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सियासत

जेएनयू पर एक कविता : यस, आई स्टेंड विद जेएनयू ….

यस, आई स्टेंड विद जेएनयू
यह जानते हुये भी कि
वानरसेना मुझको भी
राष्ट्रद्रोही कहेगी।
काले कोट पहने
गुण्डों की फौज
यह बिल्कुल भी
नहीं सहेगी।
तिरंगा थामे
मां भारती के लाल
मां बहनों को गरियायेंगे।
दशहतगर्द देशभक्त
जूते मारो साले को
चीख चीख चिल्लायेंगे।
जानता हूं
मेरे आंगन तक
पहुंच जायेगा,
उन्मादी राष्ट्रप्रेमियों के
खौफ का असर।
लम्पट देशप्रेमी
नहीं छोड़ेंगे मुझको भी।
फिर भी कहना चाहता हूं
हॉ, मैं जेएनयू के साथ खड़ा हूं।

<p>यस, आई स्टेंड विद जेएनयू <br />यह जानते हुये भी कि<br />वानरसेना मुझको भी<br />राष्ट्रद्रोही कहेगी।<br />काले कोट पहने<br />गुण्डों की फौज<br />यह बिल्कुल भी<br />नहीं सहेगी।<br />तिरंगा थामे<br />मां भारती के लाल<br />मां बहनों को गरियायेंगे।<br />दशहतगर्द देशभक्त<br />जूते मारो साले को<br />चीख चीख चिल्लायेंगे।<br />जानता हूं<br />मेरे आंगन तक<br />पहुंच जायेगा,<br />उन्मादी राष्ट्रप्रेमियों के<br />खौफ का असर।<br />लम्पट देशप्रेमी<br />नहीं छोड़ेंगे मुझको भी।<br />फिर भी कहना चाहता हूं<br />हॉ, मैं जेएनयू के साथ खड़ा हूं।</p>

यस, आई स्टेंड विद जेएनयू
यह जानते हुये भी कि
वानरसेना मुझको भी
राष्ट्रद्रोही कहेगी।
काले कोट पहने
गुण्डों की फौज
यह बिल्कुल भी
नहीं सहेगी।
तिरंगा थामे
मां भारती के लाल
मां बहनों को गरियायेंगे।
दशहतगर्द देशभक्त
जूते मारो साले को
चीख चीख चिल्लायेंगे।
जानता हूं
मेरे आंगन तक
पहुंच जायेगा,
उन्मादी राष्ट्रप्रेमियों के
खौफ का असर।
लम्पट देशप्रेमी
नहीं छोड़ेंगे मुझको भी।
फिर भी कहना चाहता हूं
हॉ, मैं जेएनयू के साथ खड़ा हूं।

क्योंकि जेएनयू
गैरूआ तालिबानियों
की तरह,
मुझे नहीं लगता
अतिवादियों का अड्डा
और देशद्रोहियों का गढ़।
मेरे लिये जेएनयू सिर्फ
उच्च शिक्षा का इदारा नहीं है।
मुझे वह लगता है
भीड़ से अलग एक विचार।
कृत्रिम मुल्कों व सरहदों के पार।
जो देता है आजादी
अलग सोचने,अलग बोलने
अलग दिखने और अलग
करने की।
जहां की जा सकती है
लम्बी बहसें,
जहां जिन्दा रहती है
असहमति की आवाजें।
प्रतिरोध की संस्कृति का
संवाहक है जेएनयू।
लोकतांत्रिक मूल्यों का
गुणगाहक है जेएनयू।
यहां खुले दिमाग
वालों का डेरा है।
यह विश्व नागरिकों का बसेरा है।

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मैं कभी नहीं पढ़ा जेएनयू में
ना ही मेरा कोई रिश्तेदार पढ़ा है।
मैं नहीं जानता
किसी को जेएनयू में।
शायद ही कोई
मुझे जानता हो जेएनयू में।
फिर भी जेएनयू
बसता है मेरे दिल में।
दिल्ली जाता हूं जब भी
तीर्थयात्री की भांति
जरूर जाता हूं जेएनयू।
गंगा ढ़ाबे पर चाय पीने,
समूहों की बहसें सुनने
वहां की निर्मुक्त हवा को
महसूस करने।
जेएनयू में मुझको
मेरा भारत नज़र आता है।
बस जेएनयू से
मेरा यही नाता है।

रही बात
देशविरोधी नारों की
अफजल के प्रचारों की
यह करतूत है
मुल्क के गद्दारों की।
बिक चुके मीडिया दरबारों की।
चैनल चाटुकारों की,
चीख मचाते एंकर अय्यारों की।
वर्ना पटकथा यह पुरानी है।
बुनी हुई कहानी है।
नारे तो सिर्फ बहाना है।
जेएनयू को सबक सिखाना है।
स्वतंत्र सोच को मिटाना है।
रोहित के मुद्दे को दबाना है।
अकलियत को डराना है।
दशहतगर्दी फैलाना है।
राष्ट्रप्रेमी कुटिल गिद्दों ,
तुम्हारी कही पर निगाहें
कहीं पर निशाना है।
असली मकसद
मनुवाद को वापस देश में लाना है।

