटियों ने दौड़ा दौड़ा कर काटना शुरू किया और केंचुआ दर्द के मारे बिलबिलाता हुआ लगा.
भारतीय वैज्ञानिक अशोक सेन की खोज- यह दुनिया बहुत ही महीन छोटे धागों से बनी है!
प्रवीण झा
Praveen Jha : भारत से विज्ञान का नोबेल अगर मेरे जीते-जी किसी को मिला, तो वो इलाहाबाद में अपना जीवन बिताने वाले मनुष्य को मिलेगा। भविष्यवाणी है, लिख कर रख लीजिए। दरअसल यह बात मुझे एक नोबेल विजेता ने ही कही। अब इसे भाग्य कहिए या इत्तेफाक, भौतिकी के नोबेल विजेता ऐंथॉनी लिगेट के साथ एक डिनर मैनें भी किया। मुझसे कोई लेना-देना नहीं था, पर मेरे रूममेट घोष बाबू के गाइड थे। तो उन्हें हमारे घर भोजन पर बुलाया था। लिगेट साहब ने कहा कि भारत के अशोक सेन को नॉबेल जरूर मिलेगा, बशर्तें की उनकी थ्योरी प्रूव हो जाए।
यशवंत का विकास, ब्रह्मांड और अध्यात्म चिंतन
Yashwant Singh : ब्रह्मांड में ढेर सारी दुनियाएं पृथ्वी से बहुत बहुत बहुत पहले से है.. हम अभी एक तरह से नए हैं.. हम अभी इतने नए हैं कि हमने उड़ना सीखा है.. स्पीड तक नहीं पकड़ पाए हैं.. किसी दूसरे तारे पर पहुंचने में हमें बहुत वक्त लगेगा.. पर दूसरी दुनियाएं जो हमसे बहुत …
पानी की कमी से जैसे हड़प्पा का नाश हुआ, वैसे ही आधुनिक शहरी-औद्योगिक सभ्यता का सत्यानाश होगा!
Pushya Mitra : हड़प्पा में हाल के दिनों में हुए एक्सकेवेशन करने वाली टीम के मुखिया अनिंद्य सरकार से रंजीत और अखिलेश्वर पांडे ने लम्बी बातचीत की है। यह बातचीत प्रभात खबर में प्रकाशित हुई है। यह काफी महत्वपूर्ण बातचीत है। इसका विषय शहरी जीवन और पर्यावरण है। उत्खनन से यह पता चला है कि …
जानिए, अपने सूट में पेशाब करते हुए स्पेस में जाने वाले पहले व्यक्ति कैसे बन गए थे एलन शेफर्ड
POOP IN SPACE : कृपया नाक पर रुमाल रख कर के पोस्ट पढ़ें…
5 May, 1961… Freedom-2 स्पेस शटल…. के कैप्सूल कक्ष में बैठे अमेरिकन अन्तरिक्ष यात्री Alan Shephard उत्सुकता से उस पल का इन्तजार कर रहे थे जब…. विश्व के दुसरे….और अमेरिका के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री बनने का सेहरा उनके सर पर सजने जा रहा था मन अन्तरिक्ष से अपनी पृथ्वी को निहारने की कल्पनाओं के जाल में उलझा था और उन्हें पता चला की उनकी फ्लाइट में विलम्ब होगा.. 5 घंटे बीत गए और उन्हें… पेशाब लग आई.
…तब हमारा ब्रह्माण्ड लिंग नुमा सुरंग में धंसते हुए निकटवर्ती ब्रह्माण्ड में समाहित हो जाएगा!
(विजय सिंह ठकुराय)
अब बात ब्रह्माण्ड के अंत से लेकर आरम्भ तक की. THE BEGINNING OF EVERYTHING. लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड में समय और काल की अवधारणा शून्य थी. भौतिकी के नियम अस्तित्व में नहीं थे. दृश्य ब्रह्माण्ड का समस्त पदार्थ अपने फंडामेंटल स्वरुप (क्वार्क-ग्लुआन प्लाज़्मा) के रूप में एक पिन पॉइंट के आकार के द्रव्यमान (10^-26 मीटर) में सिमटा हुआ था. और एक विस्फोट हुआ.
