PHOTO Sumant
Sumant Bhattacharya : कल दिल्ली जू में जो कुछ भी हुआ, साबित हुआ कि हम अपने परिवेश के प्रति अज्ञानता की हद में जी रहे हैं… चिड़ियाघर के घेरे में जन्मे बाघ को मकसूद और दीवार के ऊपर खड़े तमाम तमाशबीनों ने ऐसा करने के लिए उकसाया… मकसूद को विजय (बाघ का नाम) ने नहीं, तमाशबीनों ने मिलकर मारा… विजय के भीतर सिर्फ कौतुहल था… फुटेज देखिए….पंद्रह मिनट तक विजय की हरकतें सिर्फ उसके कौतुहल को ही दर्शा रही हैं.
बाघ विजय के जीवन में पहला मौका था जब वो किसी अनजान इंसान को अपनी पहुंच में देख रहा था… यदि मकसूद हिलता नहीं और भीड़ खामोश रहती तो यकीनन मकसूद को बचाने का और वक्त मिल सकता था… लेकिन भीड़ ने पत्थर मार-मार, हल्ला करके बाघ विजय के भीतर के अनुवांशिक गुणों को उकसा दिया, और नतीजा बेहद खौफनाक रहा…
बहुत ही नाजुक पल था यह… और, हल्ले ने इन नाजुक पलों के फासले को समेट दिया…. अफसोस इन पलों की नजाकत को किसी ने नहीं समझा… जिधर देखो, जाहिल ही जाहिल… यकीनन हम समाज से नहीं, परिवेश से और खुद से भी कट चुके हैं.. और, जाहिल मीडिया को देखिए…खटमल मार दवा की तरह फुटेज को बेच रहा है… होना तो यह चाहिए था कि इसके बाद तुरंत ही देश के हर चिड़ियाघरों के लिए अवरनेस कैंपेन का खाका बनता… और मीडिया पूरी घटना के फुटेज को फ्रीज कर करके जानकारों के साथ विमर्श करता…. पर हो-हल्ला वाले मीडिया से क्यों उम्मीद कर रहा हूं मैं..? कितना जाहिल हूं मैं ना…?
मैंने कल कई बार फुटेज को देखा… और समझने की कोशिश की कि आखिर क्यों विजय ने ऐसा किया… आज प्रिंट मीडिया से पता चला कि विजय चिड़ियाघर में ही पैदा हुआ बाघ है… इंसान उसके लिए कोई नया नहीं है… आप देखेंगे कि वो मुश्ताक के पास खड़ा होकर उसे घूर रहा है… नाक से सूंघने की कोशिश कर रहा है… पंजे से उसे छूने की कोशिश कर रहा है… याद रखें, उसके पंजे आक्रामक नहीं है उस वक्त तक… बाघ जब हमला करते हैं तो गर्दन लंबी हो जाती है और पूंछ बिल्कुल सख्त… सामने की ओर झुक जाता है… पर यहां तो विजय ऐसे खड़ा है कि मानों पूछ रहा हो कि कौन है भाई तू…. लेकिन गलती वहीं हो गई… जब लोगों ने चिल्लाना शुरू किया….. बाघ को समझ में आया कि उसे दीवार के पास से हटना है… और इस खेल की चीज को साथ ले भी जाना है… अपने जेनेटिक इवोल्यूशन के सहज ज्ञान से उसने मुश्ताक को गर्दन से पकड़ा… और लेकर अपने पिंजरे की ओर भागा…. बाघ या कोई भी जंगली जानवर जब शिकार पर कब्जा करता है तो उसे लेकर अपने सुरक्षित ठिकाने की ओर भागता है… विजय भी वहीं भागा जहां रोज अपना खाना खाता था…. और सोचने वाली बात है कि उसने मुश्ताक को खाया नहीं…. क्योंकि उसके अब तक के आहार में इंसान कभी था ही नहीं…. अब लोग यदि नहीं चिल्लाते तो यकीन मानिए विजय काफी देर तक मुश्ताक के साथ खेलता रहता…. पर उसे भागने के लिए भीड़ ने विजय को उकसा दिया… इंसानी हल्ले से वो हटना चाह रहा था और इसी फेर में मुश्ताक की जान गई…
वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्या के फेसबुक वॉल से.
ramanuj
September 24, 2014 at 9:33 pm
aapki abhinyakti hi SATYA hai,
neeraj
September 25, 2014 at 4:33 am
dada bilkul sach kaha aapne
mishra
September 27, 2014 at 11:13 am
sir,bilkul sach hain