Dayanand Pandey : ज़रा जलवा देखिए कि लखनऊ जैसे शहर में बड़े जानवर काटने के लिए एक भी बूचड़खाने के पास लाइसेंस नहीं है अभी तक। मेरठ, बरेली, बनारस, इलाहाबाद, अलीगढ़, गाज़ियाबाद, गोरखपुर आदि शहरों में भी यही आलम है। तब जब कि टुंडे कबाब से लगायत कीमा, नहारी आदि भैंस के मांस से ही बनता है। बकरे और मुर्गे की अपेक्षा काफी सस्ता होने के कारण भैंस के गोश्त की बड़ी खपत है लखनऊ सहित तमाम शहरों में।
भैंस की आड़ में ही गाय भी कटती है। पर लाइसेंस कहीं नहीं। लाइसेंस नहीं तो इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स वगैरह भी गोल। इसी तरह बकरे, मुर्गे काटने के लिए भी लाइसेंस गोल है। सिर्फ़ तीन सौ लाइसेंस हैं और दुकानें हज़ारों। गरज यह कि सारा विरोध और मातम अवैध कारोबार के लिए है। इतना बड़ा गोलमाल। और अखिलेश यादव सरकार का दावा था विकास का, नारा था काम बोलता है। अभी जाने कितने अवैध कारोबारों का काम बोलने वाला है।
यह जो तमाम मूर्ख लेकिन शातिर टाइप के लोग अवैध बूचड़खानों के बंद होने पर छाती पीट रहे हैं, पैरवी कर रहे हैं, इन की भी कड़ी मजम्मत होनी चाहिए। हर अवैध चीज़ बंद होनी चाहिए। मंदिर-मस्जिद भी अगर अवैध हैं तो उन्हें भी। किसी के साथ एक पैसे की रियायत नहीं होनी चाहिए। सवाल तो यह है कि अभी तक यह अवैध बूचड़खाने चल कैसे रहे थे ? जो लोग इन को चलने दे रहे थे, या चलवा रहे थे, इन सब के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। विद्वतजन लेकिन हताश बहुत हैं!
पत्रकार दयानंद पांडेय की एफबी पोस्ट.
Shamshad Elahee Shams : उत्तर प्रदेश में संघ-भोगी सरकार द्वारा बूचड़खानों पर लगाया प्रतिबन्ध संघ की बहुत सोची समझी साजिश है. गाय के कन्धों पर हिंदुत्व की सवारी दरअसल मुसलमानों और दलितों के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी हैं. एक हफ्ते के भीतर भोगी सरकार की इस आर्थिक आतंकवादी नीति का असर यह हुआ है कि लखनऊ शहर के मशहूर टूंडे के कबाब की दुकान लगभग बंद हो गयी है क्योंकि भैंस का गोश्त उपलब्ध नहीं है. गाज़ियाबाद, मेरठ शहर में भैंस के गोश्त की दुकानों में ताले पड़ गए है. अख़लाक़ कुरैशी, यूसुफ़ कुरैशी जैसे नामचीन बूचड़खानों के मालिको की दुकाने सील हो चुकी है.
मुसलमानों की कुरैशी बिरादरी सदियों से गोश्त के कारोबार में है और इनके सामने अब रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. इसके साथ ही चमड़े के खरबों रूपये के कारोबार पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा जो कारोबार मुसलमानों के हाथ में ही है. चमड़ा नहीं मिलेगा तो आगरा और कानपुर का विश्वप्रसिद्ध जूता चप्पल का कारोबार अपने आप संकटग्रस्त हो जायेगा जिसमे भारी तादाद में दलित वर्ग शामिल है. मने एक ही वार में मुसलमान और दलित के सम्पन्न वर्ग की छुट्टी. मुसलमानों और दलितों की रोजी रोटी के इस बुनियादी प्रश्न को दलित अस्मितावादी राजनीति करने वाले बहुजनस्वामी दुमछल्लो के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. इसने तो इस सम्पन्न वर्ग की जेब ही काटी है, कभी चंदे के नाम पर तो कभी टिकट बेचने के नाम पर. ..एक मुखर और आवाक तबका सर उठाये, अपने से दिगर समुदाय को अपना नेतृत्व करने की प्रतीक्षा में बैठा है, लाल झंडे वालों ऐसा मौका फिर न आएगा. आगे बढ़ो और डाल दो नकेल भोगी-संघी सरकार में, भर दो जेलें. तुम ही हो जो संघ के इस एजेंडे को बेनकाब करते हुए जनता का भरोसा वापस पा सकते हो. इन्कलाब जिंदाबाद
कामरेड शमशाद एल्ही शम्स की एफबी पोस्ट.