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पुरातनपंथियों,
वर्णवादी जातिवादियों,
आजादी की लड़ाई से
दूर रहने वाले
अंग्रेजों के पिठ्ठुओं,
गोडसे के पूजकों,
गांधी के हत्यारों,
भगवे के भक्तों,
तिरंगे के विरोधियों,
संविधान के आलोचकों,
अफजल को शहीद
कहनेवाली पीडीपी के प्रेमियों,
हक ही क्या है तुमको
लोगों की देशभक्ति पर
सवाल उठाने का?

बिहार के एक
गरीब मां बाप का बेटा
जो गरीबी, भुखमरी,
बेराजगारी, बंधुआ मजदूरी,
साम्प्रदायिकता और जातिवाद
से चाहता है आजादी

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फासीवाद समर्थक
आधुनिक कंसों!
तुम्हें संविधानवादी
एक कन्हैया भी बर्दाश्त ना हुआ।
तुम्हें कैसे बर्दाश्त होंगे
हजारों कन्हैया,
जो किसी गांव, देहात
दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक
या पिछड़े वर्ग से आते हो,
और पढ़ते हो जहां रह कर,
वो जगह ,कैसे बरदाश्त होगी तुमको?
मनुस्मृति और स्मृति ईरानी
दोनों को नापसंद है यह तो।
इसलिये शटडाउन
करने का मंसूबा पाले हो।
वाकई तुम बेहद गिरी
हरकतों वाले हो।

जेएनयू को तुम
क्या बंद कराओगे?
जेएनयू महज
किसी जगह का नाम नहीं।
मात्र यूनीवर्सिटी होना ही
उसकी पहचान नहीं।
जेएनयू एक आन्दोलन है,
धमनियों में बहने वाला लहू है।
विचार है जेएनयू
जो दिमाग ही नहीं
दिल में भी बस जाता है।
इसे कैसे मारोगे?
यह तो शाश्वत है,
जिन्दा था, जीवित है
जीवंत रहेगा सदा सर्वदा।
तुम्हारे मुर्दाबादों के बरक्स
जिन्दाबाद है जेएनयू
जिन्दाबाद था जेएनयू
जिन्दाबाद ही रहेगा जेएनयू।
उसे सदा सदा
जिन्दा और आबाद
रखने के लिये ही
कह रहे है हम भी
स्टेंड विद जे एन यू।

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जेएनयू
अब पूरी दुनिया में है मौजूद
हर सोचने वाले के
विचारों में व्यक्त हो रहा है जेएनयू।
शिराओं में रक्त बन कर
बह रहा है जेएनयू।
लोगों की धड़कनों में
धड़क रहा है,
सांसे बन कर
जी रहा है जेएनयू।
वह सबके साथ खड़ा था
आज सारा विश्व
उसके साथ खड़ा है
और कह रहा है –
वी स्टेंड विद जेएनयू।

मैं भी
अपनी पूरी ताकत से
चट्टान की भांति
जेएनयू के साथ
होकर खड़ा
कह रहा हूं,
यस, आई स्टेंड विद जेएनयू
फॉरएवर।
डोन्ट वरी कॉमरेड कन्हैया
वी शैल कम ओवर।
वी शैल फाईट
वी शैल विन।

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मुझे यकीनन यकीन है
जेएनयू के दुश्मन
हार जायेंगे।
मुंह की खायेंगे।
दुम दबायेंगे
और भाग जायेंगे।
जेएनयू तो
हिमालय की भांति
तन कर खड़ा रहेगा
अरावली की चट्टानों पर,
राजधानी के दिल पर,
लुटियंस के टीलो की छाती पर….

-भंवर मेघवंशी
स्वंतत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता
व्हाटसएप -9571047777
सम्पर्क [email protected]

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3 Comments

3 Comments

  1. Sharad Dahiwale

    February 20, 2016 at 4:19 pm

    bahot khoob, ham bhi aap ke sath hai

  2. Virender

    February 22, 2016 at 10:58 am

    jis dharati par apki ankhe khuli hain, jis dharti ki abbo-hawa ne tum to kya tumhare baap dada ko bhi pet bhar bhojan uplabdh karaya ho agar uss dharti ki izzat nahi karte uss desh ko gali dete ho to duniya ke kisi bhi sakhsh se pooch lo tumhe kya kehna chahiye.

  3. ather

    February 25, 2016 at 5:33 pm

    Good….ap ne apni kawita main jnu ko jinda kar diya…badhaye

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