Girish Malviya
क्रोनी केप्टिलिज़्म की एक अनूठी मिसाल सामने आयी है…. किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि उसके आयात निर्यात पर ही निर्भर करती है और आयात निर्यात में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है देश की समुद्री तटरेखा पर स्थित पोर्ट्स की क्योंकि यही से सारा विदेशी व्यापार संचालित होता है.. विगत 21 मई को मोदी सरकार की शिपिंग मिनिस्ट्री ने एक बहुत हैरान कर देने वाला नोटिफिकेशन जारी लिया..
इस नोटिफिकेशन में भारत के विभिन्न समुद्री सीमा से सटे राज्यों में स्थित पोर्ट्स के बीच विदेशी जहाज चलाने की अनुमति दे दी है… इस से पहले विदेशी कम्पनियाँ भारत के आंतरिक बंदरगाहों में सामान लेकर नहीं जा सकती थी… अब वह खाली कंटेनर लेकर भी एक भारतीय पोर्ट से दूसरे भारतीय पोर्ट पर जा सकती हैं… ये अधिकार भारतीय कंपनियों का ही था, इस निर्णय से भारतीय जहाज कम्पनियो को बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा..
परंजय गुहा ठाकुरता जो इस तरह के आर्थिक विषयों के बेहद पैनी निगाह रखने वाले पत्रकार हैं… वह बताते हैं कि इस निर्णय से देश भारतीय जहाज कम्पनियो में काम करने वाले ओर से जुड़े तीन लाख लोग बेरोजगार हो सकते हैं…
वे बताते हैं कि यह निर्णय इसलिए लिया गया कि अप्रत्यक्ष रूप से अडानी को फायदा पुहचाया जा सके… अडानी की बड़ी बड़ी विदेशी जहाजरानी कम्पनियो के साथ पार्टनरशिप है… एक और बेहद महत्वपूर्ण बात यह हैं कि अडानी के देश मे सर्वाधिक निजी बंदरगाह हैं जिसमें मुंद्रा पोर्ट की क्षमता मुंबई के पास स्थित जवाहरलाल नेहरु पोर्ट से भी कही ज्यादा है… इस निर्णय से विदेशी कम्पनियां मुंद्रा पोर्ट्स पर माल उतारने को तरजीह देगी और सरकारी पोर्ट्स अडानी का मुँह देखते रह जाएंगे…
जो देश पूंजीवादी व्यवस्था ओर फ्री ट्रेड के सबसे बड़े हिमायती माने जाते है उन देशों में भी ये व्यवस्था नही है कि विदेशी व्यापारिक जहाजो को आंतरिक आवागमन के लिए छूट दी जा सके…
दरअसल यह फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषय पर कई गहरे सवाल खड़े करता है… लेकिन बिके हुए मुख्य धारा के हिंदी मीडिया ने इस निर्णय के बारे में देश की जनता को बताना तक जरूरी नहीं समझा, परंजय गुहा ठाकुरता का लेख इस निर्णय पर महत्वपूर्ण रोशनी डालता है…
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आर्थिक मामलों के विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.