Ashish Kumar Dixit–
उत्तरप्रदेश राज्य सूचना आयोग अपने समक्ष लगातार डेढ़ वर्ष तक जनसुनवाई करने के उपरांत जहां प्रतिवादी से यह सुनिश्चित नहीं करा पाता है कि अपीलकर्ता को समयबद्ध जनसूचना प्रदान कर दी जाए। वहीं जनसूचना मांगने की तिथि से लेकर प्रथम अपील / द्वितीय अपील तक 90 दिवस से ज्यादा की प्रक्रिया पूरी करने के बाद जब याचिकाकर्ता राज्य सूचना आयोग पहुंचता है तो उसे उम्मीद होती है कि लोकहित मे मांगी गई जानकारी यहां तो उसको दिलाने का कष्ट किया जाएगा। लेकिन डेढ़ वर्ष तक मानसिक, आर्थिक उत्पीड़ित होने के बावजूद अंतः सूचना आयुक्त प्रतिवादी पर जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20 (1) का उपयोग करते हुए अर्थदंड अधिरोपित कर 25000 रुपया का जुर्माना तो लगा देते है लेकिन जनसूचना नहीं दिला पाते है।
मेरे सूचना आयोग के समक्ष अपील पंजीकरण संख्या 207226 प्रतिवादी संयुक्त शिक्षा निदेशक / उच्च शिक्षा निदेशक, शिक्षा निदेशालय, प्रयागराज, यूपी से चाही गई डेढ़ वर्ष पूर्व की जानकारी आज तक प्रदान नहीं करवाई गई है। वहीं विगत 12 सितंबर 2023 को जनसुनवाई मे वाद निस्तारण करके सूचना आयुक्त महोदया एस-3 ने प्रतिवादी पर अर्थदंड अधिरोपित कर दिया है। लेकिन आज तक अंतिम आदेश की पीडीएफ फ़ाइल राज्य सूचना आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। अंतरिम आदेश 26 जून 2023 का आदेश अपलोड है जिसमें अंतिम अवसर देते हुए माननीय सूचना आयुक्त ने प्रतिवादी पर अगली सुनवाई मे अर्थदंड लगाने की बात लिखी थी।
गौरतलब है पवन तिवारी की जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने वर्ष 2019 मे आदेशसित किया था कि सूचना आयोग प्रत्येक जनसुनवाई मे पारित आदेश की प्रति आनलाइन वेबसाइट पर अपलोड करेगा। इस संदर्भ मे प्रकाशित खबर भी इस पोस्ट के साथ संलग्न की जा रही है। मैंने आज एक मेल भी सूचना आयोग रजिस्ट्रार व अन्य वरिष्ठ अधिकारी को किया है।
बताते चलें कि सूचना आयोग के कक्ष संख्या एस-11 मे भी मौजूदा सूचना आयुक्त जी के अधीनस्थ कार्मिक जनसुनवाई मे पारित अथवा निस्तारण वाद का अंतिम आदेश वेबसाइट पर ऑनलाइन ज्यादातर अपलोड नहीं करते है। मेरे तीन-चार प्रकरण ऐसे है। उधर उत्तरप्रदेश मे लोकसूचना अधिकारी / जनसूचना अधिकारी अब एक्ट की धारा 8 (अ) की भ्रामक व्याख्या करके आवेदकों को थर्ड पार्टी जनसूचना लिखकर जवाब नहीं दे रहें है। भले ही आपने प्रतिवादी से अपनी पूर्व मे की गई शिकायत जांचकर्ता से जांच आख्या ही क्यों न मांगी हो। यह प्रकरण ऐसा ही है। यकीनन माननीय उच्चन्यायालय ही अब इस पर कुछ यथोचित कार्यवाही / दिशानिर्देश एक्ट की धारा 8 (अ) के विषयक कर सकने मे समर्थ है। यूपी मे राज्य सूचना आयोग की गरिमा और लोकसूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी के साथ आरटीआई एक्ट 2005 की ऐसी विडंबना बेहद दुःखद है।