13 अप्रैल 2029 की सुबह धरतीवासियों की जिंदगी की आखिरी सुबह होगी अगर 350 मीटर लंबा उल्का पिंड टकरा गया
(विजय सिंह ठकुराय)
महाप्रलय… क़यामत… डूम्स डे… THE END OF EVERYTHING… 13 अप्रैल-2029… हो सकता है… इस दिन की सुबह आपकी जिन्दगी की आखिरी सुबह हो.. APOSPHIS नामक 350 मीटर लम्बा उल्का पिंड 13 अप्रैल 2029 को, आज से ठीक 14 साल बाद, पृथ्वी की तरफ आएगा और 97.3% चांस है कि पृथ्वी की ग्रेविटी के कारण इस उल्कापिंड की कक्षा विचलित हो जाने के कारण ये पृथ्वी से 29470 km की दूरी से निकल जाएगा… इतनी कम दूरी होने के कारण आप “अपनी मौत के सामान” को नंगी आँखों से आसमान में जाते हुए देख सेल्फी ले पाएंगे लेकिन… 2.7% चांसेज है कि (हमारी कैलकुलेशन गलत हो सकती है) टकरा जाए और अगर ऐसा हुआ तो अगले क्षण की तुलना आप उस तबाही से कर सकते हैं जो “हिरोशिमा और नागासाकी” पर गिराए आणविक बम जैसे 65000 बम एक साथ पृथ्वी पर गिरा देने से आयेंगे… 2.7% यानि 1 in 37 chance… लेकिन मायूस होने की जरूरत नहीं….
मेरी थाईलैंड यात्रा (3) : …अपमान रचेता का होगा, रचना को अगर ठुकराओगे
कोरल आईलेंड की यात्रा से पहले थाईलेंड के बारे में कुछ बातें कर ली जाय. हवाई अड्डे से ही लगातार नत्थू की एक इच्छा दिख रही थी कि वो अपने देश के बारे में ज्यादा से ज्यादा हमें बताये. शायद इसके पीछे उसकी यही मंशा रही हो कि हम जान पायें कि केवल एक ही चीज़ उसके देश में नहीं है, इसके अलावा भी ढेर सारी चीज़ें उनके पास हैं जो या तो हमारी जैसी या हमसे बेहतर है. बाद में यह तय हुआ कि जब-जब बस में कहीं जाते समय खाली वक़्त मिलेगा तो थाईलैंड के बारे में नत्थू बतायेंगे और मैं उसका हिन्दी भावानुवाद फिर दुहराऊंगा. उस देश के बारे में थोड़ा बहुत पहले पायी गयी जानकारी और नत्थू की जानकारी को मिला कर अपन एक कहानी जैसा तैयार कर लेते थे और उसे अपने समूह तक रोचक ढंग से पहुचाने की कोशिश करते थे. नत्थू तो इस प्रयोग से काफी खुश हुए लेकिन ऐसे किसी बात को जानने की कोई रूचि साथियों में भी हो, ऐसा तो बिलकुल नहीं दिखा. उन्हें थाईलैंड से क्या चाहिए था, यह तय था और इससे ज्यादा किसी भी बात की चाहत उन्हें नहीं थी. खैर.
मेरी थाईलैंड यात्रा (2) : …हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे!
हमारी टोली पटाया के होटल गोल्डन बीच पहुच चुकी थी. औपचारिकताओं के साथ ही हमने अपना पासपोर्ट वहीं रिशेप्सन पर एक लॉकर लेकर उसमें जमा कराया. युवाओं का कौतुहल और बेसब्री देखकर मनोज बार-बार उन्हें कह रहे थे कि पहले ज़रा आराम कर लिया जाए, फिर अपने मन का करने के बहुत अवसर बाद में आयेंगे. सीधे दोपहर में भोजन पर निकलने का तय कर हम सब कमरे में प्रविष्ट हुए. शानदार और सुसज्जित कमरा. हर कमरे के लॉबी में ढेर सारे असली फूलों से लदे पौधों का जखीरा. इस ज़खीरे के कारण तेरह मंजिला वह होटल सामने से बिलकुल फूलों से लदे किसी पहाड़ के जैसा दिखता है.
मेरी थाईलैंड यात्रा (1) : कृपया भगवान बुद्ध के मुखौटे वाली प्रतिमा न खरीदें!
(दाहिने से तीसरे नंबर पर लेखक पंकज कुमार झा)
इस पंद्रह अगस्त की दरम्यानी रात को बंगाल की खाड़ी के ऊपर से उड़ते हुए यही सोच रहा था कि सचमुच आपकी कुंडली में शायद विदेश यात्रा का योग कुछ ग्रहों के संयोग से ही बना होता है. मानव शरीर में आप जबतक हैं, तबतक लगभग आपकी यह विवशता है कि आप पृथ्वी नामक ग्रह से बाहर कदम नहीं रख सकते. हालांकि इस ग्रह की ही दुनियादारी को कहां सम्पूर्णता में देख पाते हैं हम? अगर भाग्यशाली हुए आप तब ज़रा कुछ कतरा इस धरा के आपके नसीब में भी देखना नसीब होता है.